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रंगमंच के सिद्धान्त

देवेन्द्र राज अंकुर

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :312
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 17108
आईएसबीएन :9788126715893

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पूर्व और पश्चिम के नाट्य सिद्धान्तों का सुग्राह्य हिन्दी में संपूर्ण मार्गदर्शक....

हिन्दी में एक ऐसी पुस्तक की लम्बे समय से प्रतीक्षा थी जो पूर्व और पश्चिम में प्रचलित नाट्य सिद्धान्तों को एक स्थान पर और सुग्राह्य भाषा में उपलब्ध कराती हो। ‘रंगमंच के सिद्धान्त’ इसी उद्देश्य की पूर्ति करती है। समकालीन रंगमंच के अध्येता महेश आनन्द तथा रंगकर्म के व्यावहारिक और सैद्धान्तिक पक्षों का एक-सी निष्ठा के साथ निर्वाह करते आ रहे सुपरिचित रंगकर्मी देवेन्द्र राज अंकुर के कुशल सम्पादन में तैयार इस पुस्तक में अरस्तू से लेकर भारतेन्दु और फिर बादल सरकार तक के रंग सिद्धान्तों का विवेचन अधिकारी विद्वानों और रंगकर्मियों द्वारा किया गया है।

यह पुस्तक बताती है कि रंगमंच केवल किसी नाट्य-कृति को अभिनेताओं द्वारा मंच पर खेल देना भर नहीं होता। समाज, मनुष्य, उसकी मनोरचना और नियति के साथ रंगमंच के सम्बन्ध को लेकर हर युग में चिन्तक और रंगकर्मी चिन्तन-मनन करते रहे हैं और मानव-जीवन की एक अधिकाधिक विश्वसनीय प्रतिकृति के रूप में रंगकर्म को स्थापित करने के लिए नई-नई शैलियाँ ढूँढ़ते और विकसित करते रहे हैं। उन तमाम सिद्धान्तों-शैलियों को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है जो अपने समय में रंगकर्म के लिए दिशा-निर्देशक बने और आज भी हमारी सोच को उत्तेजित करते हैं। जिन विचारकों के सिद्धान्तों का विश्लेषण किया गया है, वे हैं: अरस्तू, स्तानिस्लाव्स्की, मेयरहोल्ड, आर्तो, ब्रेष्ट, क्रेग, माइकेल चेख़व, ग्रोतोव्स्की, पीटर ब्रुक, ज़ेआमि, भरत, भारतेन्दु, प्रसाद और बादल सरकार।

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