नई पुस्तकें >> हिंदी कविता में अंडमान हिंदी कविता में अंडमानव्यास मणि त्रिपाठी
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"अंडमान : कालापानी से मुक्ति तीर्थ तक, राष्ट्रीयता और समरसता की कविताओं का संगम"
अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह की विभिन्न छवियाँ हैं। कभी ‘कालापानी’ के रूप में कुख्यात अंडमान अब ‘मुक्ति तीर्थ’ के रूप में समादृत है। अंडमान, अंग्रेजों की दुर्दमनीयता के विरुद्ध ‘वंदेमातरम’ का जयघोष करने वाले स्वाधीनता-संघर्ष के महानायकों के अदम्य साहस और निर्भयता की भूमि है। इसके अलावा पाषाण युगीन आदिम संस्कृति, प्राकृतिक मनोहरता, सामाजिक समरसता की भी भूमि है अंडमान। यही कारण है कि हिंदी कविता में अंडमान के ये विविध रूप कभी आक्रोश, कभी करुणा, कभी-कभी वंदना, कभी सहानुभूति तथा कभी आत्मीयता के रूप में उभरे हैं। इन विभिन्न भावाभिव्यक्तियों और स्वरों को एक पुस्तक में संकलित करने का प्रयास किया गया है। इससे न केवल इस द्वीप समूह की सामाजिकता, सुंदरता तथा लघु भारत की समरसता को एक व्यापक फलक पर उपस्थित किया जा सकेगा, बल्कि ‘कालापानी’ के विभिन्न मिथकों, पक्षों को उजागर करने और भ्रमों को तोड़ने की कोशिश भी देखी जा सकेगी। इस द्वीप समूह के घने जंगलों में छह प्रकार की आदिम जातियाँ – ग्रेट अंडमानी, जारवा, ओंगी, सेंटिनली, निकोबारी और शोम्पेन अनादिकाल से निवास कर रही हैं। उनके जन-जीवन पर भी कुछ कविताओं में चित्रण है। इसके अलावा रॉस द्वीप को नेताजी सुभाषचंद्र बोस के संदर्भ में भी याद किया गया है। 30 दिसंबर 1943 को नेताजी ने जिमखाना मैदान में तिरंगा फहराया और अंडमान तथा निकोबार का नामकरण क्रमशः ‘शहीद’ और ‘स्वराज’ द्वीप किया था। इस गौरवपूर्ण घटना को कविता में दर्ज किया गया है। हिंदी कविता में अंडमान पुस्तक की अवधारणा के पीछे कवि-दृष्टि से अंडमान का रूपायन रहा है। इस संग्रह की कविताएँ पाठकों को पसंद आएँगी और उनमें राष्ट्रीय भावना जगा सकेंगी, ऐसा विश्वास है।
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