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पार्थसारथी रॉक

सर्वेश सिंह

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17074
आईएसबीएन :9789357758550

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"तुमको देख मन आज भी लरज उठता है – मेरे पार्थसारथी रॉक"

कविता लिखना जिन्हें कठिन लगता है और गद्य जिनकी कसौटी है, दोनों ही तरह के रचनाकारों के लिए सर्वेश सिंह की क़लम एक उदाहरण की तरह रोशन है उनकी कविता ‘हिन्दू’ जितनी लोकप्रिय हुई थी, उनकी कहानी ‘मशान भैरवी’ की प्रभविष्णुता उससे कुछ कम न थी जिस पर फ़िल्म बनी और देश-विदेश में सराही गयी। आलोचना के तो वे उस्ताद हैं ! यहाँ बात, उनके उपन्यास पर। पार्थसारथी रॉक सर्वेश सिंह ही लिख सकते थे। सो आप जानेंगे जब इस उपन्यास को पढ़ डालेंगे, अन्तिम पंक्ति तक। ये उपन्यास याद किया जाता रहेगा न सिर्फ़ अपने विन्यास और शब्द शक्ति के लिए, इसके ताक़तवर कथ्य और भारतीय शिल्प की उस परम्परा के लिए भी जिसमें आपने क्लासिक तो कई पढ़े होंगे, लेकिन इस सनातन परम्परा में अब रचनाकार लिखते नहीं क्योंकि इसे साध पाना किसी आचार्य – लेखक का ही सामर्थ्य हो सकता है।

– इन्दिरा दाँगी

★★★

तुमको देख मन आज भी लरज उठता है – मेरे पार्थसारथी रॉक  तुमसे लिपट अपना आप फील होता था। अपना अन्तस्। अपनी सत् चित् वेदना। मेरे लिए तो बस तुम्हीं जेएनयू थे। कहते हैं कि तुम वह पहले पत्थर हो जो जल प्लावन के बाद दिखे – प्राचीनतम फोल्डेड पर्वत। और वैसा ही तुम्हारा रूप। कितना अनोखा, अलग और शानदार। तुमसे लिपट माँ की लिपटन सा महसूस हर बार हुआ। मार्क्स कम आये तो तुम्हारा सहारा। प्रेमिका ना मिली तो तुम्हारी शरण। दुखी हुए तो तुम्हारी छाँव।

बस एक तुम थे जो साक्षी थे। बाकी सब बहते पानी सा था जो एक न एक दिन नष्ट होना था। ये बड़ी सी नौ मंज़िली लाइब्रेरी, ये सारी स्कूल की बिल्डिंगें, सड़कें, गेस्ट हाउसेस, हॉस्टल्स…ये सब डूब जायेंगे भावी किसी जल प्रलय में। फिर पानी से ज़िन्दा निकल कभी न आ पायेंगे। पर तुम फिर भी जीवित रहोगे। फिर निकल कर आओगे और अपने किनारे बस्तियाँ बसाओगे।

– इसी पुस्तक से

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