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चन्द्रेश गुप्त का रचना संसार

राजेन्द्र तिवारी

विनोद श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :416
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16997
आईएसबीएन :9781613017357

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विलक्षण साहित्यकार चन्द्रेश गुप्त का समग्र रटना संसार

सम्पादकीय

सृजनात्मकता के सुमेरु, गीत के पैरोकार चन्द्रेश गुप्त...

 

छात्रों के ‘गुरू जी’, पत्रकारों के ‘दादा’, कवियों के ‘चहेते गीतकार’, पत्र-पत्रिकाओं के ज़िम्मेदार सम्पादक और उपन्यास पाठकों के लोकप्रिय ‘मोहन चौधरी’ चन्द्रेश गुप्त के व्यक्तित्व की विलक्षणता को रेखांकित करने व रचनात्मक आयामों को उद्घाटित करने के लिये आलेख नहीं बल्कि सम्पूर्ण ग्रन्थ की आवश्यकता है। ‘मानव’ होकर ‘महामानव’ जैसी कार्मिक निस्पृहता ऐसी कि प्रतिभा को प्रोत्साहित करने के दायित्व निर्वहन के अलावा कभी स्वयं की स्थापना के बारे में सोचा ही नहीं। गीतकार होकर भी, गीत से ज़्यादा गीत के लिये सोचा, पत्रकार होकर भी अपने बजाय पत्रकारिता के बारे में सोचा, कवि होकर भी कविता की शुचिता के लिये चिन्तित रहे। चन्द्रेश जी के व्यक्तित्व का यही पक्ष, यही सर्वकल्याणक जीवन दर्शन उन्हें श्रद्धेय व सर्वप्रिय ही नहीं बनाता बल्कि सक्रिय संस्थाओं और साहित्यिक सेवाओं से शहर के साहित्य जगत को अपना ऋणी बना लेता है।

चन्द्रेश जी के जीवन दर्शन को समझने के सन्दर्भ में मुझे अपना एक शेर याद आ रहा है कि -

बादशा बेचैन हैं दुनिया पे कब्ज़े के लिए
हम फ़क़ीरों को दिलों पर हुक्मरानी चाहिए

चन्द्रेश जी ने वाक़ई दुनिया की बजाय लोगों के दिलों पर राज किया तभी तो चाहने वालों ने उनका गीत संग्रह ‘सुनो राजा, कहो परजा’ प्रकाशित कराने का निर्णय लिया परन्तु दैवयोग या दुर्भाग्य कहें इसी बीच 2001 में चन्द्रेश जी दुनिया छोड़ गये। हालांकि संग्रह प्रकाशित हुआ परन्तु यथेष्ट चर्चा नहीं हो पाई। वैसे देखा जाय तो उनके गीतों की लोकप्रियता उनके गीतकार की सार्वजनिक पहचान तो रही लेकिन चन्द्रेश जी जैसे बहुआयामी विलक्षण व्यक्तित्व का मूल्यांकन सिर्फ़ उनके गीतों से नहीं किया जा सकता है।

पिछले दिनों श्रद्धेय आनन्द शर्मा समग्र ‘गीत कलश’ के सम्पादन के दौरान अंतरंग मित्र, गीत कवि विनोद श्रीवास्तव ने बताया कि चन्द्रेश जी की सृजन सामग्री का एक झोला मनीष (चन्द्रेश जी का बड़ा बेटा) उन्हें सौंप गया था जो उनके पास है और उन्होंने प्रस्ताव रखा कि यदि सम्भव हो तो चन्द्रेश जी का भी समग्र प्रकाशित हो जाये।

मैंने जब विनोद का प्रस्ताव अपने घनिष्ट व प्रकाशक मित्र गोपाल शुक्ल से साझा किया तो वह सहर्ष तैयार हो गये और ईश्वर कृपा से ‘खुल जा सिम सिम’ की तरह चन्द्रेश जी की उपलब्ध सृजन सम्पदा ‘चन्द्रेश समग्र’ के रूप में आपके सम्मुख है।

यह मेरा सौभाग्य है कि कवि होने के कारण मुझे भी चन्द्रेश जी का भरपूर प्यार-दुलार प्राप्त रहा है। अतः संकलन का सम्पादन दायित्व मेरे लिए बोझ नहीं प्रसन्नता का विषय रहा है। उनके स्नेह का ऋण तो नहीं चुकाया जा सकता परन्तु सुख इस बात का है कि मैं चन्द्रेश जी के रचनात्मक व्यक्तित्व की झलक आप तक पहुँचाने का दायित्व पूरा कर पाया। इस गुरुतर दायित्व के निर्वहन में यथासम्भव सजगता के बाद भी सम्भव है कहीं कोई त्रुटि रह गयी हो एतदर्थ क्षमा याची हूँ।

सविनय
राजेन्द्र तिवारी
मो. 8381828988 

 




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