विविध >> चमत्कारी चिकित्सा विधियाँ एवं प्रयोग चमत्कारी चिकित्सा विधियाँ एवं प्रयोगउमेश पाण्डे
|
1 पाठकों को प्रिय 403 पाठक हैं |
इस पुस्तक में अनेक चमत्कारी चिकित्सा विधियों एवं प्रयोगों का वर्णन है जिनमें से कई विधियाँ एवं प्रयोग सामान्य से हटकर हैं, जैसे...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
विश्व में आज अनेक चिकित्सा विधियां प्रचलित हैं जिनके चमत्कारिक परिणामों
से हर व्यक्त परिचित हैं। किन्तु इस पुस्तक में सामान्य प्रचलित चिकित्सा
विधियों से हटकर अन्य कई सरल एवं प्रभावी विधियों एवं प्रयोगों का वर्णन
किया गया है जिनके द्वारा आम पाठक अत्यधिक लाभान्वित हो सकता है। इसमें आप
पाएँगे—
1. शरीर पर घी की मालिश करने से आप किस प्रकार स्वस्थ रह सकते हैं।
2. हथेलियों के कुछ बिन्दुओं पर मात्र कुछ रंगों के बिन्दु लगाकर आप किसी रोग विशेष को दूर कर सकते हैं।
3. कई बीमारियों को आप यंत्रों एवं मंत्रों के द्वारा भी ठीक कर सकते हैं दर्पण भी आपके रोग हरण में सहायक है।
4. कुछ ऐसी बीमारियाँ और उनकी चिकित्सा जिनका मेडिकल साइंस में शायद उपचार नहीं हैं।
5. आपका अपना घर भी आपको रोगी एवं स्वस्थ बना सकता है।
6. रत्न औषधि निर्माण-रत्न भी सुरक्षित और दवा भी तैयार तथा और भी बहुत कुछ।
1. शरीर पर घी की मालिश करने से आप किस प्रकार स्वस्थ रह सकते हैं।
2. हथेलियों के कुछ बिन्दुओं पर मात्र कुछ रंगों के बिन्दु लगाकर आप किसी रोग विशेष को दूर कर सकते हैं।
3. कई बीमारियों को आप यंत्रों एवं मंत्रों के द्वारा भी ठीक कर सकते हैं दर्पण भी आपके रोग हरण में सहायक है।
4. कुछ ऐसी बीमारियाँ और उनकी चिकित्सा जिनका मेडिकल साइंस में शायद उपचार नहीं हैं।
5. आपका अपना घर भी आपको रोगी एवं स्वस्थ बना सकता है।
6. रत्न औषधि निर्माण-रत्न भी सुरक्षित और दवा भी तैयार तथा और भी बहुत कुछ।
आद्यकथन
हमारे पूर्वजों का ज्ञान हर क्षेत्र में श्रेष्ठ था-इसमें कतई
संदेह
नहीं। अपने दिव्य ज्ञान के आधार पर ही उन्होंने हमारा अनेक क्षेत्रों में
या यूँ कहें कि कदम-कदम पर मार्ग दर्शन किया। यही बात प्राचीन विभिन्न
चिकित्सा पद्धतियों पर भी लागू होती है। उन्होंने हमें स्वस्थ रहने हेतु
अनेक प्रकार की चिकित्सा-विधियों एवं प्रयोगों को बताया, समझाया। उन्हीं
में से कुछ अत्यन्त ही सरल एवं परम प्रभावी चिकित्सा विधियों एवं प्रयोगों
का वर्णन मैंने अपनी इस छोटी-सी कृति में किया है। मैंने इसमें वर्तमान
में अत्यन्त प्रचलित रैकी, चुम्बकीय चिकित्सा, एक्यूपंचर आदि पद्धतियों को
शामिल नहीं किया है। दरअसल उनसे सम्बन्धित भरपूर ज्ञान से पाठक पहले से ही
विज्ञ होंगे—ऐसा मेरा मानना है। क्योंकि उनसे सम्बन्धित साहित्य
बाजारों में प्रचुर मात्रा में है। मेरा विश्वास है कि इस पुस्तक में
वर्णित विभिन्न सरल पद्धतियों से पाठक अवश्य ही लाभान्वित होंगे।
अन्त में, मैं भगवती पॉकेट बुक के श्री राजीव जी अग्रवाल का हृदय से आभारी हूँ जिनकी प्रेरणा एवं सहयोग के बगैर मैं इस कृति को शायद आपके समक्ष नहीं रख पाता।
पुस्तक के संबंध में आपके सुझाव, आलोचना आदि का मुझे इन्तजार रहेगा।
धन्यवाद।
अन्त में, मैं भगवती पॉकेट बुक के श्री राजीव जी अग्रवाल का हृदय से आभारी हूँ जिनकी प्रेरणा एवं सहयोग के बगैर मैं इस कृति को शायद आपके समक्ष नहीं रख पाता।
पुस्तक के संबंध में आपके सुझाव, आलोचना आदि का मुझे इन्तजार रहेगा।
धन्यवाद।
उमेश पाण्डे
विद्वानों के कथन में
प्राच्य विषयों पर सतत अध्ययन-मनन कर जनसाधारण को जीवनोपयोगी दिशा-निर्देश
देने वाले लेखक आजकल विरले ही देखने को मिलते हैं। श्री उमेश पाण्डे
उन्हीं में से एक हैं। अब तक उन्होंने अपनी कई पुस्तकों में ज्योतिष,
वास्तुशास्त्र, अध्यात्म, आयुर्वेद आदि के पुरातन ग्रंथों में वर्णित
तथ्यपरक सामग्री को पूर्णता तार्किक और वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत कर
निस्संदेह सराहनीय कार्य किया है। इसी कड़ी में उनकी नई रचना
‘चमत्कारी चिकित्सा विधियाँ’ पाठकों को तन-मन से
स्वस्थ रहने
की दिशा में नए आयाम देगी। इसे पढ़कर पाठक आधुनिक चिकित्सा पद्धति के
मकड़जाल में और उलझने के बजाय सम्पूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु आशातीत
मार्ग दर्शन पा सकेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।
सन्तोष प्यासी, सम्पादकः हेल्थ और न्यूट्रीशन, मुम्बई
समाज में प्रचलित चिकित्सा पद्धतियाँ दोधारी तलवार का कार्य करती हैं।
रोगों को ठीक करने के बजाय, उसे दबाती हैं, दूसरी ओर उनकी प्रतिक्रियाएँ
नए रोगों को जन्म देती हैं। ऐसी स्थिति में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियाँ
निरापद सिद्ध हुई हैं।
इस पुस्तक में दी गई चिकित्सा पद्धतियाँ रुग्णजनों को स्थायी रोग मुक्ति के साथ-साथ पूर्ण आरोग्य प्रदान करने में सहायक सिद्ध होंगी।
इस पुस्तक में दी गई चिकित्सा पद्धतियाँ रुग्णजनों को स्थायी रोग मुक्ति के साथ-साथ पूर्ण आरोग्य प्रदान करने में सहायक सिद्ध होंगी।
डॉ. बसंत कुमार जोशी, इन्दौर
वर्तमान में प्रचलित परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों में उपल्ब्ध पुस्तकों
में अपना एक पृथक स्थान रखने वाली कृति।
रामबहादुर जायसवाल
अत्यन्त ही सरल भाषा में वर्णित, अनेक
सामान्य
चिकित्सा विधियों को दर्शाने वाली एक अत्यन्त उपयोगी पुस्तक।
डॉ. हौसिला
प्रसाद पाण्डेय,
वास्तुविद, कुण्डा (उ. प्र.)
वास्तुविद, कुण्डा (उ. प्र.)
एक ऐसी कृति जिसमें जन सामान्य के लिए बहुत ही उपयोगी एवं स्वास्थ्य
परोपकारी विधियों को समेटा गया है।
डॉ. एम. एल. गंगवाल
यह पुस्तक अनेक परम उपयोगी, चिकित्सा विधियों को बड़े ही सरल ढंग से
समझाने में सक्षम है।
जी. पी. तिवारी, अपर आयुक्त-सैलटैक्स, इन्दौर
वर्तमान में एक्यूप्रेशर, चुम्बक चिकित्सा, रैकी आदि अनेक चिकित्सा
विधियाँ प्रचलन में हैं किन्तु इन सबके अलावा भी अनेक सरल चिकित्सा
पद्धतियाँ हैं। पुस्तक की यही विषय वस्तु इसे एक विशिष्टता प्रदान करती है।
डॉ. प्रफुल्ल दवे
आर्या औषधि एण्ड फार्मास्युटिकल वर्क्स, इन्दौर
आर्या औषधि एण्ड फार्मास्युटिकल वर्क्स, इन्दौर
एक लोकोपयोगी कृति। पाठक इसके हर पृष्ठ से लाभान्वित होगा।
एस. के. चौधरी (शिक्षाविद्)
पुस्तक का प्रत्येक अंश अपने आप में विलक्षण। सम्पन्न करने में अत्यन्त
सरल प्रयोग। उत्तम भाषा शैली।
सुनील सिद्ध, निदेशक, विमानतल, इन्दौर
एक अद्भुत कृति। हर व्यक्ति के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय रचना। इस पुस्तक
के हर खण्ड में परम उपयोगी सामागी भरी गई है।
नवीन पन्त
विख्यात वरिष्ठ पत्रकार, सेवानिवृत्त समाचार सम्पादक (हिन्दी) आकाशवाणी
पूर्व सूचना अधिकारी, भारत सरकार (वित्तमंत्रालय) नई दिल्ली।
एक अत्यन्त ही उपयोगी एवं प्रत्येक व्यक्ति को पढ़ने योग्य पुस्तक। पुस्तक का हर अंश अत्यन्त सरल एवं प्रभावी लिखा गया है।
एक अत्यन्त ही उपयोगी एवं प्रत्येक व्यक्ति को पढ़ने योग्य पुस्तक। पुस्तक का हर अंश अत्यन्त सरल एवं प्रभावी लिखा गया है।
प्रबोध चंद्र शर्मा
सहायक कार्यपालक अभियंता, विमानतल, इन्दौर
सहायक कार्यपालक अभियंता, विमानतल, इन्दौर
1
घृत कल्प
इन्दौर के महेश नगर क्षेत्र में निवास करने वाले पंडित गोविन्दराम जी ने
बातचीत के दौरान एक बहुत सुन्दर बात कही थी। उन्होंने बताया कि हिन्दू
शास्त्रों में 33 करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है। ठीक इसी प्रकार हमारे
शरीर में भी 33 करोड़ रोम छिद्र हैं। इस प्रकार प्रत्येक रोम में एक देवता
का निवास है। जिस प्रकार किसी भी यज्ञ में शुद्ध घी की हवि दी जाती है और
देवता उसे ग्रहण कर प्रसन्न होते हैं, ठीक यही बात हमारे शरीर के रोम
छिद्रों में उपस्थित देवी-देवताओं पर लागू होती है अर्थात यदि हमारे शरीर
पर शुद्ध घी की मालिश की जावे तो वह न केवल चुस्त-दुरूस्त रहता है बल्कि
उसका रूप सौंदर्य काफी दिनों तक बना रहता है। त्वचा की लोच बनी रहती है;
वह चमकदार बनी रहती है। इसका जीता-जागता उदाहरण स्वयं पंडित गोविन्दराम जी
हैं जो आज 70 वर्ष की आयु में भी चुस्त-स्फूर्त हैं और उनके चेहरे पर एक
विशेष प्रकार का तेज है। घी के द्वारा निम्न अन्य लाभ निम्न हैं—
1. घी का नित्य योग्य सेवन करने से शरीर का बल बना रहता है। शरीर इसके सेवन से पुष्ट बना रहता है।
2. शरीर में जोड़ों पर घी का नित्य मालिश करते रहने से उसकी समस्या खड़ी नहीं होती अर्थात हाथ-पैरों के जोड़ सदैव सक्रिय एवं व्यवस्थित बने रहते हैं।
3. बीस वर्ष पुराना गाय के दूध का घी यदि आँखों में आँजा जावे तो इसके कारण नेत्रों में जाले साफ होते हैं; मोतियाबिन्द समाप्त होता है तथा नेत्र की ज्योति बढ़ती है।
4. जो व्यक्ति रोजाना आँख में घी का अंजन करता है उसके बाल भँवरे के समान काले बने रहते हैं।
5. जो व्यक्ति सुबह के समय एक तोला घी में एक चम्मच भर शक्कर का बूरा मिलावें तथा इसमें एक माशा काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करें तो उसकी स्मृति तेज होती है; दिमाग में तरावट बनी रहती है, नेत्रों की ज्योति तेज होती है तथा बाल काले बने रहते हैं।
1. घी का नित्य योग्य सेवन करने से शरीर का बल बना रहता है। शरीर इसके सेवन से पुष्ट बना रहता है।
2. शरीर में जोड़ों पर घी का नित्य मालिश करते रहने से उसकी समस्या खड़ी नहीं होती अर्थात हाथ-पैरों के जोड़ सदैव सक्रिय एवं व्यवस्थित बने रहते हैं।
3. बीस वर्ष पुराना गाय के दूध का घी यदि आँखों में आँजा जावे तो इसके कारण नेत्रों में जाले साफ होते हैं; मोतियाबिन्द समाप्त होता है तथा नेत्र की ज्योति बढ़ती है।
4. जो व्यक्ति रोजाना आँख में घी का अंजन करता है उसके बाल भँवरे के समान काले बने रहते हैं।
5. जो व्यक्ति सुबह के समय एक तोला घी में एक चम्मच भर शक्कर का बूरा मिलावें तथा इसमें एक माशा काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करें तो उसकी स्मृति तेज होती है; दिमाग में तरावट बनी रहती है, नेत्रों की ज्योति तेज होती है तथा बाल काले बने रहते हैं।
2
गुड़ कल्प
मेरे एक परिचित को गले में कैंसर हो गया था। रोग ऐसी अवस्था में पहुँच
चुका था कि उनके द्वारा भोजन करना तो दूर जल-चाय इत्यादि को निगलना भी
कठिन हो रहा था। एक-एक चम्मच करके बड़े भाई धीरे-धीरे कोई पीने की चीज
ग्रहण कर पाते थे। एक गिलास यदि जल पीना होता था तो उसके लिए एक से दो
घंटे लगते थे। उसी समय उनकी भेंट पं. गोविन्द राम जी से हुई थी। पहली ही
मुलाकात में पं. जी ने उन्हें गुड़ का शर्बत पीने की सलाह दी थी। उनका
कहना था कि गुड़ के शर्बत के पीने से गला खुल जाता है। रोगी ने जब जल
ग्रहण न करने वाली अपनी व्यथा कही, जिस पर पंडित जी ने यही कहा कि आप कैसे
भी करके 1 गिलास गुड़ का शर्बत रोज पीवें। पंडित जी के कहने पर हिम्मत
करके रोग-ग्रसित मेरे परिचित ने उनके कहे अनुसार गुड़ का शर्बत पिया।
परिणाम ये रहा कि एक-दो दिनों में ही वे जल की ज्यादा-ज्यादा मात्रा और भी
आसानी से पीने लगे। शर्बत तो खैर पीते ही थे, वे। गुड़ के शर्बत ने उनकी
उस जटिल अवस्था में उन्हें काफी राहत दी थी । गुड़ का शर्बत पर्याप्त गुड़
को जल में मिलाकर एक-दो उबाली लेकर बनाया जाता था। शुद्धता हेतु छान लेने
में भी कोई हर्ज नहीं। गुड़ का शर्बत गले को खोलने में मुफीद है। गुड़ के
अन्य प्रमुख उपयोग निम्न हैं—
1. जो व्यक्ति रोजाना 10 से 20 ग्राम गुड़ का सेवन करता है उसके शरीर का बल बना रहता है। उसके पैर नहीं दुखते हैं
2. गुड़ की 2-3 तोला मात्रा का नित्य 1 तोला घी के साथ सेवन करने वाले की काम शक्ति में असीमित वृद्धि होती है।
3. गुड़ और सिंकी हुई मूँगफली का सेवन करने वाला शीघ्र पतन के रोग से मुक्त होता है।
4. गुड़ के सेवन से आँत्र साफ हो जाती है। उसमें फँसे हुए बाल इत्यादि भी बाहर निकल जाते हैं।
5. गुड़ का सेवन करने से व्यक्ति को आसानी से सर्दी नहीं होती है।
6. गुड़ और काली मिर्च का सेवन कफ़ समाप्त करता है।
7. गुड़ और छोटी पीपल नग-2 मिलाकर लेने से उत्तम निद्रा आ जाती है।
1. जो व्यक्ति रोजाना 10 से 20 ग्राम गुड़ का सेवन करता है उसके शरीर का बल बना रहता है। उसके पैर नहीं दुखते हैं
2. गुड़ की 2-3 तोला मात्रा का नित्य 1 तोला घी के साथ सेवन करने वाले की काम शक्ति में असीमित वृद्धि होती है।
3. गुड़ और सिंकी हुई मूँगफली का सेवन करने वाला शीघ्र पतन के रोग से मुक्त होता है।
4. गुड़ के सेवन से आँत्र साफ हो जाती है। उसमें फँसे हुए बाल इत्यादि भी बाहर निकल जाते हैं।
5. गुड़ का सेवन करने से व्यक्ति को आसानी से सर्दी नहीं होती है।
6. गुड़ और काली मिर्च का सेवन कफ़ समाप्त करता है।
7. गुड़ और छोटी पीपल नग-2 मिलाकर लेने से उत्तम निद्रा आ जाती है।
3
ताल चिकित्सा
भारत में अति प्राचीनकाल से खुशी के अवसरों पर ताली बजाने का विधान है।
दरअसल ताली बजाने से जहाँ एक ओर खुशी का इजहार किया जाता है वहीं
अप्रत्यक्ष रूप से ताली बजाने वाला स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त करता है।
ताली का विशेष प्रभाव उस समय और भी अधिक होता है जबकि इस क्रिया को बिना
हाथों को मोड़े हुए सम्पन्न किया जावे। यदि ताली बजाने की कसरत सुबह-सवेरे
सूर्योदय के समय खुली हवा में किसी भवन की छत पर अथवा गहरे घास के मैदान
में सम्पन्न की जावे तो और भी उत्तम। ताली बजाते समय पूर्वाभिमुख होकर यह
कार्य सम्पन्न करने से कई गुना लाभ होता है।
ताली बजाते समय सीधे खड़े होकर अपने हाथों को बिना मोड़े ठीक सामने, सिर के ऊपर तथा पीछे की तरफ ले जाकर प्रत्येक तरफ 10-10 ताल देवें। यह कार्य तेजी से करें।
ऐसा करने से जहाँ एक ओर हथेलियों पर चोट होने से उनकी गर्मी बढ़ेगी, उन पर दबाव बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर इसके परिणाम स्वरूप श्वांसोच्छवास की गति बढे़गी। इस क्रिया कलाप के परिणाम स्वरूप शरीर में चुस्ती-फुर्ती बढ़ती है। रक्त का प्रवाह शरीर में नियमित होता है तथा मोटापा नहीं चढ़ता।
ताली बजाते समय अपने शरीर को व्यायाम का रूप देते हुए यदि हिलाया-डुलाया जाए तो इसके परिणाम और भी उत्तम प्राप्त होते हैं, क्योंकि उस परिस्थिति में प्रयोग करता की श्वांसोच्छवास की गतियाँ तीव्र हो जाती हैं जिसके कारण सुबह-सवेरे की अधिकाधिक शुद्ध वायु का वह आवश्यकता से अधिक सेवन कर पाता है।
ताली बजाते समय सीधे खड़े होकर अपने हाथों को बिना मोड़े ठीक सामने, सिर के ऊपर तथा पीछे की तरफ ले जाकर प्रत्येक तरफ 10-10 ताल देवें। यह कार्य तेजी से करें।
ऐसा करने से जहाँ एक ओर हथेलियों पर चोट होने से उनकी गर्मी बढ़ेगी, उन पर दबाव बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर इसके परिणाम स्वरूप श्वांसोच्छवास की गति बढे़गी। इस क्रिया कलाप के परिणाम स्वरूप शरीर में चुस्ती-फुर्ती बढ़ती है। रक्त का प्रवाह शरीर में नियमित होता है तथा मोटापा नहीं चढ़ता।
ताली बजाते समय अपने शरीर को व्यायाम का रूप देते हुए यदि हिलाया-डुलाया जाए तो इसके परिणाम और भी उत्तम प्राप्त होते हैं, क्योंकि उस परिस्थिति में प्रयोग करता की श्वांसोच्छवास की गतियाँ तीव्र हो जाती हैं जिसके कारण सुबह-सवेरे की अधिकाधिक शुद्ध वायु का वह आवश्यकता से अधिक सेवन कर पाता है।
4
दर्पण चिकित्सा
इस चिकित्सा पद्धति को आत्मोपचार पद्धति भी कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें
रोगी स्वयं चिकित्सक होता है। इसे दर्पण चिकित्सा इसलिए कहते हैं, क्योंकि
इसमें एक दर्पण की आवश्यकता अनिवार्य रूप से पड़ती है।
इस अत्यन्त ही सरल चिकित्सा विधि के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति जो कि रोगी हो अथवा नहीं को एक दर्पण के समक्ष पहले खड़ा होना पड़ता है। दर्पण ऐसे आकार का हो कि उसमें व्यक्ति का पूर्ण स्पष्ट प्रतिबिम्ब दिखाई दे। अब, इस दर्पण के समक्ष सीधे खड़े होकर रोगी ऊपर से नीचे तक अपने आप को ध्यान से देखे। तदुपरान्त वह अपनी स्वयं की आँखों को दर्पण में देखते हुए एकाग्रभाव से यह भावना करे कि मेरे शरीर से ‘‘फलां’’ रोग जा रहा है; मैं इस रोग से मुक्त हो रहा हूँ, यह रोग मुझे मुक्त कर रहा है.......आदि-आदि। ऐसी भावना दर्पण के समक्ष खड़े होकर 5 से 10 मिनट तक प्रातःकाल एवं सायंकाल को करें। इसे निरन्तर सम्पन्न करने से रोग शरीर से जाता रहता है।
जो लोग स्वस्थ हैं उन्हें भी दर्पण के सामने खड़े होकर यह भावना करनी चाहिए कि ‘‘मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ। मुझे कोई रोग हो ही नहीं सकता।’’ ऐसी भावना नित्य सुबह और शाम दर्पण के समक्ष करने से शरीर में एक अदृश्य ऊर्जा की उत्पत्ति हो जाती है जो कि किसी भी व्यक्ति को स्वस्थ रखने में पूर्ण सक्षम होती है।
दर्पण चिकित्सा हेतु जिस भी दपर्ण का प्रयोग किया जाए वह दोष रहित हो, अर्थात ऐसा न हो कि उसमें संबंधित व्यक्ति का प्रतिबिम्ब विकृत बने। इसी प्रकार दर्पण का पॉलिश भी जगह-जगह से निकला हुआ न हो। कहने का तात्पर्य ये कि सम्बन्धित व्यक्ति का सही-सही एवं सुस्पष्ट प्रतिबिम्ब उसमें दिखाई देवे।
इस अत्यन्त ही सरल चिकित्सा विधि के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति जो कि रोगी हो अथवा नहीं को एक दर्पण के समक्ष पहले खड़ा होना पड़ता है। दर्पण ऐसे आकार का हो कि उसमें व्यक्ति का पूर्ण स्पष्ट प्रतिबिम्ब दिखाई दे। अब, इस दर्पण के समक्ष सीधे खड़े होकर रोगी ऊपर से नीचे तक अपने आप को ध्यान से देखे। तदुपरान्त वह अपनी स्वयं की आँखों को दर्पण में देखते हुए एकाग्रभाव से यह भावना करे कि मेरे शरीर से ‘‘फलां’’ रोग जा रहा है; मैं इस रोग से मुक्त हो रहा हूँ, यह रोग मुझे मुक्त कर रहा है.......आदि-आदि। ऐसी भावना दर्पण के समक्ष खड़े होकर 5 से 10 मिनट तक प्रातःकाल एवं सायंकाल को करें। इसे निरन्तर सम्पन्न करने से रोग शरीर से जाता रहता है।
जो लोग स्वस्थ हैं उन्हें भी दर्पण के सामने खड़े होकर यह भावना करनी चाहिए कि ‘‘मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ। मुझे कोई रोग हो ही नहीं सकता।’’ ऐसी भावना नित्य सुबह और शाम दर्पण के समक्ष करने से शरीर में एक अदृश्य ऊर्जा की उत्पत्ति हो जाती है जो कि किसी भी व्यक्ति को स्वस्थ रखने में पूर्ण सक्षम होती है।
दर्पण चिकित्सा हेतु जिस भी दपर्ण का प्रयोग किया जाए वह दोष रहित हो, अर्थात ऐसा न हो कि उसमें संबंधित व्यक्ति का प्रतिबिम्ब विकृत बने। इसी प्रकार दर्पण का पॉलिश भी जगह-जगह से निकला हुआ न हो। कहने का तात्पर्य ये कि सम्बन्धित व्यक्ति का सही-सही एवं सुस्पष्ट प्रतिबिम्ब उसमें दिखाई देवे।
5
भ्रमण चिकित्सा
भ्रमण करना अर्थात घूमना या टहलना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से
शरीर के अनेक अवयव सक्रिय बने रहते हैं तथा उनमें एक विशिष्ठ प्रकार की
ऊर्जा का संचार होता है। इसके परिणाम स्वरूप शरीर में, जहाँ एक ओर कई
रोगों का शमन होता है, वहीं दूसरी ओर इसके परिणाम स्वरूप शरीर में कई रोग
पनप ही नहीं पाते।
सर्वप्रथम हम भ्रमण करने से सम्बन्धित कुछ विशेष नियमों पर गौर करेंगे जो कि निम्नांकित हैं—
1. भ्रमण हेतु सुबह-सबेरे का समय (5 से 7 के बीच) सर्वोपयुक्त होता है, क्योंकि इस समय वायु शुद्ध होती है तथा उसमें प्रदूषकों का अभाव होता है। इसी प्रकार सुबह की वायु में सूर्य की अप्रत्यक्ष धनात्मक किरणें होती हैं। ज्ञातव्य है की सूर्य की इन्हीं अप्रत्यक्ष किरणों को सर्वप्रथम मुर्गा प्राप्त करता है और इसी लिए वह बांग देने लगता है।
2. सायं काल के समय भी घूमा जा सकता है। हालांकि शाम के समय भ्रमण में शहर क्षेत्र की वायु में प्रदूषण होता है।
3. भ्रमण करने वाले को सामान्य गति से ही चलना चाहिए अर्थात घूमने में ऐसा न हो कि हमारे शरीर पर जोर आवे अथवा उसकी ऊर्जा की हानि हो।
4. दोपहर के समय घूमना लाभदायक नहीं है।
5. घूमते समय शरीर को तीव्र ठण्ड अथवा तीव्र धूप से बचाना चाहिए।
6. घूमते समय नंगे पैर रहने से और अधिक लाभ होता है। कम से कम हरी घास के ऊपर सदैव नंगे पैर ही घूमना चाहिए।
7. घूमते समय हाथों को भी आवश्यक गति देनी चाहिए। अब, हम घूमने से शरीर को प्राप्त होने वाले कुछ लाभों को देखते हैं—
1. नित्य 2-3 कि.मी. घूमने वाले के हाथ-पैरों में एक विशेष प्रकार की ताकत आ जाती है परिणाम स्वरूप उनका दुखना बंद हो जाता है।
2. घूमने से हाथ पैरों के साथ-साथ पेट एवं पीठ की भी कसरत होती है; परिणामस्वरूप पेट का बाहर निकलना नियंत्रित होता है-पीठ में दर्द नहीं होता।
3. मधुमेह के रोगी घूमने से परम लाभान्वित होते हैं।
4. घूमने के परिणामस्वरूप शरीर में रक्त का प्रवाह नियमित होता है।
5. हरी घास पर नंगे पैर रोजाना कुछ समय तक घूमने-टहलने से नेत्रों की ज्योति तीव्र होती है। बाल काले बने रहते है।
6. घूमने से श्वांसोच्छवास की गति इस प्रकार होती है कि जिसके कारण फेफड़ों की कसरत होती है।
7. सुबह के समय घूमने से शुद्ध वायु हमारे रक्त में जाती है, जिसके परिणाम स्वरुप शरीर के विभिन्न अवयव चुस्त-फुर्त होते हैं। शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
8. घूमने से शरीर में पर्याप्त गरमी बनी रहती है।
9. घूमने के परिणाम स्वरूप मस्तिष्क के चौकन्ने बने रहने में वृद्धि होती है।
10. नंगे पैर घूमने से पद तल में उपस्थित अनेक बिन्दुओं पर दबाव पड़ता है। परिणामस्वरुप ‘एक्यूप्रेशर’ चिकित्सा के सूत्र लागू हो जाते हैं तथा शरीर अनेक व्याधियों से स्वतः मुक्त हो जाता है।
सर्वप्रथम हम भ्रमण करने से सम्बन्धित कुछ विशेष नियमों पर गौर करेंगे जो कि निम्नांकित हैं—
1. भ्रमण हेतु सुबह-सबेरे का समय (5 से 7 के बीच) सर्वोपयुक्त होता है, क्योंकि इस समय वायु शुद्ध होती है तथा उसमें प्रदूषकों का अभाव होता है। इसी प्रकार सुबह की वायु में सूर्य की अप्रत्यक्ष धनात्मक किरणें होती हैं। ज्ञातव्य है की सूर्य की इन्हीं अप्रत्यक्ष किरणों को सर्वप्रथम मुर्गा प्राप्त करता है और इसी लिए वह बांग देने लगता है।
2. सायं काल के समय भी घूमा जा सकता है। हालांकि शाम के समय भ्रमण में शहर क्षेत्र की वायु में प्रदूषण होता है।
3. भ्रमण करने वाले को सामान्य गति से ही चलना चाहिए अर्थात घूमने में ऐसा न हो कि हमारे शरीर पर जोर आवे अथवा उसकी ऊर्जा की हानि हो।
4. दोपहर के समय घूमना लाभदायक नहीं है।
5. घूमते समय शरीर को तीव्र ठण्ड अथवा तीव्र धूप से बचाना चाहिए।
6. घूमते समय नंगे पैर रहने से और अधिक लाभ होता है। कम से कम हरी घास के ऊपर सदैव नंगे पैर ही घूमना चाहिए।
7. घूमते समय हाथों को भी आवश्यक गति देनी चाहिए। अब, हम घूमने से शरीर को प्राप्त होने वाले कुछ लाभों को देखते हैं—
1. नित्य 2-3 कि.मी. घूमने वाले के हाथ-पैरों में एक विशेष प्रकार की ताकत आ जाती है परिणाम स्वरूप उनका दुखना बंद हो जाता है।
2. घूमने से हाथ पैरों के साथ-साथ पेट एवं पीठ की भी कसरत होती है; परिणामस्वरूप पेट का बाहर निकलना नियंत्रित होता है-पीठ में दर्द नहीं होता।
3. मधुमेह के रोगी घूमने से परम लाभान्वित होते हैं।
4. घूमने के परिणामस्वरूप शरीर में रक्त का प्रवाह नियमित होता है।
5. हरी घास पर नंगे पैर रोजाना कुछ समय तक घूमने-टहलने से नेत्रों की ज्योति तीव्र होती है। बाल काले बने रहते है।
6. घूमने से श्वांसोच्छवास की गति इस प्रकार होती है कि जिसके कारण फेफड़ों की कसरत होती है।
7. सुबह के समय घूमने से शुद्ध वायु हमारे रक्त में जाती है, जिसके परिणाम स्वरुप शरीर के विभिन्न अवयव चुस्त-फुर्त होते हैं। शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
8. घूमने से शरीर में पर्याप्त गरमी बनी रहती है।
9. घूमने के परिणाम स्वरूप मस्तिष्क के चौकन्ने बने रहने में वृद्धि होती है।
10. नंगे पैर घूमने से पद तल में उपस्थित अनेक बिन्दुओं पर दबाव पड़ता है। परिणामस्वरुप ‘एक्यूप्रेशर’ चिकित्सा के सूत्र लागू हो जाते हैं तथा शरीर अनेक व्याधियों से स्वतः मुक्त हो जाता है।
6
सायकल चालन चिकित्सा
यह एक अत्यन्त ही सरल चिकित्सा पद्धति है, जिसके अन्तर्गत नियमित सायकल
चलाकर कई रोगों से निजात मिलती है शरीर स्वस्थ रहता है। इस विधि में
रोजाना मात्र 4-5 कि. मी. सायकल चलानी पड़ती है। इससे
निम्नांकित
लाभ होते हैं—
1. सायकल चलाने से हाथ-पैरों की विशिष्ठ कसरत होती है, परिणामस्वरूप वे मजबूत होते हैं।
2. सायकल चलाने के परिणामस्वरुप शरीर में रक्त का संचार तीव्र होता है जिसके कारण शरीर ऊर्जा में वृद्धि होती है एवं सायकल चालक चुस्त बना रहता है।
3. सायकल चालन के परिणामस्वरुप पेट की मांसेशियों की विशिष्ट कसरत होती है जिसके कारण पेट बाहर नहीं निकलता है एवं जिन लोगों को तोंद बाहर निकले रहने की शिकायत रहती है वह दूर होती है।
4. सायकल चलाने वाले से मोटापा एक लाख कोस दूर रहता है।
5. सायकल चलाने वाला आसानी से डायबिटीज का शिकार नहीं होता है।
6. सायकल चलाने से अंडकोष गुदा के बीच की मांसपेशियां योग्य दबती रहती हैं जिसके परिणामस्वरूप चालक शीघ्र पतन का शिकार नहीं होता। उसकी काम शक्ति में वृद्धि होती है।
7. सायकल चालन से व्यक्ति के पदतल में उपस्थित विभिन्न बिन्दुओं पर भी दाब लगता है जिससे जाने अनजाने शरीर की कई ब्याधियाँ स्वतः ही ठीक होती रहती हैं।
वर्तमान में घरों में स्थिर रखी रहने वाली सायकलें भी बाजार में उपलब्ध हैं जिन्हें घर में रहते हुए भी इस चिकित्सा का लाभ लिया जा सकता है। यही नहीं महिलाएँ भी उससे लाभान्वित हो सकती हैं।
1. सायकल चलाने से हाथ-पैरों की विशिष्ठ कसरत होती है, परिणामस्वरूप वे मजबूत होते हैं।
2. सायकल चलाने के परिणामस्वरुप शरीर में रक्त का संचार तीव्र होता है जिसके कारण शरीर ऊर्जा में वृद्धि होती है एवं सायकल चालक चुस्त बना रहता है।
3. सायकल चालन के परिणामस्वरुप पेट की मांसेशियों की विशिष्ट कसरत होती है जिसके कारण पेट बाहर नहीं निकलता है एवं जिन लोगों को तोंद बाहर निकले रहने की शिकायत रहती है वह दूर होती है।
4. सायकल चलाने वाले से मोटापा एक लाख कोस दूर रहता है।
5. सायकल चलाने वाला आसानी से डायबिटीज का शिकार नहीं होता है।
6. सायकल चलाने से अंडकोष गुदा के बीच की मांसपेशियां योग्य दबती रहती हैं जिसके परिणामस्वरूप चालक शीघ्र पतन का शिकार नहीं होता। उसकी काम शक्ति में वृद्धि होती है।
7. सायकल चालन से व्यक्ति के पदतल में उपस्थित विभिन्न बिन्दुओं पर भी दाब लगता है जिससे जाने अनजाने शरीर की कई ब्याधियाँ स्वतः ही ठीक होती रहती हैं।
वर्तमान में घरों में स्थिर रखी रहने वाली सायकलें भी बाजार में उपलब्ध हैं जिन्हें घर में रहते हुए भी इस चिकित्सा का लाभ लिया जा सकता है। यही नहीं महिलाएँ भी उससे लाभान्वित हो सकती हैं।
|
- घृत कल्प
- गुड़ कल्प
- ताल चिकित्सा
- दर्पण चिकित्सा
- भ्रमण चिकित्सा
- सायकल चालन चिकित्सा
- उपवास चिकित्सा
- विचित्र निम्बकल्प चिकित्सा
- नस्य चिकित्सा
- चित्रोपचार विधि
- कर्ण एवं नासा छेदनोपचार
- कथा चिकित्सा
- एला कल्प
- मैथी दाना कल्प
- जल चिकित्सा
- तुलसी कल्प
- सूर्य नमस्कार चिकित्सा
- म्यूजिक थेरेपी
- गुप्त आत्मशक्ति चिकित्सा
- मृदा चिकित्सा
- यंत्र चिकित्सा
- हस्त मुद्रा चिकित्सा
- उषःपान चिकित्सा
- कर्ण बिन्दु मालिश चिकित्सा
- स्वरोदय विज्ञान चिकित्सा
- मंत्र चिकित्सा प्रयोग
- शयन चिकित्सा
- शंख चिकित्सा प्रयोग
- सरसों-तेल कल्प
- मधु चिकित्सा प्रयोग
- हरिद्रा कल्प
- नेत्र-रक्षार्थ प्रयोग
- सूर्य स्नान चिकित्सा
- तंत्र चिकित्सा प्रयोग
- आभूषणों से स्वास्थ्य रक्षा
- आहार एवं स्वास्थ्य
- जोड़ (अस्थि संधि) चिकित्सा प्रयोग
- कहावतों में छुपे स्वास्थ्य रहस्य
- झूला चिकित्सा
- पिरामिड चिकित्सा
- यिन-यैँग चिकित्सा
- गौमूत्र चिकित्सा
- पुष्प चिकित्सा
- पंच धातु चिकित्सा
- भस्म चिकित्सा
- सूर्य औषधियाँ
- रत्न-चिकित्सा
- रुद्राक्ष चिकित्सा प्रयोग
- रंग चिकित्सा पद्धति
- प्रकृति संदेश चिकित्सा
- त्रिविष, पंचविष एवं पंच तत्त्व सिद्धान्त
- एक विशिष्ट दाब एवं रंग चिकित्सा
- ज्योतिष चिकित्सा
- आस्था चिकित्सा
- गेहूँ रस (अर्थात् हरा खून) चिकित्सा
- सरल यौगिक क्रियाएँ
- गौदुग्ध चिकित्सा प्रयोग
- वास्तु से स्वास्थ्य
- पदार्थ प्रकृति चिकित्सा
- दीर्घायु सम्बन्धी कुछ प्राचीन नियम
- विशेष आभार
अनुक्रम
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book