नई पुस्तकें >> जो विरोधी थे उन दिनों जो विरोधी थे उन दिनोंराजकुमार कुम्भज
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राजकुमार कुम्भज की कविताएँ
घर में
घर में
इन्सान कम और चीज़ें ज़्यादा हैं आजकल
जो, रिश्तों की बिजली गुल करने पर आमादा
चिड़िया चुगती है दाना और देखता हूँ मैं टकटक
और फिर भूखा ही सो जाता हूँ आजकल
शायद, यह घर नहीं, देश है।
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