विविध >> लिखावट से व्यक्तित्व जानिए लिखावट से व्यक्तित्व जानिएराजीव अग्रवाल
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लिखावट के अध्ययन से हम किसी भी व्यक्ति के रहन, सहन, आदतें, व्यवहार, विचारधारा एवं जीवन मूल्यों के संबंध में जान सकते हैं।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
हम जो कुछ भी लिखते हैं, वह हमारे व्यक्तित्व का आईना होता है। इस प्रकार
लिखावट के अध्ययन से हम किसी भी व्यक्ति के रहन, सहन, आदतें, व्यवहार,
विचारधारा एवं जीवन मूल्यों के संबंध में जान सकते हैं। जैसे—
1. लिखावट में ऊपरी भाग के अक्षरों का आकार छोटा है तो व्यक्ति में उत्साह की कमी है तथा अक्षरों का ऊपर से टूटा हुआ होना बताता है कि व्यक्ति के शरीर के ऊपरी भाग में कोई बड़ी बीमारी अपनी जगह बना रही है
2. व्यक्ति की लिखावट का मध्य भाग यदि औसत आकार का है, वह व्यक्ति साधारण है और मानसिक रूप से सन्तुलित है।
3. लिखावट में यदि मध्य भाग के अक्षर छोटे-बड़े आकार में लिखे गये हैं, तो यह समझना चाहिए कि उसकी निर्णय लेने की क्षमता ठीक नहीं है।
4. लिखावट में अक्षरों का निचला भाग व्यक्ति के प्राकृतिक स्वभाव को बताता है तथा इस बात का भी सूचक है कि सैक्स में व्यक्ति की रुचि कहाँ तक है।
5. लिखावट में निचले भाग में लिखे गये अक्षर यदि नुकीले हैं तो व्यक्ति के प्राकृतिक स्वभाव में कोई बड़ा अवरोध है।
1. लिखावट में ऊपरी भाग के अक्षरों का आकार छोटा है तो व्यक्ति में उत्साह की कमी है तथा अक्षरों का ऊपर से टूटा हुआ होना बताता है कि व्यक्ति के शरीर के ऊपरी भाग में कोई बड़ी बीमारी अपनी जगह बना रही है
2. व्यक्ति की लिखावट का मध्य भाग यदि औसत आकार का है, वह व्यक्ति साधारण है और मानसिक रूप से सन्तुलित है।
3. लिखावट में यदि मध्य भाग के अक्षर छोटे-बड़े आकार में लिखे गये हैं, तो यह समझना चाहिए कि उसकी निर्णय लेने की क्षमता ठीक नहीं है।
4. लिखावट में अक्षरों का निचला भाग व्यक्ति के प्राकृतिक स्वभाव को बताता है तथा इस बात का भी सूचक है कि सैक्स में व्यक्ति की रुचि कहाँ तक है।
5. लिखावट में निचले भाग में लिखे गये अक्षर यदि नुकीले हैं तो व्यक्ति के प्राकृतिक स्वभाव में कोई बड़ा अवरोध है।
अपनी बात
लिखावट का हमारे व्यक्तित्व से बड़ा अटूट सम्बन्ध है, जिस प्रकार प्रत्येक
व्यक्ति का व्यक्तित्व दूसरे व्यक्ति से भिन्न होता है, उसी प्रकार
प्रत्येक व्यक्ति की लिखावट भी दूसरे व्यक्ति से भिन्न होती है।
काफी समय से मैं विभिन्न लिखावटों का अवलोकन कर रहा था और मैंने महसूस किया है कि प्रत्येक पत्र की लिखावट की बनावट, लय और गति का अध्ययन करते हुए एक ही निगाह में लिखने वाले व्यक्ति के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है।
इस तथ्य को और गहराई से समझने के लिए मैंने अपनी बेटियों तान्या एवं राशि की लिखावट का अवलोकन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यदि उनकी लिखावट में सुधार हो जाये तो उनकी शरारतों में कमी आ सकती है। मैंने उन दोनों को समझाया और उन्हें लिखावट सुधार कर लिखने को कहा। उन्होंने मेरी आज्ञा का अनुसरण किया। कुछ दिनों बाद मैंने यह अनुभव किया कि उनकी शरारतों में काफी कमी आ गई है और उनके स्वभाव में भी बहुत सुधार हुआ है। मैंने तुरंत उनकी लिखावट का अवलोकन किया तो पाया कि उन्होंने लिखावट को मेरे बताये हुए ढंग के अनुसार ही बदला है। मैंने दोनों बेटियों को खूब सराहा और यह भी बताया कि लिखावट बदलने से ही तुम्हारी शरारतों में कमी आई है और स्वभाव में भी सुधार हुआ है। दोनों बहुत खुश हुईं और उसके बाद तो हर दूसरे दिन दोनों मुझे अपनी लिखावट दिखाती हैं और पूछतीं हैं—पापा, बताइये अब हमारी लिखावट कैसी है। उनकी लगन और उत्सुकता देखकर मेरे मन में यह विचार आया कि यदि इन लड़कियों में लिखावट को लेकर इतनी लगन और उत्साह है, जो सामान्य जन को भी लाभान्वित होना चाहिए। बस तभी से मन में लिखावट पर पुस्तक लिखने का विचार आया और पुस्तक आपके सामने प्रस्तुत है।
मैं आभारी हूँ भाई समान राजदीपक मिश्रा का जिन्होंने यदि मुझे प्रोत्साहित नहीं किया होता, तो मैं शायद यह पुस्तक कभी लिख ही नहीं पाता।
इस पुस्तक के लेखन में मेरी पुत्नी रूबी ने जो सहयोग मुझे दिया है, वह सराहनीय है। मैं अपने पूज्य पिताजी, माताजी, आदरणीय जीजाजी श्री अरविन्द अग्रवाल एवं दीदी, भाई श्री रवि अग्रवाल का भी आभारी हूँ, जिन्होंने हृदय से इस पुस्तक के सृजन में सहयोग किया है।
पुस्तक के सम्बन्ध में आपके विचार एवं सुझाव का मुझे हमेशा इंतजार रहेगा। आप कभी कोई भी जानकारी पत्र या फोन से प्राप्त कर सकते हैं।
धन्यवाद
काफी समय से मैं विभिन्न लिखावटों का अवलोकन कर रहा था और मैंने महसूस किया है कि प्रत्येक पत्र की लिखावट की बनावट, लय और गति का अध्ययन करते हुए एक ही निगाह में लिखने वाले व्यक्ति के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है।
इस तथ्य को और गहराई से समझने के लिए मैंने अपनी बेटियों तान्या एवं राशि की लिखावट का अवलोकन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यदि उनकी लिखावट में सुधार हो जाये तो उनकी शरारतों में कमी आ सकती है। मैंने उन दोनों को समझाया और उन्हें लिखावट सुधार कर लिखने को कहा। उन्होंने मेरी आज्ञा का अनुसरण किया। कुछ दिनों बाद मैंने यह अनुभव किया कि उनकी शरारतों में काफी कमी आ गई है और उनके स्वभाव में भी बहुत सुधार हुआ है। मैंने तुरंत उनकी लिखावट का अवलोकन किया तो पाया कि उन्होंने लिखावट को मेरे बताये हुए ढंग के अनुसार ही बदला है। मैंने दोनों बेटियों को खूब सराहा और यह भी बताया कि लिखावट बदलने से ही तुम्हारी शरारतों में कमी आई है और स्वभाव में भी सुधार हुआ है। दोनों बहुत खुश हुईं और उसके बाद तो हर दूसरे दिन दोनों मुझे अपनी लिखावट दिखाती हैं और पूछतीं हैं—पापा, बताइये अब हमारी लिखावट कैसी है। उनकी लगन और उत्सुकता देखकर मेरे मन में यह विचार आया कि यदि इन लड़कियों में लिखावट को लेकर इतनी लगन और उत्साह है, जो सामान्य जन को भी लाभान्वित होना चाहिए। बस तभी से मन में लिखावट पर पुस्तक लिखने का विचार आया और पुस्तक आपके सामने प्रस्तुत है।
मैं आभारी हूँ भाई समान राजदीपक मिश्रा का जिन्होंने यदि मुझे प्रोत्साहित नहीं किया होता, तो मैं शायद यह पुस्तक कभी लिख ही नहीं पाता।
इस पुस्तक के लेखन में मेरी पुत्नी रूबी ने जो सहयोग मुझे दिया है, वह सराहनीय है। मैं अपने पूज्य पिताजी, माताजी, आदरणीय जीजाजी श्री अरविन्द अग्रवाल एवं दीदी, भाई श्री रवि अग्रवाल का भी आभारी हूँ, जिन्होंने हृदय से इस पुस्तक के सृजन में सहयोग किया है।
पुस्तक के सम्बन्ध में आपके विचार एवं सुझाव का मुझे हमेशा इंतजार रहेगा। आप कभी कोई भी जानकारी पत्र या फोन से प्राप्त कर सकते हैं।
धन्यवाद
आपका राजीव
1
लिखावट सब कुछ बताती है
हम जो कुछ भी लिखते हैं, वह हमारे व्यक्तित्व का आईना होता है। लिखावट के
अध्ययन से हम किसी भी व्यक्ति के बारे में जानकारी ले सकते हैं। जब
प्रारम्भ में लिखावट सिखायी जाती है तो सभी बच्चों को एक भी प्रकार से
लिखना सिखाया जाता है। समय के साथ-साथ जैसे-जैसे व्यक्ति के व्यक्तित्व
में परिवर्तन होता है, वैसे-वैसे प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व दूसरे
व्यक्ति से भिन्न हो जाता है। उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की लिखावट भी
अलग-अलग रूप ले लेती है। लिखावट की बनावट, लय और गति का अध्ययन करते हुए
हम एक ही निगाह में लिखने वाले व्यक्ति के बारे में सब कुछ जान सकते हैं।
लिखावट में न तो भाषा का कोई महत्त्व है और न ही शब्दों का। लिखावट की बनावट ही सब कुछ है। हर लिखावट में कुछ विशेषता होती है जिसके कारण वह अन्य लिखावटों से भिन्न दिखायी देती है। यह विशेषता व्यक्ति विशेष के गुणों की तरफ इशारा करती है। लिखावट में भाषा के अलावा बिन्दु, चिन्ह तथा आकृतियाँ भी होती हैं। इनके भी अर्थ हैं।
हम व्यक्ति के व्यक्तित्व का अवलोकन उसकी लिखावट में कर सकते हैं। क्योंकि लिखावट अनजाने में की गई अभिव्यक्ति होती है, अतः व्यक्ति की चिंता, उत्साह, सामाजिक व्यवहार, शारीरिक, मानसिक क्षमतायें, एवं कल्पना शक्ति, आदि लक्षणों का अवलोक हम उसकी लिखावट में कर सकते हैं।
समय के साथ-साथ जैसे-जैसे व्यक्ति के विचार, भावनाएँ, क्रिया-कलाप परिवर्तित होते हैं उसी के साथ-साथ उसकी लिखावट भी अपनी रूप बदलती जाती है। क्योंकि हमारा हाथ तो एक उपकरण के समान है, हम जो भी सोचते है, विचारते हैं, वह सब हम अपने हाथ के माध्यम से अनजाने में कागज पर लिखावट के रूप में उतार देते हैं। कहते हैं कि यदि मन उदास हो तो कुछ लिख लें, मन हल्का हो जायेगा।
अक्सर व्यक्ति अपनी दैनिक दिनचर्या रात्रि में डायरी में लिखते है, जिसका यही अर्थ है कि व्यक्ति जाने-अनजाने में की गई गलतियों या उपलब्धियों आदि को डायरी में लिखकर अपने-आपको हल्का महसूस करते हैं। अपराधी प्रवृत्ति के अनेक संकेत हम उसकी लिखावट का अध्ययन कर जान सकते हैं। इसीलिए लिखावट अपराधियों को पकड़ने के लिए एक बड़ा साधन बन गया है।
लिखावट को सुधरवाकर बच्चों को छोटी उम्र में ही बिगड़ने से रोका जा सकता है और उन्हें सुधारा जा सकता है।
लिखावट की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसकी नकल नहीं हो सकती है। यह पूर्णतया व्यक्तिगत होता है। लिखावट के अध्ययन से व्यक्ति के चिन्तन का स्तर और उसके सभी गुणों का अवलोकन एवं आंकलन किया जा सकता है। इसीलिए लिखावट को हम व्यक्ति का व्यक्तित्व भी कह सकते हैं।
कुछ व्यक्ति अपनी लिखावट में अक्सर परिवर्तन करते रहते हैं।
लिखावट में लगातार होने वाले परिवर्तन अच्छे नहीं कहे जा सकते हैं। यह अनियंत्रित और अस्थिर मनःस्थिति का संकेत है। ऐसे लोग भावनात्मक रूप से अस्थिर होते हैं।
लिखावट की बनावट
लिखावट में अक्षर चाहे कैसे भी लिखे जायें, प्रत्येक अक्षर को हम तीन भागों में विभाजित करते हैं—
ऊपरी भाग
मध्य भाग
निचला भाग।
इनके आधार पर हम लिखावट का अध्ययन करते हैं।
लिखावट के ऊपरी भाग के अध्ययन से व्यक्ति की विचारधारा, व्यवहारकुशलता, दर्शन, बुद्धि का स्वरूप एवं जीवन मूल्यों के सम्बन्ध में ज्ञात होता है।
लिखावट के मध्य भाग के व्यक्ति के रहन-सहन, आदतें, व्यवहार एवं सामाजिकता का पता चलता है।
लिखावट का निचला भाग व्यक्ति की शारीरिक कामनाओं और इच्छाओं के परिचय के साथ-साथ पैसे के प्रति उसके दृष्टिकोण को बताता है।
इस प्रकार लिखावट के ये तीनों भाग मिलकर ही एक स्वरूप तय करते हैं।
(i) b,d,h,I,k,l and t ऊपर और मध्य भाग में ही लिखे जाते हैं।
(ii) g,j,p,y and z मध्य और निचले भाग में ही लिखे जाते हैं।
(iii) ‘f’ ही एक अकेला शब्द है जो ऊपरी, मध्य और निचले भाग में लिखा जाता है।
लिखावट में न तो भाषा का कोई महत्त्व है और न ही शब्दों का। लिखावट की बनावट ही सब कुछ है। हर लिखावट में कुछ विशेषता होती है जिसके कारण वह अन्य लिखावटों से भिन्न दिखायी देती है। यह विशेषता व्यक्ति विशेष के गुणों की तरफ इशारा करती है। लिखावट में भाषा के अलावा बिन्दु, चिन्ह तथा आकृतियाँ भी होती हैं। इनके भी अर्थ हैं।
हम व्यक्ति के व्यक्तित्व का अवलोकन उसकी लिखावट में कर सकते हैं। क्योंकि लिखावट अनजाने में की गई अभिव्यक्ति होती है, अतः व्यक्ति की चिंता, उत्साह, सामाजिक व्यवहार, शारीरिक, मानसिक क्षमतायें, एवं कल्पना शक्ति, आदि लक्षणों का अवलोक हम उसकी लिखावट में कर सकते हैं।
समय के साथ-साथ जैसे-जैसे व्यक्ति के विचार, भावनाएँ, क्रिया-कलाप परिवर्तित होते हैं उसी के साथ-साथ उसकी लिखावट भी अपनी रूप बदलती जाती है। क्योंकि हमारा हाथ तो एक उपकरण के समान है, हम जो भी सोचते है, विचारते हैं, वह सब हम अपने हाथ के माध्यम से अनजाने में कागज पर लिखावट के रूप में उतार देते हैं। कहते हैं कि यदि मन उदास हो तो कुछ लिख लें, मन हल्का हो जायेगा।
अक्सर व्यक्ति अपनी दैनिक दिनचर्या रात्रि में डायरी में लिखते है, जिसका यही अर्थ है कि व्यक्ति जाने-अनजाने में की गई गलतियों या उपलब्धियों आदि को डायरी में लिखकर अपने-आपको हल्का महसूस करते हैं। अपराधी प्रवृत्ति के अनेक संकेत हम उसकी लिखावट का अध्ययन कर जान सकते हैं। इसीलिए लिखावट अपराधियों को पकड़ने के लिए एक बड़ा साधन बन गया है।
लिखावट को सुधरवाकर बच्चों को छोटी उम्र में ही बिगड़ने से रोका जा सकता है और उन्हें सुधारा जा सकता है।
लिखावट की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसकी नकल नहीं हो सकती है। यह पूर्णतया व्यक्तिगत होता है। लिखावट के अध्ययन से व्यक्ति के चिन्तन का स्तर और उसके सभी गुणों का अवलोकन एवं आंकलन किया जा सकता है। इसीलिए लिखावट को हम व्यक्ति का व्यक्तित्व भी कह सकते हैं।
कुछ व्यक्ति अपनी लिखावट में अक्सर परिवर्तन करते रहते हैं।
लिखावट में लगातार होने वाले परिवर्तन अच्छे नहीं कहे जा सकते हैं। यह अनियंत्रित और अस्थिर मनःस्थिति का संकेत है। ऐसे लोग भावनात्मक रूप से अस्थिर होते हैं।
लिखावट की बनावट
लिखावट में अक्षर चाहे कैसे भी लिखे जायें, प्रत्येक अक्षर को हम तीन भागों में विभाजित करते हैं—
ऊपरी भाग
मध्य भाग
निचला भाग।
इनके आधार पर हम लिखावट का अध्ययन करते हैं।
लिखावट के ऊपरी भाग के अध्ययन से व्यक्ति की विचारधारा, व्यवहारकुशलता, दर्शन, बुद्धि का स्वरूप एवं जीवन मूल्यों के सम्बन्ध में ज्ञात होता है।
लिखावट के मध्य भाग के व्यक्ति के रहन-सहन, आदतें, व्यवहार एवं सामाजिकता का पता चलता है।
लिखावट का निचला भाग व्यक्ति की शारीरिक कामनाओं और इच्छाओं के परिचय के साथ-साथ पैसे के प्रति उसके दृष्टिकोण को बताता है।
इस प्रकार लिखावट के ये तीनों भाग मिलकर ही एक स्वरूप तय करते हैं।
(i) b,d,h,I,k,l and t ऊपर और मध्य भाग में ही लिखे जाते हैं।
(ii) g,j,p,y and z मध्य और निचले भाग में ही लिखे जाते हैं।
(iii) ‘f’ ही एक अकेला शब्द है जो ऊपरी, मध्य और निचले भाग में लिखा जाता है।
लिखावट का ऊपरी भाग
व्यक्ति की लिखावट के ऊपरी भाग के अक्षरों का आकार यदि छोटा है तो व्यक्ति
में उत्साह की कमी है। अक्षरों का ऊपर से टूटा हुआ होना बताता है कि
व्यक्ति के शरीर के ऊपरी भाग में कोई बड़ी बीमारी अपनी जगह बना रही है,
जैसे सिर या गले से सम्बन्धित बीमारियां। उसे बहुत ज्यादा चिन्ता करने की
आदत भी हो सकती है।
ऊपरी भाग के अक्षरों का बहुत ज्यादा बनावटी होना यह भी दर्शाता है कि व्यक्ति जीवन की सच्चाइयों से बिल्कुल अपरिचित है, सिर्फ बातें ही बनाना जानता है। ऊपरी भाग में ज्यादातर लूप होते हैं। पतले और साफ लूप यह बताते हैं कि व्यक्ति का चिन्तन गम्भीर है। यदि यही लूप पतले होकर एक लाइन में तब्दील होते नजर आयें तो समझ लीजिए कि व्यक्ति के अन्दर सकारात्मक विचारों या भावों का अभाव है। यदि लूप एक रेखा के आकार में है तो व्यक्ति अपने आपको परिस्थितियों के अनुसार बदलना जानता है। चिन्तन बहुत सुदृढ़ है और सोच की दिशा एकदम सपाट एवं सीधी है।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि अक्षर के ऊपरी भाग का अवलोकन कर हम व्यक्ति के बौद्धिक एवं आध्यात्मिक चिन्तन का अन्दाजा लगा सकते हैं। यानि आध्यात्मिकता से वह कितना जुड़ा हुआ है, उसका चिन्तन स्वतन्त्र है या नहीं, उसके आदर्श कैसे हैं, आदि-आदि।
ऊपरी भाग के अक्षरों का बहुत ज्यादा बनावटी होना यह भी दर्शाता है कि व्यक्ति जीवन की सच्चाइयों से बिल्कुल अपरिचित है, सिर्फ बातें ही बनाना जानता है। ऊपरी भाग में ज्यादातर लूप होते हैं। पतले और साफ लूप यह बताते हैं कि व्यक्ति का चिन्तन गम्भीर है। यदि यही लूप पतले होकर एक लाइन में तब्दील होते नजर आयें तो समझ लीजिए कि व्यक्ति के अन्दर सकारात्मक विचारों या भावों का अभाव है। यदि लूप एक रेखा के आकार में है तो व्यक्ति अपने आपको परिस्थितियों के अनुसार बदलना जानता है। चिन्तन बहुत सुदृढ़ है और सोच की दिशा एकदम सपाट एवं सीधी है।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि अक्षर के ऊपरी भाग का अवलोकन कर हम व्यक्ति के बौद्धिक एवं आध्यात्मिक चिन्तन का अन्दाजा लगा सकते हैं। यानि आध्यात्मिकता से वह कितना जुड़ा हुआ है, उसका चिन्तन स्वतन्त्र है या नहीं, उसके आदर्श कैसे हैं, आदि-आदि।
लिखावट का मध्य भाग
व्यक्ति की लिखावट का मध्य भाग यदि औसत का है, तो व्यक्ति साधारण और
मानसिक रूप से संतुलित है। रहन-सहन का स्तर एवं व्यवहार सामान्य है,
परिस्थितियों के प्रति जागरुक है।
यदि मध्य भाग में कुछ ज्यादा ही बड़ा हो तो मनुष्य अपने आपको कुछ अधिक महत्त्व देता है तथा उसका व्यवहार भी थोड़ा-बहुत अहंकार से परिपूर्ण होता है। वह समाज में भी हरदम यही प्रयास करता है कि सबको प्रभावित कर सके, परन्तु खुद किसी की बात से प्रभावित होता नहीं दिखायी पड़ता है।
यदि मध्य भाग के अक्षर छोटे-बड़े आकार में लिखे गये हैं, तो यह समझना चाहिए कि उसकी निर्णय लेने की क्षमता ठीक नहीं है। यानि वह ठीक नहीं है। यानि ठीक प्रकार से निर्णय नहीं ले पाता है और उसकी सोच की दिशा भी कमजोर रहती है। यदि मध्य भाग के सभी अक्षर एक ही प्रकार से लिखे गये हैं, तो व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता अच्छी है।
यदि मध्य क्षेत्र के अक्षर काफी महीन हैं तो व्यक्ति हीन भावना से ग्रस्त है। अन्त में यही कहेंगे कि मध्य क्षेत्र के अक्षर सकारात्मक भावों को दर्शाते हैं। व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए व्यक्ति की दृढ़ इच्छा-शक्ति एवं वास्तविकता से जुड़े रहने की सूचना देते हैं। ऐसा व्यक्ति अपनी मर्जी का मालिक होता है और जो सोचता है, उसे सही मानने पर जोर देता है, अपनी आलोचना सहन नहीं कर पाता है और थोड़ा-बहुत अहंकारी भी होता है।
यदि मध्य भाग में कुछ ज्यादा ही बड़ा हो तो मनुष्य अपने आपको कुछ अधिक महत्त्व देता है तथा उसका व्यवहार भी थोड़ा-बहुत अहंकार से परिपूर्ण होता है। वह समाज में भी हरदम यही प्रयास करता है कि सबको प्रभावित कर सके, परन्तु खुद किसी की बात से प्रभावित होता नहीं दिखायी पड़ता है।
यदि मध्य भाग के अक्षर छोटे-बड़े आकार में लिखे गये हैं, तो यह समझना चाहिए कि उसकी निर्णय लेने की क्षमता ठीक नहीं है। यानि वह ठीक नहीं है। यानि ठीक प्रकार से निर्णय नहीं ले पाता है और उसकी सोच की दिशा भी कमजोर रहती है। यदि मध्य भाग के सभी अक्षर एक ही प्रकार से लिखे गये हैं, तो व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता अच्छी है।
यदि मध्य क्षेत्र के अक्षर काफी महीन हैं तो व्यक्ति हीन भावना से ग्रस्त है। अन्त में यही कहेंगे कि मध्य क्षेत्र के अक्षर सकारात्मक भावों को दर्शाते हैं। व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए व्यक्ति की दृढ़ इच्छा-शक्ति एवं वास्तविकता से जुड़े रहने की सूचना देते हैं। ऐसा व्यक्ति अपनी मर्जी का मालिक होता है और जो सोचता है, उसे सही मानने पर जोर देता है, अपनी आलोचना सहन नहीं कर पाता है और थोड़ा-बहुत अहंकारी भी होता है।
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