भाषा एवं साहित्य >> अनुवाद की व्यापक संकल्पना अनुवाद की व्यापक संकल्पनाप्रो. दिलीप सिंह
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अनुवाद की संकल्पना आज व्यापकतर हो चुकी है। अनुवाद प्रक्रिया को भी अब भाषा के एक जटिल प्रयोग के रूप में देखा जाने लगा है। अतः अनुवादक की भूमिका को ‘पाठ भाषाविज्ञान’ और संकेत विज्ञान’ से जोड़ना भी अनिवार्य बन चुका है। अनुवाद के सामाजिक दायित्वों तथा सामाजिक उद्देश्यों को यह पुस्तक समाज भाषाविज्ञान तथा सामाजिक अर्थ विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में परखने का एक प्रयत्न है।
साहित्यिक एवं साहित्येतर पाठ की गठन सम्बन्धी भिन्नता पर गहन विचार करते हुए इस पुस्तक में अनुवाद की उपभोक्ता सापेक्षता और लक्ष्य भाषा केन्द्रिकता पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। इस सन्दर्भ में अनुवादनीयता के पक्ष पर भी 'समतुल्यता के सिद्धान्त’ के हवाले से की गई चर्चा अनुवाद कार्य के व्यापक सरोकारों को प्रत्यक्ष करती है।
अनुवाद समस्याओं पर भी यह पुस्तक सिद्धान्तगत परिपाटी से हट कर इन्हें ‘अनुवाद करने’ की प्रणाली से आबद्ध करती है। और समस्याग्रस्त अनुवाद-प्रणाली को तीन पाठों की अनुवाद-समीक्षा द्वारा साफ और स्पष्ट करने की ओर अग्रसर है।
अनुवाद चिन्तन को अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की शाखाओं से तथा अनुवाद कार्य को दो भाषाओं की समाजभाषिक तथा भाषाशैलीय संदर्भों से जोड़ने के कारण इस पुस्तक की अवधारणाएँ स्वतः ही व्यापक आयाम पा सकी हैं। ये ही पुस्तक की विशेषताएँ भी मानी जा सकती हैं।
अनुक्रम
- दो शब्द
- अनुवाद की नई भूमिका
- समतुल्यता के सिद्धांत का व्यापक परिप्रेक्ष्य
- अनुवाद-समस्या की व्यापक समीक्षा
- अनुवाद समीक्षा और मूल्यांकन के कुछ प्रारूप
- हिंदी पत्रकारिता की भाषा और अनुवाद
- भारतीय बहुभाषिक स्थिति में अनुवाद का स्वरूप
- अनुवाद चिंतन-सार
- अनुवाद से संबंधित व्यापक संदर्भ
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