नई पुस्तकें >> अम्माँ अम्माँसाजिद हाशमी
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माँ की शान में 101 शेर
कुछ अपनी बात
‘माँ’ एक ऐसा अज़ीम लफ़्ज़ जिसे सुनकर ख़ुद ब ख़ुद सर अदब से झुक जाता है, दिल में भावनाओं का ज्वार उमड़ने लगता है। कोई ऐसा नहीं होगा जिसे अपनी माँ से प्यार नहीं हो, मुझे भी है। आज मेरी माँ नहीं हैं मगर प्यार बरसाता हुआ झुर्रियों भरा चेहरा मुझे सदैव याद रहता है। शायरी में माँ का वर्णन बहुत किया गया है और माँ पर कहे गए हर शेर को बहुत नवाज़ा गया है, मोहतरम मुनव्वर राना और जनाब सागर त्रिपाठी साहब ने इस पर बहुत काम किया है। इनके इलावा बहुत हैं जिन्होंने माँ को अपनी शायरी का मौज़ूँ बनाया है। मैं एक छोटा सा शायर हूँ, एक कोशिश की माँ पर कुछ कहने की, फिर ये कोशिश शौक़ में बदली - एक के बाद एक शेर होते गए, और आज चुनिन्दा 101 शेरों का ये मजमुआ आप के हाथ में है।
मैं शुक्रिया अदा करता हूँ मुनफ़रिद लबो लहजे के शायर जनाब हसन फ़तेहपुरी साहब का और सागर त्रिपाठी साहब का जिन्होंने मेरे इस मजमुए को अपनी राय से नवाज़ा। इनके इलावा डाक्टर क़मर अली शाह, के. के. क़ुरेशी नाज़ां साहब की रहनुमाई मुझे मिलती रही है।
मेरे भतीजे शोएब समर ने तस्वीरें चुनने में मेरी बहुत मदद की, मैं सबका शुक्रिया अदा करता हूँ, उम्मीद करता हूँ कि मजमुआ आपको पसन्द आएगा।
अपनी राय ज़रूर मेरे मोबाइल नम्बर पर भेजें।
- साजिद हाशमी
मोबा. 9425660027
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