नई पुस्तकें >> इन्द्रधनुष इन्द्रधनुषअजय प्रकाश
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कविता एवं ग़ज़ल
भूमिका
आकर्षण और आनंद का हेतु : इन्द्रधनुष
इन्द्रधनुष बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, साहित्यकारों व कलाविदों के साथ सामान्य लोगों तक के लिए हमेशा ही आकर्षण और आनंद का हेतु रहा है। डी.ए-वी. कॉलेज के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अजय प्रकाश का कविता संग्रह 'इन्द्रधनुष' कविता का एक ऐसा जीवंत दस्तावेज़ है जिसमें इन्द्रधनुष के रंगों की तरह काव्य के विविध विषय समाहित हैं। कविताओं का रंग और विषयवस्तु कोई भी हो पर उनकी चमक और आकर्षण इन्द्रधनुष की तरह ही हैं। प्राकृतिक इन्द्रधनुष अपनी छवि प्रदर्शित करके आसमान के नेपथ्य में विलुप्त हो जाता है; परंतु कविताओं के इस इन्द्रधनुष के रंग काव्यप्रेमियों को हमेशा आकर्षित व हर्षित करने वाले हैं क्योंकि संग्रह की विविध रंगों की कविताएं काव्यप्रेमियों के मध्य हमेशा रहेंगी। कविता के इस इन्द्रधनुष में भक्ति, शक्ति, अनुरक्ति, विरक्ति, घर, परिवार, समाज, राष्ट्र, हमारी सांस्कृतिक व उत्सवी परंपराएं, तीज-त्योहार से सम्बद्ध विषय समाहित हैं।
भगवान गणपति, शिव, गुरुनानक देव, ओम् साईंराम की वन्दनाओं से शुभारम्भ होता काव्य संग्रह देशभक्ति, पारिवारिक व्यवस्था, जीवन का सत्य और प्रेम की पूजा तक की संवेदनात्मक यात्रा करता है। कविता की विभिन्न विधाओं, गीत, ग़ज़ल, मुक्त छंद, मुक्तक आदि से सज्जित काव्य संग्रह 'इन्द्रधनुष" के सभी रंग अंतर्मन को सहज ही स्पर्श करने वाले हैं। हरिभजन शीर्षक भाग में -
हे गणपति! सुन ले मेरी पुकार
यह दुनिया माया की नगरी
सिर लादे चाहत की गठरी
सबसे लागे नीकी काया
गणपति दूर करो माया।
की प्रार्थना जहां रचनाकार को ऊर्जित करती है वहीं पाठकों को भी शुभ सन्देश देती है।
मेरा मानना है कि किसी भी रचनाकार को 'वेद' पढ़ना आये या न आये पर यदि उसे 'वेदना' पढ़ना आता है तो वह बड़ा रचनाकार हो सकता है। वेदना चाहे निज की हो या पर की, वेदना चाहे समाज की हो या संसार की, वेदना चाहे मनसा हो या कर्मणा, उसे संवेदना और अनुभूति के स्वच्छ शीशे वाले चश्मे से पढ़ा जा सकता है। डॉ. अजय प्रकाश ने अपनी रचनाओं में प्रेम की मौन वेदना को गीतों में ढाल कर उन्हें स्वर देने का सार्थक व सफल प्रयास किया है।
उनके गीत "जिंदगी खुद ही सँवर जाएगी" में निहित संवेदना द्रष्टव्य है--
यह तो सच है,
भीड़ में तुम अकेले हो
समझ लो तो अलबेले हो
तुम्हारे भीतर ईश्वर समाया है
बाकी आस पास सब माया है।
हिंदी काव्य साहित्य रचना में विविध रस व छंद विधान समावेशित हैं। जिस रचनाकार के रचनाकर्म में अधिकतम विधाएं व रस शामिल होते हैं, वे अपने पाठकों व आलोचकों से अधिक समर्थ रचनाकार होने का विशेषण सहज ही प्राप्त कर लेते हैं। प्रस्तुत कविता संग्रह में छंद-मुक्त कविताओं के साथ गीत हैं तो कवि ने ग़ज़ल को साधने का सार्थक प्रयास किया है। इश्के-हकीकी, वजूद, बन गया दर्द दवा मेरी, कोई माने न माने आदि ग़ज़ल शीर्षक के खाते में समाहित रचनाएं संग्रह की अमीरी को द्विगुणित करती हैं। बानगी की तौर पर कुछ मौजूं शेर द्रष्टव्य हैं -
कभी खुद को भूल, यादों के साये में खो जाते थे
अब सुकूँ है बस बेखुदी में डूब जाने में।
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न किसी से शिकवा है, न नफ़रत है।
इश्क के मारों की यही फ़ितरत है।
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कभी तुम्हारा वजूद, मेरे लिए
इक गुरुर था।
हमारे रिश्तों में इक अनोखा
सुरूर था।
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इक तमन्ना है, बस है आखिरी आरजू मेरी
सांसों के सरगम पर, थिरकती रहे याद तेरी।
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नज़र से नज़र मिली,
वाह क्या बात हुई।
नज़र से नज़र हटी,
आह क्या घात हुई।
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नज़र से नज़र उलझ गई,
खिल गई दिल की कली।
मुश्किलें थीं जो सुलझ गईं,
दिल से दिल की बात चली।
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नज़र मिला के झुका लिया,
चेहरा सुर्ख गुलाब हुआ।
हुस्न से हया का मिलन,
जिस्म जैसे माहताब हुआ।
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नज़र से नज़र मिली,
सारी कायनात खिली।
धुंध सब साफ हुई,
कैसी सौगात मिली।
हिंदी काव्य साहित्य रचना में विविध रस व छंद विधान समावेशित हैं। जिस रचनाकार के रचनाकर्म में अधिकतम विधाएं व रस शामिल होते हैं, वे अपने पाठकों व आलोचकों से अधिक समर्थ रचनाकार होने का विशेषण सहज ही प्राप्त कर लेते हैं। संग्रह की रचनाएँ रचनाकार की संवेदना, चिंतन, विषय के अनुकूल भाषा पर पकड़ रेखांकित करने वाली है। भाषा की तरंगों के प्रवाह को उन्होंने निर्बन्ध प्रवाहित होने दिया। परिणामस्वरूप उनकी रचनाओं में प्रेम, देशभक्ति, धर्म-अध्यात्म, भक्ति, प्रकृति, सामाजिक सरोकार आदि विविध विषयों की कविताएं, संग्रहित हुई हैं। यह विस्तृत अनुभवों-स्मृतियों को कविताओं में सजाने की संवेदनशील कोशिश है। आत्मनिर्भर भारत, विजय दिवस, माँ, एक नन्हीं परी, सावन आया, मेरे बचपन, नारी शक्ति, पंच तत्व और नारी, उंगलियां, जमाने धत तेरे की और बेटियां शीर्षक जैसी कई रचनाएं ऐसी हैं जो जीवन को सार्थक दिशा देती हैं और आत्मशक्ति को द्विगुणित करती हैं। मानव सभ्यता की प्रतीक ये कविताएं हर देश, काल व वातावरण में आत्मानन्द की अनुभूति कराने वाली हैं।
हिंदी काव्य साहित्य के शास्त्रियों की मानें तो कविता की संक्षिप्त परिभाषा ''रसात्मकं वाक्यं काव्यम्" से पूर्ण हो जाती है अर्थात् पाठक अथवा श्रोता को जो रस की अनुभूति कराए वह कविता है। शायद इसलिये काव्यशास्त्र में नौ रसों का विधान किया गया है। रसों में भी श्रृंगार रस को रसराज कहा गया। हिन्दी काव्य साहित्य का इतिहास साक्षी है कि सम्पूर्ण काव्यनिधि में श्रृंगारिक काव्य की एक बड़ी पूंजी संचित है। संग्रह में 'मेरी पत्नी तारा के जन्मदिवस पर' व 'वैवाहिक वर्षगांठ' को समर्पित रचनाएं सात्विक प्रेम की प्रतीक हैं। संग्रह का भजन भाग आध्यात्मिक चेतना से लबरेज है।
मेरा विश्वास है कि डॉ. अजय प्रकाश जी के इस काव्य-संग्रह को आलोचक चाहे जिस दृष्टि से जांचें परखें पर संवेदनशील पाठकों की काव्य-पिपासा को तृप्ति देने वाला होगा और काव्य साहित्य में अपना स्थान बनाएगा।
अशेष शुभकामनाओं सहित,
डॉ. सुरेश अवस्थी
(अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि, राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त शिक्षाविद व वरिष्ठ पत्रकार)
drsureshawasthi@gmail.com
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