नई पुस्तकें >> आँख का पानी आँख का पानीदीपाञ्जलि दुबे दीप
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दीप की ग़ज़लें
दीपांजली दुबे शेर-ओ-सुख़न के फ़लक़ पर चमकता हुआ नाम है। कानपुर, उत्तर प्रदेश की दीपांजलि ने न केवल छंद और कविता के मंच पर अपनी पहचान बनाई है बल्कि उत्तर प्रदेश, दिल्ली से लेकर मुंबई तक तमाम मंच पर अपनी ग़ज़लों से भी लोगों का दिल जीता है।
जब कोई शाइर शिद्दत से क़लम पकड़ता है तो उसकी यही तमन्ना होती है कि उसका शौक़ ओ फ़न किसी रोज़ इस मक़ाम तक पहुंचे कि वो अपनी क़िताब शाया कर मंज़रे-आम तक पहुँचे।
आज उनका शौक़ ए सुख़न ग़ज़लों की एक ख़ूबसूरत क़िताब 'आँख का पानी' की शक़्ल में हमारे-आपके दस्तयाब है।
ग़ज़ल उर्दू ज़ुबान में सुख़न का एक बेहद दिलकश अंदाज़ है।
अहद ए क़दीम में ग़ज़लें आशिक़ों के हवाले से कही जाती थीं और ये माशूका के जमालो-हुस्न, लज़्जते-आशिक़ी वस्ले-यार ओ दीदार ग़मे-हिज़्र ओ दिले-बेक़रार... इन्हीं के इर्द गिर्द ग़ज़ल का मज़मून होता था। ग़ज़ल के मायने ही माशूक़ा से गुफ़्तगु था। ग़ज़ल शबाब, शराब और शौक़ीन मिज़ाज रईसों का शगल थी.. जो अक्सर कोठे पर घुँघरुओं के सुर-ताल के साथ क़दम-ताल करती थी।
लेकिन दौरे-ज़दीद में ग़ज़ल के तेवर में सरापा बदलाव आए हैं। अब ग़ज़लें केवल शाइर ही आग के दरिया में डूब के नहीं निकल रहे बल्कि "परवीन शाकिर" जैसी दम दार शाइरा के साथ तमाम शाइरा हैं जो ग़ज़लों का गुलदस्ता हाथों में लिए शाइरी की ख़ुशबू फ़ज़ाओं में बिखेरने को तैयार हैं..!
आँखों के पानी को शेरो-सुख़न की रौशनाई बना लेना सुख़नवर का फ़न होता है जिस के मार्फ़त वो न केवल अपने ग़मो-दर्द को बाहर करके ख़ुद को हल्का महसूस करता है बल्कि ज़ज़्बा ओ जज़्बात का असर दूसरों के जिगर में पैदा कर उन्हें भी आह और वाह करने को मजबूर करता है।
दिल जब पसीजता है तो आँखों में पानी आता है।
इंसान बने रहने के लिए आँखों में पानी होना ज़रूरी है। आँखों का पानी ही दिल को नर्म बनाए रखता है और नर्म दिल इंसान नेक नीयत से दूसरों के ग़मो-दर्द को शिद्दत की महसूस कर सकता है। दीपांजलि जी ने अपनी आँखों के पानी और जिगर के दर्द को बख़ूबी अपनी शाइरी में उड़ेल दिया है। शाइरी यूँ नहीं होती है, रंज़ो-ग़म दिल में दबा कर , दर्द पी कर क़लम की धार पैनी की जाती है। अक्सर ज़िंदगी में फूल से दिल को ख़ार से रिश्ते मिलते हैं जो दिल को चुभन देते हैं.. और ज़िंदगी ख़ार ज़ार हो जाती है फिर भी चाक जिगर पर बोझ लिए जीना होता है। इस दर्द.. इस कसक का अक्स इस अशआर में देखा जा सकता है-
आँखों के आँसुओं को बहाकर ग़ज़ल कहो
जो भी है दिल का राज़ बताकर ग़ज़ल कहो
गर चोट कोई दे के हुआ दूर आपसे
रिश्तों का बोझ दिल में दबा कर ग़ज़ल कहो
आँखों का पानी शाइरा की कमज़ोरी नहीं बल्कि क़लम में ताक़त बन कर उभरा है। इनका मानना है कि एक क़लमकार की क़लम धार पुर असर होनी चाहिए। उनका पैग़ाम है --
जगा दे जो जन-जन को अपनी क़लम से
क़लमकार वो ही असरदार होगा
शाइरा को इस बात की फ़िक्र भी है कि आज समाज में लोग इतने मतलब परस्त हो गए हैं कि अपने आगे दूसरों के ग़म ओ दर्द नहीं देखते। यानि इंसानियत ख़त्म हो रही है और लोग पत्थर दिल होते जा रहे हैं --
रोता हुआ इंसान नहीं दिखता ज़माने को कभी
यानि हर शख़्स को मंज़ूर है पत्थर होना
ये दूसरा शे'र भी इसी मफ़हूम पर उन्होंने कहा है -
मुझे दूसरों से क्या है लेना देना
जो है मेरी दुनिया तो बस मेरा घर है
शाइरा ने मुहब्बत के हवाले से भी बेहतरीन अशआर कहे हैं...
बड़ी सादगी से इन्होंने एक शे'र में अपने महबूब से बड़ा ही ख़ूबसूरत और दमदार सवाल किया है..
बात करते हो तुम निभाने की
फ़िक्र तुमको क्यों है ज़माने की
बहुत ख़ूब.. जब मुहब्बत निभाने का वादा है तो फ़िर ज़माने की क्यों सोचना..!
अपने दिल की मुहब्बत उन्होंने बहुत साफ़गोई से ज़ाहिर भी की है...
ये हँसी सा तेरा चेहरा मेरे दिल का है तराना
मेरी जिंदगी की ख़ुश्बू मेरे प्यार का ठिकाना
महबूब की मुहब्बत के अलावा देश के प्रति मुहब्बत के लिए भी बेहद ख़ूबसूरती से शे'र कहे गए हैं
प्रेम तो इस हिन्द का वरदान है
विश्व भर में एकता की शान है
यानि दीपांजलि जी की ग़ज़ल के दायरे में मुहब्बत के अलावा सियासत, इन्सानियत, राष्ट्र क़ौमी एकता मज़हबी मसअले और रोज़ मर्रे की फ़िक्र ओ ज़िक्र भी पूरे दमखम से शामिल है। किताबों की दुनिया में यह शाइरा का पहली कोशिश है । ख़ूबसूरत भाव से लबरेज़ इस किताब में अगर उरूज़ और अरकान के हवाले से शेरो-शाइरी में अगर थोड़ी बहुत कुछ ख़ामी रह गई हो तो उसे नज़रंदाज़ कर मैं उन्हें इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल की किताब के लिए ढेरों मुबारकबाद देती हूँ।
मुझे यकीन है अपनी पहली ही किताब से ये ग़ज़ल के फ़लक़ पर एक चमकीले सितारे की तरह अपनी जगह बनाएंगी। ख़ूबसूरत अहसास का ये सफ़र आगे आला मुकाम तक पहुँचे।
मेरी ढेरों दुआयें और नेक ख़्वाहिशात हैं..!
ज्योति मिश्रा
पटना
9504557272
jyotipatna2012@gmail.com
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