नई पुस्तकें >> मैं था, चारदीवारें थीं मैं था, चारदीवारें थींराजकुमार कुम्भज
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राजकुमार कुम्भज की 110 नई कवितायें
चटकें चट्टानें
- झूला मत झुलाओ
- भाषा की हदबंदी में रहते हुए भी
- हमउम्र बच्चे बड़े हो गए हैं
- अपने पैरों पर खड़े हो गए हैं
- और अब माँगते हैं भाषा
- और अब माँगते हैं भाषा का ताप
- और अब माँगते हैं ताप का आकार
- और अब माँगते हैं आकार का लक्ष्य
- और अब माँगते हैं लक्ष्य की कार्रवाई
- और अब माँगते हैं कार्रवाई
- कार्रवाई वह जो सीधी
- जिसकी चाल में न हो मोड़ कोई
- न हो घुमाव, न हों गलबहियाँ कहीं
- चट्टानों से टकराए जल, तो चटकें चट्टानें
- झूला मत झुलाओ।
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