नई पुस्तकें >> सहेलियाँ और अन्य कहानियाँ सहेलियाँ और अन्य कहानियाँप्रियदर्शन
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कवि-कथाकार प्रियदर्शन का नया कहानी-संग्रह है। संग्रह में शामिल ज्यादातर कहानियों का विषय आज की स्त्री है जो बदल रही है। वैसे तो ‘सहेलियाँ’ एक कहानी का शीर्षक है, लेकिन उसे उन तमाम स्त्रियों की सामूहिकता के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है जो समाज के अलग-अलग कोनों में बदलाव की अपनी-अपनी लड़ाइयाँ लड़ रही हैं—कहीं परिवार नामक संस्था से, कहीं पति नामक संस्था से, कहीं समाज नामक संस्था से। परिवर्तन और अपने सम्मान की लड़ाई में वे सब साथ हैं।
बदलाव की प्रक्रियाएँ भारतीय समाज में और भी कई तरह से चल रही हैं। तकनीक है, राजनीति है, हमारे आपसी रिश्ते हैं, आगे बढ़ने की, सफल होने की हड़बड़ियाँ हैं—बदलाव हर जगह है। मध्यवर्गीय ऊब और कुंठाओं की परहन्ता कामनाओं को धर्म का एक नया बहाना अभी दिया ही जा रहा है। इन कहानियों में किसी न किसी तरह यह सब आता है। लेकिन अच्छे पर भरोसा और मनुष्य की सहज सकारात्मकता से कथाकार कहीं भी निराश नहीं है। स्त्रियों की दुनिया में होनेवाले नए प्रस्थान तो उसकी उम्मीद के ठिकाने हैं ही, साधारण जन की जिजीविषा भी उसे हताश नहीं होने देती।
लेकिन ख़ुद की निर्मम आलोचना कथाकार को फिर भी एक ऐसा काम लगती है जिसे किया ही जाना चाहिए। ‘जब कहानी मिलती है’, ‘लाश’ और ‘चीख’, ऐसी कहानियाँ हैं जिनमें तमाम सुख-सुविधाओं, साधनों और सामर्थ्यों से लैस एक आधुनिक व्यक्ति अपना विवेचन करता है, सामाजिक-मानवीय कर्तव्यों से विमुख होने पर ख़ुद को लज्जित महसूस करता है, और इस तरह बताता है कि एक निर्णायक बदलाव जहाँ स्थगित पड़ा है, वह हमारा स्वयं का अन्तस है।
भाषा के अपव्यय से बचते हुए तथ्य और कथ्य से सम्पन्न गद्य प्रियदर्शन को हमेशा पठनीय बनाता है। सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणियों में भी, ये तो फिर कहानियाँ हैं; पढ़ना शुरू करेंगे तो पूरा करके ही उठेंगे। बेशक कुछ ज़्यादा मनुष्य होकर।
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