नई पुस्तकें >> घड़ी में समय घड़ी में समयस्वप्निल श्रीवास्तव
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अब से कोई चार दशक पहले स्वप्निल श्रीवास्तव की एक कविता ‘ईश्वर एक लाठी है’ छपी थी तब की चर्चित पत्रिका “साप्ताहिक हिन्दुस्तान” में। तभी से उनकी रचना से कुछ ऐसा प्रेम हुआ कि लगातार एक सजग विनम्र पाठक की तरह उनकी यात्रा में शामिल रहा। उस कविता में पिता के माध्यम से एक किसान के संघर्ष, आस्था और चेतना का अविस्मरणीय चित्रण है। उनकी पहली पुस्तिका इसी नाम से छपी थी और अब यह काव्य संकलन ‘घड़ी में समय’ सामने है। लोक अस्मिता से किसान चेतना तक की यात्रा के बीच, कविता की जो नयी भूमि उन दिनों बन रही थी, उसके निर्माण में कुछ प्रसिद्ध युवा कवियों के साथ स्वप्निल की भी भूमिका उल्लेखनीय थी।
इस नये संग्रह के आलोक में उनकी लम्बी काव्य-यात्रा का अवलोकन करें तो स्पष्ट दिखता है, स्वप्निल बदलते हुए समय की चुनौतियों से निरन्तर टकराते हुए कविता की अपनी ज़मीन पर खड़े हैं।
मेरी परेशानी यह थी कि मैं उन्हें अच्छे श्रोताओं में बदलना चाहता था मैं उन्हें उन हत्यारों के बारे में बताना चाहता-जो उनके लिए हर साल कत्लगाह बनाने का काम करते थे मैं कोई जादूगर नहीं कवि था मेरे लिए यह सोचना बेमानी नहीं था कि भले ही कुछ न बदले, बदलने की कोशिश बेकार नहीं जाती।
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