सामाजिक >> संगम, प्रेम की भेंट संगम, प्रेम की भेंटवृंदावनलाल वर्मा
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प्रस्तुत है श्रेष्ठ उपन्यास
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ऐतिहासिक उपन्यासों के साथ-साथ वर्माजी ने जिन सामाजिक उपन्यासों की रचना
की हैं उनमें तत्कालीन रीति-रिवाज भी साकार हो उठे हैं। संगम उपन्यास
यद्यपि सामाजिक घटनाओं को लेकर लिखा गया है, तथापि यह सत्य घटनाओं पर
आधारित है।
परिचय
(क)
लड़की के ब्याह के समय वर-वधू पक्षों में परस्पर प्राय: मनमुटाव हो जाता
है। कभी-कभी बात बहुत आगे बढ़ जाती है। लाठी की नौबत बहुत कम आती है,
परन्तु जैसी घटना का उल्लेख इस कहानी में किया गया है, ठीक उसी तरह की
भयंकर घटना छतरपुर रियासत के अंतर्गत रामपुर नामक ग्राम में चौदह वर्ष के
लगभग हुए तब हुई थी। चौबे रामप्यारे, मौजा कलानी, रियासत छतरपुर, जो इस
लड़ाई में तलवार लिये मौजूद थे, अभी जीवित हैं।
(ख)
पाठकों को आश्चर्य होगा कि पसलियों के बीचोंबीच गोली लग जाने पर भी सुखलाल
कैसे जीवित बच गया। सन् 1917 के करीब तहसील ललितपुर अंतर्गत नारहट ग्राम
के निवासी सेठ मोहनलाल सतभैया पर तरावली ग्राम के कुज्जरसिंह नामक एक
ठाकुर ने दीवानी अदालत का वारंट निकलवाने के कारण क्रुद्ध होकर गोली चलाई
थी। वह इस ओर की दो पसलियों के ठीक बीच में होकर धँसी और उस ओर की ओर दो
पसलियों के बीचोबीच होती हुई बाएं हाथ की मांसपेशी में अड़ गई। भाग्यवश वह
बच गए और अभी तक जीवित हैं। गोली बाएं हाथ में अभी तक मौजूद है। परन्तु
उनके साथ इस कहानी की अन्य घटनाओं का कोई संबंध नहीं है। कुज्जरसिंह इस
घटना के पश्चात् डाकू हो गया। उसके नाम का ऐसा आतंक छा गया था कि लोग कहने
लगे थे कि उसे दुर्गावती सिद्ध है और चर्चा भी उसकी जहाँ की जाय वहीं आ
जाएगा। इसके मारे जनता और पुलिस की नाकों दम था। अंत में मार डाला गया।
उसके भाई-भतीजे अब भी जीवित हैं।
(ग)
लालमन दतिया रियासत अंतर्गत नदीगाँव निवासी मन्नूलाल डाकू का प्रतिबिंब
है। मन्नूलाल सन् 1923 ई. में मार डाला गया। वह बड़ा भयंकर आदमी था। आगरा
की जेल तोड़कर भागा था। उसने अपने साथ कुछ पठान भी जेल से निकाले थे, जो
सुना जाता है कि डकैतियों में उसके साथ शामिल रहे। लालमन के विषय में कुछ
स्थानों में अनेक कहानियाँ मशहूर हैं। यह विश्वस्त सूत्र से मालूम होता है
कि लालमन स्त्रियों और बच्चों पर हाथ नही पसारता था और न उसके साथी उसके
डर के मारे स्त्रियों और बालकों पर हाथ उठाते थे।
(घ)
संपतलाल ने मुकदमे के लिए रुपया इकट्ठा करने के अभिप्राय से जिस विचित्र
उपाय का अवलंबन किया था वह घटना झाँसी की है और सन् 1925 की है। झाँसी की
अदालत में मुदमा चला था। जो पंजाबी गिरफ्तार हुआ था, उसके सब बातों से
इनकारी होने पर और प्रमाण की कमी तथा कानून की धारा की परिभाषा में मामले
की घटनाओं के न उतरने के कारण मुकदमा खारिज कर दिया गया था।
(ङ)
संपतलाल का विवाह, नाई के हाथ से ब्राह्मण दूल्हा का कठिन परिस्थिति
उत्पन्न होने पर भात खाना, सुखलाल और लालमन के संबंध में पूर्वाभास और
डाका इत्यादि कुछ घटनाएँ भिन्न-भिन्न समयों की भिन्न-भिन्न सत्य घटनाओं के
आधार पर हैं। उनका समय और स्थान तत्संबंधी अनेक व्यक्तियों के अभी जीवित
होने के कारण नहीं बतलाया जा सका।
(च)
बुंदेलखण्डी लड़कियों का पूरा गीत, जिसकी कुछ पंक्तियाँ कहानी में दी गई
हैं, इस प्रकार हैं-
हिमाचल जू की कुँअरि लड़ायतीं,-नारे सुअटा।
गौरी बेटी तेरा नेरा न्हायें,-नारे सुअटा।
नेरा तेरा न्हइयो बेटी नौ दिना,-नारे सुअटा।
दसयें खौं करिबो सिंगार,-नारे सुअटा।
खेल लो बेटी खेल लो माई बबुल के राज,
जब ढुर जैहौ बेटी सासरें सास न खेलने देय,
रात पिसावै पीसनों, दिनकें गुबर की हेंल,-नारे सुअटा।
सुरज को मैया जौ कहैं-नारे सुअटा।
मोरे सुरज कहँ जायँ,-नारे सुअटा।
ओढ़ौ कारी कमरी, बैंचौ कपला गाय,
धन बिलसौ माई बाप को मोरे सुरज कहँ जायँ।
उबई न होय वारे चंदा,
हम घर होए लिपना पुतना,
सास ने होय देवै गरियाँ,
ननद न होय कौसै बिरना,
तिल के फूल, तिली के दाने, चंदा उगो बड़े भुंसारें।
दूरा के देसा दईं हैं गौरा बेटी,
दईं हैं सबईं बेटी;
को बेटी तोहि बुलावन जै है ?
लिवायन जै है ?
को लिबाए लै है लो ?
को फूल बाँधेरी लो ?
चंद्रामल से भैया, सुरजमल से भैया,
लिवावन जै हैं, बुलावन जै हैं।
लै पियरे परिहावत जै हैं,
वन की चिरैयाँ चुगावत जै हैं,
लीले से घुरवा कुँदावत जै हैं,
सिर गाला पाग सँभारत जै हैं,
लाल छड़ी चमकावत जै हैं,
अंधे कुआँ उघरावत जै हैं,
फूटे से ताल बँधावत जै हैं,
नंगी डुकरियाँ उढ़ावत जै हैं,
कुआँरी बिटियाँ बिहावत जै हैं,
ब्याही बिटियाँ चलावत जै हैं,
चन्द्रामल के घुरला छूटे,
सुरजमल के घुरला छूटे,
चरन चदेरी जै हैं,
बसन पिरागे जै हैं।
आर गौर पार गौर,
चंदा सरूप गौर।
गौर, गौर कहाँ चलीं ? मरुआ के पेड़ें,
मरुआ सियरो, और पानी पियरो।
धजा नारियल अकले चाँवर
बेल की पाती।
जो हरियानो, जौ तिलयानो।
तिल के फूल, तिली के दाने, चंदा ऊँगो बड़े भुंसारें।
हिमाचल जू की कुँअरि........
गौरी बेटी तेरा नेरा न्हायें,-नारे सुअटा।
नेरा तेरा न्हइयो बेटी नौ दिना,-नारे सुअटा।
दसयें खौं करिबो सिंगार,-नारे सुअटा।
खेल लो बेटी खेल लो माई बबुल के राज,
जब ढुर जैहौ बेटी सासरें सास न खेलने देय,
रात पिसावै पीसनों, दिनकें गुबर की हेंल,-नारे सुअटा।
सुरज को मैया जौ कहैं-नारे सुअटा।
मोरे सुरज कहँ जायँ,-नारे सुअटा।
ओढ़ौ कारी कमरी, बैंचौ कपला गाय,
धन बिलसौ माई बाप को मोरे सुरज कहँ जायँ।
उबई न होय वारे चंदा,
हम घर होए लिपना पुतना,
सास ने होय देवै गरियाँ,
ननद न होय कौसै बिरना,
तिल के फूल, तिली के दाने, चंदा उगो बड़े भुंसारें।
दूरा के देसा दईं हैं गौरा बेटी,
दईं हैं सबईं बेटी;
को बेटी तोहि बुलावन जै है ?
लिवायन जै है ?
को लिबाए लै है लो ?
को फूल बाँधेरी लो ?
चंद्रामल से भैया, सुरजमल से भैया,
लिवावन जै हैं, बुलावन जै हैं।
लै पियरे परिहावत जै हैं,
वन की चिरैयाँ चुगावत जै हैं,
लीले से घुरवा कुँदावत जै हैं,
सिर गाला पाग सँभारत जै हैं,
लाल छड़ी चमकावत जै हैं,
अंधे कुआँ उघरावत जै हैं,
फूटे से ताल बँधावत जै हैं,
नंगी डुकरियाँ उढ़ावत जै हैं,
कुआँरी बिटियाँ बिहावत जै हैं,
ब्याही बिटियाँ चलावत जै हैं,
चन्द्रामल के घुरला छूटे,
सुरजमल के घुरला छूटे,
चरन चदेरी जै हैं,
बसन पिरागे जै हैं।
आर गौर पार गौर,
चंदा सरूप गौर।
गौर, गौर कहाँ चलीं ? मरुआ के पेड़ें,
मरुआ सियरो, और पानी पियरो।
धजा नारियल अकले चाँवर
बेल की पाती।
जो हरियानो, जौ तिलयानो।
तिल के फूल, तिली के दाने, चंदा ऊँगो बड़े भुंसारें।
हिमाचल जू की कुँअरि........
-लेखक
संगम
1
कृष्ण पक्ष की एक संध्या के समय ढिमलौनी नामक गाँव में, जो झाँसी से
उत्तर-पूर्व की ओर करीब चार कोस है, किसी ने एक मकान के दरवाजे पर पुकारा,
‘पं. सुखलाल !’ जिसने पुकारा था वह दुनाली बंदूक कंधे
पर रखे
थे और कारतूसों की पेटी पीठ पर कसे था। जिसको बुलाया गया था, वह व्यक्ति
बाहर निकल आया और पास आकर अचंभे के साथ धीरे से बोला, ‘अरे ! आप
हैं
! दादा, आज यहाँ कैसै ?’ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया,
‘खर्च से
तंग हो रहे हैं। बहुत दिनों से कहीं हाथ नहीं पड़ा।’
‘जो हुक्म हो उसके मैं उसके बाहर नहीं हूँ। मेरे पास जो कुछ है, सब आपका ही तो है ।’
‘मैं माँगकर नहीं खाता, ‘उस व्यक्ति ने जरा कर्कश स्वर में उत्तर दिया। फिर नरम होकर बोला, ‘साथ चलो, सब लोग गढ़ी में मौजूद हैं।’
सुखलाल ने पूछा, ‘दादा, आज किसके ऊपर धावा है ?’
‘तुम्हीं तय करो। मैं तो केवल दौन के.......को जानता हूँ। वहीं छापा मारने के इरादे से हम लोग आए हैं।’
‘दौनवाले हमारे ब्योहारी और मित्र हैं।’
बंदूकवाले ने कहा, ‘तब किसी और को तजवीज करो। हम तो भैरव के यहाँ आज धरना देकर चले हैं।’
‘जो हुक्म हो उसके मैं उसके बाहर नहीं हूँ। मेरे पास जो कुछ है, सब आपका ही तो है ।’
‘मैं माँगकर नहीं खाता, ‘उस व्यक्ति ने जरा कर्कश स्वर में उत्तर दिया। फिर नरम होकर बोला, ‘साथ चलो, सब लोग गढ़ी में मौजूद हैं।’
सुखलाल ने पूछा, ‘दादा, आज किसके ऊपर धावा है ?’
‘तुम्हीं तय करो। मैं तो केवल दौन के.......को जानता हूँ। वहीं छापा मारने के इरादे से हम लोग आए हैं।’
‘दौनवाले हमारे ब्योहारी और मित्र हैं।’
बंदूकवाले ने कहा, ‘तब किसी और को तजवीज करो। हम तो भैरव के यहाँ आज धरना देकर चले हैं।’
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