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			 नई पुस्तकें >> प्रत्यङ्मुख प्रत्यङ्मुखमुकुंद लाठ
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हमारे समय में हिन्दी में दार्शनिक विचार और लेखन बहुत विरल हो गया है। जिन थोड़े से व्यक्तियों ने, फिर भी, हिन्दी में मौखिक और विचारोत्तेक दार्शनिक चिन्तन किया है, उनमें मुकुन्द लाठ का नाम अग्रणी है। मुकुन्द जी ने दर्शन की एक पत्रिका उन्मीलन की स्थापना की और दशकों तक उसका सम्पादन करते रहे। उनकी वैचारिक रुचि और रुझानों का वितान बहुत व्यापक था और उसमें तत्त्वदर्शन के अलावा संगीत, साहित्य आदि शामिल थे। उनके दर्शन पर पाँच निबन्धों के इस संग्रह को रज़ा पुस्तक माला के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जाना, एक तरह से, हिन्दी की वैचारिक सम्पदा में कुछ मूल्यवान् जोड़ने के बराबर है।
						
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