नई पुस्तकें >> किस्सागो रो रहा है किस्सागो रो रहा हैमनोज कुमार झा
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किस्सागो रो रहा है संग्रह की कविताओं में जिन्दगी के छोटे-छोटे दुख हैं, छोटे-छोटे स्वप्न भी। कोई शहीदाना अन्दाज नहीं, कोई दावे नहीं। किसी तरह का कोई बड़बोलापन नहीं। पर इसका यह अर्थ नहीं कि कवि को जगत्- दुख नहीं व्यापता इस संग्रह की कविताओं में जहाँ जीवन के तमाम अभाव झाँकते नजर आएँगे, चाहे वह खाने की दिक्कत हो या रहने की, वहीं कवि को चिन्ता है कि जंगल खनिज की खोज में बर्बाद किये जा रहे हैं और विकसित होते शहर में रोज पानी एक हाथ नीचे चला जाता है। उपद्रवियों ने चिता की आग छीन ली है और शीतल पेय संयन्त्रों ने खींच लिया है मटके का जल। गाँव में साँझ की गन्ध अब पहले जैसी नहीं रह गयी है बल्कि वह बहुत कुछ लुप्तप्राय होने की सूचना दे रही है चाहे वह गौरैयों का गायब होना हो या किस्से-कहानियों का।
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