नई पुस्तकें >> रुजुवात रुजुवातडॉ. अशोक रामचन्द्र केलकर
|
0 |
हिन्दी आलोचना में ऐसा बहुत कम है जो साहित्य के अलावा अन्य कलाओं और उनमें चरितार्थ सौन्दर्य-बोध और दृष्टि को हिसाब में लेता हो। भाषा, वाणी, साहित्य के सम्बन्ध और संवाद पर भी विचार कम हुआ है। इस सन्दर्भ में मराठी के भाषा-चिन्तक और आलोचक अशोक केलकर को हिन्दी में प्रस्तुत करना आलोचना के लिए नये रास्ते खोलने और नयी सम्भावनाओं की खोज की ओर संकेत करने जैसा है। हमें यह कृति प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता है।
|
लोगों की राय
No reviews for this book