नई पुस्तकें >> राजकमल चौधरी की रचना दृष्टि राजकमल चौधरी की रचना दृष्टिदेवशंकर नवीन
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राजकमल चौधरी एक परम्परागत रूढिप्रिय परिवार में पैदा हुए थे। किशोरावस्था से ही वे रूढ़ संस्कारों के विरोधी रहे। राजकमल के साहित्यिक व्यक्तित्व का गठन परिवार और समाज की रूढ़ियों से संघर्ष करते हुए ही हुआ था। उनके इसी संस्कार ने प्रखर युगबोध से अनुप्राणित होकर उन्हें परम्परा-भंजक बनाया । अराजकता की हद तक जाकर उनके पात्र पतनशील मूल्यों को तोड़ते हैं और नये मूल्यों की स्थापना के लिए संघर्ष करते हैं। आजादी के बाद की नयी पीढ़ी के साहित्यिकों का जब मोहभंग हुआ, तो समाज से कटकर यह पीढ़ी आत्मकेन्द्रित हुई। इसकी चरम अभिव्यक्ति देह की राजनीति के साहित्य में हुई। राजकमल उनकी अगुवाई करने वाले साहित्यकारों में भी अग्रणी थे उनका जीवन मोहभंगयुगीन नायकों का सर्वश्रेष्ठ निदर्शन है। सन् 1967 में वे चरम व्यक्तिवाद के अस्तित्ववादी ढाँचे को छोड़कर जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त कर ही रहे थे कि काल का बुलावा आ गया।
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