ऐतिहासिक >> रेजांग ला की शौर्य गाथा रेजांग ला की शौर्य गाथाकुलप्रीत यादव
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एक सच्ची कहानी – किस तरह 20 भारतीय सैनिकों ने 5,000 चीनी सैनिकों का सामना किया !
18 नवंबर, 1962 को 13 कुमाऊँ रेजिमेंट, कुमार बटालियन की चार्ली कंपनी ने भारत के लद्दाख में स्थित रेजांग ला पर चीनी आक्रमण के विरुद्ध युद्ध किया। इस कंपनी में 120 सैनिक थे जिनका नेतृत्व मेजर शैतान सिंह ने किया था। इस आक्रमण में, इन सैनिकों में से 110 ने वीरगति प्राप्त की।
भारतीय खोजी दल, जिसने युद्ध-क्षेत्र का 10 फरवरी, 1963 को दौरा किया और इसने आश्चर्यजनक खोज की जवानों के जमे हुए शरीर जो अभी तक अपने हथियारों को अपने हाथों में पकड़े हुए थे और जिन्होंने अपनी छाती पर गोलियाँ खाई थीं। एक परम वीर चक्र, आठ वीर चक्र, चार सेना पदक और एक मेंशंड-इन-डिस्पैचेज से चार्ली कंपनी के सैनिकों को सम्मानित किया गया, जिसके कारण आज तक यह भारतीय सेना की सर्वाधिक अलंकृत कंपनी बनी हुई है। चार्ली कंपनी की वीरता ने न केवल सफलतापूर्वक चीनी बढ़त को रोक दिया, बल्कि इसके कारण चुशुल हवाई अड्डा भी बच गया, जिससे 1962 में संपूर्ण लद्दाख क्षेत्र पर संभावित चीनी अधिकार अवरुद्ध हो गया। रिपोर्टों के अनुसार, रेजांग ला पर अधिकार करने के प्रयास में कुल 1300 चीनी सैनिक मारे गए थे। चार्ली कंपनी एक पूरी अहीर कंपनी थी और 18,000 फुट ऊँचे भू भाग पर लड़े गए युद्ध में भाग लेने वाले अधिकांश सैनिक हरियाणा के मैदानी भागों से थे।
रेजांग ला की शौर्य गाथा उन्हीं वीरों की कहानी है।
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