नई पुस्तकें >> भिनसार भिनसारज्ञानेन्द्रपति
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भिनसार समकालीन कविता-परिदृश्य में अपनी तरह के अकेले कवि ज्ञानेन्द्रपति का अनूठा संकलन है। इस संग्रह की कविताएँ किसी चीज या केन्द्रीय भाव या अनुभव के विकसित होने की प्रक्रिया की कविताएँ हैं-निर्णयात्मक परिणतियाँ इस कविता के क्षेत्र के बाहर पड़ती हैं। यही वजह है कि इनमें चीजें अंकुराती हैं और अपने विकास-क्रम व आवेग के बल से बढ़ती हैं। यह विकास किसी अदृश्य गोलक में होता हुआ निपट अकेला नहीं है। उसका हमेशा कोई साक्षी है। हमारी सभ्यता का प्रातिनिधिक साक्षात्कार उसमें निहित है। वह जीवन के निकट आने की ललक न होकर स्वयं जीवन है।
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