नई पुस्तकें >> गंगातट गंगातटज्ञानेन्द्रपति
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ज्ञानेन्द्रपति `गंगातट` को किसी स्थापत्यवादी सैलानी की तरह नहीं देखते। वे एक भूगोल को उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक अंतर्वस्तु के पेचोखम के साथ देखते हैं और अगर यह भूगोल काशी-बनारस जैसा कई संस्तरों वाला नगर हो तब तो नगरीय हदों में खुद बेहद और अनहद हुआ जा सकता है।…
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