उपन्यास >> ज़िंदगानी ज़िंदगानीगीता नागभूषणभालचंद्र जयशेट्टी
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ज़िंदगानी कन्नड उपन्यास बदुकु का हिंदी अनुवाद है। गीता नागभूषण को इस उपन्यास पर वर्ष 2004 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार दिया गया था। महाकाव्यात्मक विस्तार लिए हुए इस उपन्यास में समाज के सबसे निचले तबके के जीवन का चित्रण है। गरीबों, शोषितों और वंचितों के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती यह कथा मुख्यतः दलित मल्लप्पा के परिवार की नियति कथा है। निम्नवर्ग के ग्रामीण लोगों के विश्वासों, आचारों और परंपराओं तथा उनकी अनूठी जीवन-पद्धति को उपन्यास में बड़े ही प्रामाणिक ढंग से अंकित किया गया है।
उपन्यास की कथा दलित जीवन के कठोर कष्टों को अत्यंत मार्मिकता के साथ प्रस्तुत तो करती ही है, साथ ही दोहरा-तिहरा शोषण झेल रही दलित स्त्री के जीवन का करुण आख्यान भी रचती है। जमींदार, पुलिस, उच्चवर्गीय शक्ति सम्पन्न लोग, पुरुष सत्तात्मक समाज, गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक रूढ़ियाँ – ये सब मिलकर एक ऐसे शोषण-तंत्र का निर्माण करते हैं जिनके बीच असहाय और निरीह जिंदगियाँ छटपटाती-कराहती हैं। उनकी मुक्ति का कोई सिरा नहीं दिखता, कोई तारणहार नहीं। उपन्यास देवदासी प्रथा का नग्न सच भी उद्घाटित करता है। असहायता के अपरम्पार आख्यान वर्तमान समय और समाज में पीड़ित ‘ज़िंदगानी’ को एक गंभीर प्रश्नवाचक चिन्ह में बदल देते हैं, और पाठक ‘सहानुभूति’ नहीं ‘समानानुभूति’ महसूस करता है। यह पाठकीय आश्वस्ति ही कथा की सफलता है। इस उपन्यास में गुलबर्गा (कर्नटक) की आम बोलचाल की भाषा को स्वाभाविकता, समृद्धि और प्रभाव के साथ पहली बार प्रस्तुत किया गया है।
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