उपन्यास >> मय्यषी नदी के किनारे मय्यषी नदी के किनारेएम मुकुंदनसुधांशु चतुर्वेदी
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मलयालम से अनूदित उपन्यास ‘मय्यषी नदी के किनारे’ का कथानक मय्यपी के स्वाधीनता आंदोलन की राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों पर केंद्रित है। खेती, मछली पकड़ने, कपड़ा बुनने आदि पेशों पर जीवन बसर करने वाले लोगों की बस्ती मय्यषी में परतंत्रता काल के दौरान गोरे शासकों दारा जनता का शोषण, गोरों का ऐशोआराम, मजबूर जनता द्वारा गोरों की चाटुकारिता तथा बुद्धिजीवी जनता द्वारा इन तमाम विकृतियों का विरोध इस उपन्यास में मुखरित हुआ है। उपन्यास का नायक दासन यहाँ के उन मुक्तिकामी नागरिकों का प्रतिनिधि है जो आम जनता की स्वाधीनता की कीमत पर गोरों से मिलने वाली सुख सुविधाओं को ठुकरा देते हैं। ऊब और घुटन भरे माहौल से निकलकर खुली हवा में साँस लेने के लिए धैर्य, त्याग और निष्ठा की आवश्यकता होती है-यह उपन्यास, इस सूत्र को प्रमाणित करता है।
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