संकलन >> शिवपूजन सहाय रचना-संचयन शिवपूजन सहाय रचना-संचयनमंगलमूर्ति
|
0 |
शिवपूजन सहाय रचना-संचयन : कुछ लेखक ऐसे होते हैं जो अपने समय में तो महत्वपूर्ण होते ही हैं, समय जैसे-जैसे आगे जाता है, वैसे उनके महत्त्व के नए रूपों की खोज शुरू होती है। उनका नए सिरे से आविष्कार किया जाता है, नए सिरे से उनको पढ़ा जाता है। आचार्य शिवपूजन सहाय ऐसे लेखक थे जिन्हें आप हिंदी नवजागरण के स्तंभों में गिन सकते हैं।
व्यापक अर्थों में साहित्य से शिवपूजन सहाय का सरोकार था। उनकी जीवन-निष्ठा थी साहित्य के प्रति। वे साहित्य को एक मूल्य की तरह जी रहे थे अपने जीवन में। वे सचमुच हिंदी नवजागरण के एक बहुत अर्थमयी संवेदना वाले समर्थ लेखक थे जिनकी जीवनीशक्ति उनके लेखन में बार-बार अनुप्राणित होती है।
सारी कलाएँ निछावर हैं शिवपूजन सहाय जैसे लेखक पर। उनका जो जीवन-संघर्ष है, जो रचना के लिए है, जो वृहत्तर अर्थ में साहित्य के लिए है, जो अपने देश और अपने समय के लिए है, ऐसे शिवपूजन सहाय के लेखन में जो जीवंतता है, जो ठेठपन है, जो एक सहज ग्रामीण भारतीयता की घनिष्ठ छवि है, वह बहुत मूल्यवान है।
आज आवश्यकता है कि हम अपने समय में ऐसे लेखकों की खोज करें, उनका नए सिरे से पाठ करें जो हमारे साधारण जन की जीवनी शक्ति से अनुप्राणित होने वाले लेखक थे, जिनके लेखन की जीवनीशक्ति सबसे अधिक रेखांकित की जाएगी। शिवपूजन सहाय सच्चे अर्थों में जनता के लेखक हैं, जनता की जीवनीशक्ति को चरितार्थ करने वाले लेखक हैं।
परमानंद श्रीवास्तव का उपर्युक्त कथन शिवपूजन सहाय के व्यक्तित्व और रचनात्मकता का बहुत महत्त्वपूर्ण मूल्यांकन उपलब्ध कराता है। प्रस्तुत रचना-संचयन में शिवपृजन सहाय का कृति व्यक्तित्व प्रतिनिधि स्वरूप में व्यक्त हुआ है, जिसे साहित्यप्रेमी अवश्य पसंद करेंगे, ऐसी आशा है।
|