उपन्यास >> अनुभव अनुभवदिव्येन्दु पालितसुशील गुप्ता
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आत्रेयी का विवाह विदेश में कार्यरत एक सुदर्शन युवक से हुआ। अनगिनत आशा-आकांक्षाएँ और सपने सँजोए उसने कलकत्ता से लंदन की धरती पर क़दम रखा। लेकिन, वहाँ पहुँचकर, उसे पता चला कि उसके पति की जिंदगी में कोई दूसरी औरत आ चुकी है। वह अपना अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाई और अपने देश वापस लौट आई। इसके साथ ही शरू हुई, अधूरेपन, निःसंगता और अनिश्चयता से आक्रांत एक नई ज़िंदगी। आत्मनिर्भर होने की कोशिश में उसे एक रिसर्च एजेंसी में नौकरी मिली और वह ‘यूनेस्को’ की एक योजना से जुड़ गई। दुनिया के लगभग हर देश में लड़कियों और औरतों को जिस्मफ्रोशी के लिए किस तरह और क्यों लाचार किया जाता है, कॉल-गर्ल और बाज़ारू औरतें कैसे संवेगशून्य और हृदयहीन मशीन में परिणत हो जाती हैं, इस तथ्य की तलाश से संबद्ध अनुबंध पर काम करते-करते, वह असंख्य युवतियों की लाचारी, तनाव और टूटन के अकल्पनीय अनुभवों से परिचित हुई। वह अपने को नए सिरे से उपलब्ध कर एक नई आत्रेयी से साक्षात्कार कर जीने का सच्चा अर्थ आविष्कृत करने को तेत्पर हुई। बेहद प्रश्नाकुल तथा अछूते विषय और उसके मर्म को उद्घाटित करता हुआ बाङ्ला के यशस्वी कथाकार दिव्येन्दु पालित का प्रस्तुत उपन्यास अनुभव आत्रेयी की व्यथा-कथा और अनुभव के माध्यम से विश्वजनीन सच्चाई का गहन और संवेदनशील वृत्तांत है।
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