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आचार्य श्रीराम शर्मा >> उत्तिष्ठत जाग्रत

उत्तिष्ठत जाग्रत

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16272
आईएसबीएन :000000000

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मनुष्य अनन्त-अद्भुत विभूतियों का स्वामी है। इसके बावजूद उसके जीवन में पतन-पराभव-दुर्गति का प्रभाव क्यों दिखाई देता है?


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विवेकहीन उत्साह तूफान से घिरे जहाज की तरह है, जिसके डूबने की आशंका हर क्षण बनी। रहती है।

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आदतें बनाई जाती हैं, भले ही उनका अभ्यास योजना बनाकर किया गया हो अथवा रुझान,संपर्क, वातावरण, परिस्थिति आदि कारणों से अनायास ही बनता चला गया हो। ये आदतें ही मनुष्य का वास्तविक व्यक्तित्व या चरित्र होते हैं। मनुष्य क्यासोचता है, क्या चाहता है, इसका अधिक मूल्य नहीं। परिणाम तो उन गतिविधियों के ही निकलते हैं, जो आदतों के अनुरूप क्रियान्वित होती रहती हैं। प्रतिफलतो कर्म ही उत्पन्न करते हैं और वे कर्म अन्य कारणों के अतिरिक्त प्रधानतया आदतों से प्रेरित होते हैं।

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श्रेष्ठ व्यक्तियों के तीन रूप होते हैं-

१- नेक हो तो चिन्ताओं से,

२- बुद्धिमान् हो तो उलझनों से और

३- सशक्त हो तो भयों से मुक्त रहेगा।

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किसी का भी अमंगल चाहने पर पहले अपना ही अमंगल होता है।

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बेईमानी और चालाकी से अर्जित किए गए वैभव का रौब और दबदबा बालू की दीवार की तरह है, जो थोड़ी सी हवा बहने पर ढह जाती है।

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इस दुनिया में तीन बड़े सत्य हैं-

१- आशा,
२- आस्था और
३- आत्मीयता

जिसने सच्चे मन से इन तीनों को जितनी मात्रा में हृदयंगम किया, समझना चाहिए सफल जीवन का आधार उसे उतनी ही मात्रा में उपलब्ध हो गया।

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समाज, दुर्गुणी व व्यसनी लोगों के दुर्गुणों, व्यसनों को उतना उपहासास्पद नहींमानता, जितना सद्गुणी से दीखने वाले व्यक्तियों के दुर्गुणी व्यवहार को देखकर।

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महामानवों का आश्रय जहाज का आश्रय लेकर पार जाने की तरह है। बुद्धिमान् वे हैं, जोऐसे अवसर का ध्यान रखते हैं और यदि मिल जाए, तो उससे चूकते नहीं।

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असफलता की उतनी निन्दा नहीं होती, जितनी गैर जिम्मेदारी और लापरवाही की।

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गई-गुजरी स्थिति में पड़े हुए लोग जब ऊँची सफलताओं के सपने देखते हैं, तो स्थिति औरलक्ष्य के बीच भारी अंतर प्रतीत होता है और लगता है कि इतनी चौड़ी खाई पाटी न जा सकेगी; किन्तु अनुभव से यह देखा गया है कि कठिनाई उतनी बड़ी थीनहीं, जितनी कि समझी गई थी। धीमी किन्तु अनवरत चाल से चलने वाली चींटी भी पहाड़ों के पार चली जाती है, फिर धैर्य, साहस, लगन, मनोयाग और विश्वास केसाथ कठोर पुरुषार्थ में संलग्न व्यक्ति को प्रगति की मंजिलें पार करते चलने से कौन रोक सकेगा?

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