आचार्य श्रीराम शर्मा >> उत्तिष्ठत जाग्रत उत्तिष्ठत जाग्रतश्रीराम शर्मा आचार्य
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मनुष्य अनन्त-अद्भुत विभूतियों का स्वामी है। इसके बावजूद उसके जीवन में पतन-पराभव-दुर्गति का प्रभाव क्यों दिखाई देता है?
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उत्तम विचारों को मन में लाने से उत्तम कार्य होते हैं, उत्तम कार्यों के करनेसे जीवन उत्तम होता है और उत्तम जीवन से आनंद की प्राप्ति होती है।
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यदि सच्चा प्रयत्न करने पर भी तुम सफल न हो, तो कोई हानि नहीं। पराजय बुरीवस्तु नहीं है, यदि वह विजय के मार्ग में अग्रसर होते हुए मिली हो। प्रत्येक पराजय विजय की दिशा में कुछ आगे बढ़ जाना है। हमारी प्रत्येकपराजय यह स्पष्ट करती है कि अमुक दिशा में हमारी कमजोरी है, अमुक तत्त्व में हम पिछड़े हुए हैं या किसी विशिष्ट उपकरण पर हम समुचित ध्यान नहीं देरहे हैं। पराजय हमारा ध्यान उस ओर आकर्षित करती है, जहाँ हमारी निर्बलता है।
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आलस्य की बढ़ती हुई प्रवृत्ति व श्रम से जी चुराने की आदत हमें ऐसी स्थिति मेंले जाएगी, जहाँ जीवन जीना भी कठिन हो सकता है। प्रगति की किसी भी दिशा में अग्रसर होने के लिए सबसे पहला साधन ' श्रम' ही है। जो जितना परिश्रमीहोगा, वह उतना ही उन्नतिशील होगा।
जो समाज मात्र रोटी और मनोरंजक सामग्री पर संतोष कर लेता है, वह एक अत्यन्त निकृष्ट कोटि का समाज बन जाता है।
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हमारा कर्तव्य है कि हम लोगों को विश्वास दिलाएँ। कि वे सब एक ही ईश्वर की संतानहैं और इस संसार में एक ही ध्येय को पूरा करना उनका धर्म है। उनमें से प्रत्येक मनुष्य इस बात के लिए बाधित है कि वह अपने लिए नहीं, दूसरों केलिए जिन्दा रहे। जीवन का ध्येय कम या ज्यादा संपन्न होना नहीं, बल्कि अपने को तथा दूसरों को सदाचारी बनाना है।
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अन्याय और अत्याचार जहाँ कहीं भी हों, उनके विरुद्ध आन्दोलन करना मात्र एकअधिकारनहीं, धर्म है और वह भी ऐसा धर्म, जिसकी उपेक्षा करना पाप है।
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संसार में आज तक किसी घमण्डी का सिर ऊँचा नहीं रहा, उसे नीचा होना ही पड़ता है।इसलिए कल्याण इसी में है कि मनुष्य शक्ति, संपत्ति, साधन, समर्थन, सहायक अथवा विद्या, बुद्धि, रूप-रंग, सफलता एवं उपलब्धि आदि किसी बात पर घमण्ड नकरे।
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ऊँची उड़ानें उड़ने की अपेक्षा यह अच्छा है कि आज की स्थिति को सही मूल्यांकनकरें और उतनी बड़ी योजना बनाएँ, जिसे आज के साधनों से पूरा कर सकना संभव है।
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सपनों के पंख लगाकर सुनहरे आकाश में दौड़ तो कितनी ही लम्बी लगाई जा सकती है, पर पहुँचा कहीं नहीं जा सकता।
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