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आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश

महाकाल का सन्देश

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16271
आईएसबीएन :000000000

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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya

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असुरता इन दिनों अपने पूर्ण विकास पर है। देवत्व सुषुप्त और विश्रृंखलित पड़ा है।आवश्यकता इस बात की है कि देवत्व जगे, संगठित हो तो युग की आवश्यकता एवं ईश्वरीय आकांक्षा की पूर्ति के लिए कटिबद्ध हो। इसके लिए जाग्रत् आत्माएँआगे आएँ। उसी को अविवेक के विरुद्ध संघर्ष में तत्पर होना है।

(वाङ्मय-६५, पृ० ६.१२)

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भरोसा रखो कि वह जो एकान्त में तुम्हारी गलतियाँ बताये, तुम्हारा मित्र है;क्योंकि बदले में वह तुम्हारी अरुचि और घृणा पाने का खतरा उठाता है। कुछ ही लोग हैं, जो अपनी बुराई सह सकते हैं। वैसे हर आदमी अपनी अधिकतर प्रशंसामें ही आनंद पाता है और यह उन कमजोरियों में से है, जो सारी मानव जाति में है।

(अखण्ड ज्योति-१९७४, अप्रैल-१६)

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सादे एवं सामान्य जीवन में भी यदि विचारों को उच्च रखा जाए,, जो कुछ सोचा, समझाऔर किया जाए, वह उदात्त एवं आदर्श भावनाओं के अंतर्गत सोचा तथा किया जाए, तो कोई कारण नहीं कि हम सामान्य जीवन परिधि में रहते हुए भी आत्मा सेमहान् न हो जाएँ। आत्मा की महानता ही तो वास्तविक तथा सर्वोपरि महानता है। जिसे ऊँचे-ऊँचे अथवा आश्चर्यजनक काम करके ही नहीं, केवल सेवाभाव तथाआत्म-परिष्कार के द्वारा भी पाया जा सकता है। और यह किसी भी स्थिति अथवा वर्ग के व्यक्ति के लिए असंभव नहीं, बशर्ते उसके लिए हृदय में जिज्ञासातथा आकांक्षा का जागरण भर हो जाए।

(अखण्ड ज्योति-१९६९, जनवरी-१६)

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