उपन्यास >> वापसी वापसीगुलशन नंदा
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गुलशन नंदा का मार्मिक उपन्यास
''टेक इट इज़ी कैप्टन।'' ब्रिगेडियर उस्मान ने रणजीत को सांत्वना दी और अपने साथियों को बाहर चलने का संकेत किया।
दरवाज़ा फिर से बंद हो गया। कोठरी का अंधेरा गहरा हो गया। रणजीत दीवार से पीठ टिकाये फ़ौजी पहरेदारों के भारी जूतों की आवाज़ सुनने लगा जो रात के सन्नाटे में दूर तक गूंज रही थी।
''समझ में नहीं आता, दो मुख्तलिफ अजनबी आदमियों में इतनी हैरतअंगेज़ मुशविहत कैसे हो सकती है।'' ब्रिगेडियर उस्मान ने जीप में बैठने से पहले अपनी बात दोहराई।
''बज़ा फरमाया आपने।'' कर्नल रज़ा अली ने कहा।
''तो अब हमें क्या करना चाहिए?'' ब्रिगेडियर ने कुछ सोचते हुए कहा।
''मेरे मशविरे पर ग़ौर।''
''लेकिन अच्छी तरह सोच-समझ लो। जज़बात की रौ में आकर अपने घर की खुशी बर्बाद न करो। तुम्हारी शादी हुए अभी कुछ ही दिन हुए हैं। ज़रा-सी भूल-चूक तुम्हारी ज़िन्दगी के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकती है।''
''ड्यूटी इज ड्यूटी।'' मेजर रशीद ने गम्भीरता से कहा-''और फिर मैं तो इस बात में यक़ीन करता हूं, पैकार पहले-प्यार बाद में। वतन के लिए मर मिटना मेरे लिए फर्ज की बात होगी।''
''माना, तुम रणजीत के हमशक्ल हो और कैप्टन रणजीत बनाकर हिन्दुस्तान लौटाए जा सकते हो। लेकिन वहां तुम्हें कई इम्तहानों से गुज़रना पड़ेगा। जाने से पहले उसके रिश्तेदारों, दोस्तों और अफ़सरों के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर लेनी होगी। रणजीत और उसके घरवालों की शौक व आदतें समझ लेनी होंगी।''
''जी हां...मैंने अपनी जिम्मेवारी को बखूबी समझ लिया है। मुझे यक़ीन है कि मैं यह काम अच्छी तरह कर गुजरूंगा।''
''जानते हो, तुम्हें क्या-क्या करना होगा?''
''जी हां...। कैप्टन रणजीत के रूप में हिन्दुस्तान के हवाई अड्डों और छावनियों की पोज़ीशन का अंदाज़ा लगाना। उनके नये हथियारों और फ़ौजी अहमियत की दूसरी ईज़ादों के बारे में मालू-मात हासिल करना। मैं जानता हूं इस काम में जोखिम बहुत है, लेकिन मुझे लगता है कि इस मेरे हमशक्ल अफ़सर को क़ैदी के रूप में भेजकर क़ुदरत खुद हमारी मदद करना चाहती है। ऐसे मौक़ों का ज़रूर फायदा उठाना चाहिए।''
यह कहकर मेजर रशीद आशा भरी दृष्टि से ब्रिगेडियर उस्मान की ओर देखने लगा।
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