हास्य-व्यंग्य >> भीड़ और भेड़िए भीड़ और भेड़िएधर्मपाल महेंद्र जैन
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बस को… दायीं तरफ़ से आईएएस धक्का ला रहे हैं। बायीं तरफ़ मन्त्रीगण लगे हैं। पीछे से न्यायपालिका दम लगा के हाइशा बोल रही है और आगे से असामाजिक तत्व बस को पीछे ठेल रहे हैं।… गाड़ी साम्य अवस्था में है। गति में नहीं आती इसीलिए स्टार्ट नहीं होती। प्रजातन्त्र की बस सिर्फ़ चर्र-चूँ कर रही है। ड्राइवर का मन बहुत करता है कि वह धकियारों को साफ़-साफ़ कह दे कि एक दिशा में धक्का लगाओ। धकियारे उसकी नहीं सुनते, वे कहते हैं तुम्हारा काम आगे देखना है, तुम आगे देखो, पीछे हम अपना-अपना देख लेंगे। प्रजातन्त्र की बस यथावत खड़ी है।
(प्रजातन्त्र की बस)
मन्त्रीवर के तलवों में चन्दन ही चन्दन लगा था। तब रसीलाजी और सुरीलीजी ने मन्त्रीवर की जय-जयकार करते हुए कहा नाथ आपके पुण्य चरण हमारे भाल पर रख दें। मन्त्रीवर संस्कृति रक्षक थे, नरमुंडों पर नंगे पैर चलने में प्रशिक्षित थे। उन्होंने सुरीलीजी व रसीलाजी के भाल पर अपने चरण टिका दिए। कलाकार की गर्दन में लोच हो, रीढ़ में लचीलापन हो, घुटनों में नम्यता हो और पवित्र चरणों पर दृष्टि हो तो मन्त्रीवर के चरण तक कलाकार का भाल पहुँच ही जाता है।
(भैंस की पूँछ)
साठोत्तरी साहित्यकार…जो साठ बसंत पार कर चुका है और अब वह स्थिरप्रज्ञ हो गया है, न उम्र बढ़ रही है, न ज्ञान। हिन्दी साहित्य के वीरगाथाकाल से लगाकर भक्तिकाल में ऐसे साहित्यकारों को सठियाया कहा गया है। अति आधुनिककाल में गृह मन्त्रालय, ज्ञानपीठें, सृजन पीठें, भाषा परिषदें और अकादमियाँ अस्सी वर्ष की औसत उम्र के साहित्यकारों को सठियाया नहीं मानती।
(साठोत्तरी साहित्यकारों का खुलासा)
हाईकमान आईंनों के मालिक थे। आईने होते ही इसलिए हैं कि आईने का मालिक जिसे जब चाहे आईना दिखा दे। हाईकमान ने उन्हें उत्तल दर्पण के सामने खड़ा कर दिया। उत्तल दर्पण बड़े को बौना बना देता है। आईने में अपना बौना रूप देखकर गुड्डू भैया शर्मसार हो गए और हाथ जोड़ कर हाईकमान के चरणों में बिछ गए।
(हाईकमान के शीश महल में)
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