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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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आधुनिक भारत के निर्माता

इस प्रकार तत्कालीन सरकार ने सरसरी तौर पर स्वशासन (होम रूल) की मांग को एकदम रद्दी की टोकरी में फेंक दिया। लेकिन जैसा कि सरकार चाहती थी, इसे अपने दिमाग से बिलकुल निकाल देने में वह असमर्थ थी। इसके विपरीत, इस आन्दोलन के नेताओं पर मुकदमा चलाने की जो नीति सरकार ने अपनाई, उससे इस आन्दोलन को और अधिक बल मिला। वाइसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने भारत-मंत्री (सेक्रेटरी ऑफ स्टेट) को भेजी गई एक गुप्त रिपोर्ट में लिखा-

''तिलक, एनी बेसेन्ट और अन्य लोग तुरंत स्वशासन (होम रूल) प्राप्त करने के लिए बड़े जोर-शोर से आन्दोलन चला रहे हैं और इस बारे में यदि भारत सरकार द्वारा नीति-विषयक कोई निश्चित घोषणा तुरंत न की गई, तो अब तक जो बहुत-से लोग इस बारे में बहुत कम जागरूक थे, वे भो इस आन्दोलन की लपेट में आ जाएंगे। इस आन्दोलन का भारत की जनता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। वर्तमान प्रशासन प्रणाली और उसके कार्यों की निरन्तर द्वेषपूर्ण आलोचना से खतरा बढ़ता ही जा रहा है।''

इसलिए वाइसराय ने अनुरोध किया कि युद्ध के बाद प्रस्तावित संवैधानिक परिवर्तनों के सम्बन्ध में शीघ्र ही घोषणा की जाए। इसी अनुरोध के फलस्वरूप भारत-मंत्री (सेक्रेटरी ऑफ स्टेट) एडविन मान्टेग्यू ने 20 अगस्त, 1917 को ब्रिटिश संसद में अपनी यह ऐतिहासिक घोषणा की-''ब्रिटिश सरकार की यह नीति है कि प्रशासन की हर शाखा में भारतीयों को अधिकाधिक संख्या में सम्मिलित किया जाए और धीरे-धीरे स्वशासी संस्थाओं को विकसित किया जाए, ताकि भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के एक अभिन्न अंग के रूप में उत्तरदायी सरकार स्थापित हो सके। ''उन्होंने आगे यह भी कहा कि इस दिशा में प्रगति क्रमशः धीरे-धीरे ही हो सकती है और ''सरकार ही यह निर्णय करेगी कि कब और कितनी प्रगति हुई।''

तिलक ने कहा कि यह घोषणा सही दिशा में एक अगला कदम है, इसलिए स्वागत-योग्य है, लेकिन ''भाषा और ठोस लाभ, इन दोनों दृष्टियों से यह घोषणा सन्तोषजनक नहीं है। ''अतः उन्होंने देशवासियों को सलाह दी कि नीति विषयक इस वक्तव्य की भावना को वे स्वीकार कर लें, किन्तु उन आकांक्षाओं और मांगों को और भी अच्छे ढंग से पूर्ति के लिए आन्दोलन जारी रखें, जो कांग्रेम-लीग योजना में समाविष्ट हैं। अन्य लोगों की भांति सम्भवतः तिलक को भी मान्टेग्यू की आसन्न भारत-यात्रा से बड़ी आशाएं थीं, लेकिन वह नरम दलवालों की भांति यह कतई नहीं सोचते थे कि इस ''ससदीय घोषणा से स्वर्णिम भविष्य का द्वार खुल गया है।'' उस समय वह सबसे अधिक चिंतित इस बात पर थे कि कहीं इस घोषणा से भारतीयों में मतभेद न पैदा हो जाए। लेकिन आखिरकार ऐसा हो ही गया, जब मान्टेग्यू-सुधारों के प्रति अपने अत्यधिक उल्लास-उत्साह के कारण नरम दलवाले कांग्रेस से अलग हो गए।

मान्टेग्यू 1918 की सर्दियों में भारत आए और राजनीतिज्ञों, सरकारी अधिकारियों, राजाओं आदि बहुत-से लोगों से मिले। अपनी 'इंडियन डायरी' में वह जिन लोगों से मिले थे, उनके विषय में उन्होंने अपनी राय बड़ी सच्चाई से जाहिर की है। तिलक ने कांग्रेस प्रतिनिधि मण्डल के सदस्य की हैसियत से और व्यक्तिगत रूप से भी उनसे भेंट की थी। उनके विषय में मान्टेग्यू ने लिखा है-''हम लोग आज राजनीतिज्ञ तिलक से मिले। वह बहुत ही उग्र विचारों के हैं, किन्तु भारत में ऐसा कोई और व्यक्ति नहीं, जो उनसे अधिक प्रभाव रखता हो।...अतः स्पष्ट था कि वह कांग्रेस की मांगों से कम किसी भी चीज से सन्तुष्ट होनेवाले नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ''सरकार जो कुछ भी देगी, उसे हम ले लेगे, किन्तु कांग्रेस की मांगें जब तक पूरी नहीं की जाएंगी, तब तक हम सन्तुष्ट नहीं होंगे।''

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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