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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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आधुनिक भारत के निर्माता

''स्वाधीनता संग्राम'' से एक वर्ष पूर्व जन्मे तिलक का देहावसान भारत के स्वाधीन होने के सत्ताईस साल पहले हुआ था। इस प्रकार उनका जीवन हमारे स्वाधीनता संग्राम के एक बड़े भाग तक फैला हुआ था लेकिन यह भाग जल के भीतर बहते हिमखण्ड के समान जनता की दृष्टि से छिपा हुआ है। वस्तुतः यह तिलक ही थे, जिन्होंने अपने देशवासियों को अपनी गुलामी के प्रति जागरूक बनाया और उनमें स्वाधीनता के लिए उत्कट लगन पैदा की। चिरोल उन्हें 'भारतीय अशान्ति का जनक' मानता था, लेकिन तिलक ने अपने देशवासियों के दिलोदिमाग में अशान्ति पैदा करने के अलावा और भी कई बड़े काम किए। उन्होंने उसे अभिव्यक्ति दी, स्वरूप प्रदान किया और रचनात्मक दिशाओं की ओर अग्रसर किया।

भारतीय राजनीति में जब तिलक का उदय हुआ, उस समय तक राजनीति अमीर तबके के लोगों के मनबहलाव का साधन मात्र थी। जब उन्होंने इसे छोड़ दिया, तब वह जनसाधारण की चीज बन गई। 1896 में ही तिलक ने लिखा था : ''शिक्षित वर्गवालों की जो यह धारणा है कि वे आम जनता से भिन्न और अलग हैं, उससे ज्यादा बेवकूफी की बात और कुछ नहीं हो सकती। उन्हें यह समझना चाहिए कि वे समस्त भारतीय जनता के ही एक अंग हैं। अतः जनता की मुक्ति पर ही उनकी मुक्ति निर्भर करती है।''

तिलक ने जनता को यह महसूस कराया कि अनुशासन, एकता और कठिन प्रयास के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने केवल इस नारे को जन्म ही नहीं दिया था कि ''स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है, जिसे मैं लेकर ही रहूंगा,'' प्रत्युत इसमें निहित भावना को साकार करने के लिए जीवन-पर्यन्त महान त्याग और संघर्ष भी किया था, जिस बीच देश की खातिर उन्हें सरकारी मुकदमों का मुकाबला करना तथा जेल जाना पड़ा, अपनी दौलत फूंकनी पड़ी और तरह-तरह के शारीरिक-मानसिक कष्ट सहते हुए तरह-तरह के बड़े काम करने पड़े। दरअसल, वही पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने राष्ट्रीय हितों के लिए देश की जनता को जागृत करके सुसंगठित किया और उसे जानदार बनाया।

लेकिन इतना होते हुए भी तिलक किसी राजनीतिज्ञ की सामान्य परिभाषा से उतने ही परे थे, जितने कि गांधी जी। प्रारम्भिक जीवन में उन्हें शिक्षा से प्रेम था और वह कहा करते थे कि स्वतन्त्र भारत में मैं गणित का प्रोफेसर बनूंगा। वह एक विद्वान और विचारक थे-एक ऐसे दार्शनिक थे, जिसकी वास्तविकता में पैठ थी। 'गीता रहस्य' पुस्तक सदैव उनकी विद्वत्ता का स्मारक सिद्ध होगी। लेकिन उन्होंने केवल 'गीता' की व्याख्या ही नहीं की, बल्कि उसे अपने जीवन में उतारा भी। वह एक ऐसे स्थितप्रज्ञ थे, जिसे परम संतुलन प्राप्त था।

उनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य था ब्रिटिश शासन से मुक्ति। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने अपनी अतुलनीय बौद्धिक प्रतिभा, शारीरिक क्षमता और धन-दौलत-सब कुछ अर्पित कर दिया तथा अपने महान त्याग और अदम्य आत्मबल से भारतीय स्वाधीनता की नींव रखी। अगर यह नींव न होती, तो गांधी जी के लिए स्वाधीनता का भवन खड़ा करना असम्भव होता। अतः जिस प्रकार महात्मा गांधी राष्ट्रपिता हैं, उसी प्रकार लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रवाद के जनक हैं।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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