जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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आधुनिक भारत के निर्माता
तिलक के भाग्य में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में भाग लेना नहीं लिखा था। जुलाई के प्रारम्भ में वह मलेरिया से पीड़ित हो गए। मुश्किल से वह अभी इस रोग से मुक्त ही हुए थे कि उन्हें ताई महाराज के मुकदमे से पैदा हुए एक मामले के सिलसिले में बम्बई जाना पड़ा, जिसमें अन्तिम फैसला उन्हीं के पक्ष में रहा। 21 जुलाई को वह हवा-खोरी के लिए मोटर से बाहर जा रहे थे कि उन्हें ठंड लग गई और इसके बाद ज्वर हो आया। फलतः दो दिन बाद उनका जो 64वां जन्म दिवस पड़ा, उसे उन्होंने शय्या पर लेटे-लेटे ही मनाया। उस दिन वह कुछ भले-चंगे नजर आए और प्रसन्नतापूर्वक कहा कि मैं पांच साल और जीवित रहूंगा। किन्तु 26 जुलाई को ज्वर ने गम्भीर रूप धारण कर लिया, जिससे उनकी हालत संगीन हो गई।
उनकी शय्या के निकट मित्र और सगे-सम्बन्धी जमा हो गए तथा जिस होटल में वह बीमार पड़े थे, वहां उनका हालचाल पूछने के लिए शुभचिंतकों की भीड़ लग गई। 29 जुलाई से वह हत्शल एन्जिना पेक्टोरिस के दौरे से पीड़ित हो गए। उन्हें मूर्च्छा आने लगीः किन्तु बेहोशी की हालत में भी अण्ड-बण्ड वह जो कुछ बकते थे, वह भी उनके राजनीतिक कामों और स्वराज के लिए संघर्ष से सम्बन्धित था। उनकी देखभाल और चिकित्सा में चौबीसों घण्टे बम्बई के अनेकानेक सुयोग्य चिकित्सक लगे रहे, किन्तु उनकी सारी कोशिशें नाकाम साबित हुई, जब 1 अगस्त, 1920 को रविवार के दिन 12.40 बजे रात में वह इस दुनिया से चल बसे।
नेहरू जी के शब्दों में, जो उस समय बम्बई में मौजूद थे, ''बम्बई की पूरी 10 लाख जनता अपने उस महान नेता को अन्तिम श्रद्धांजनि देने के लिए सड़कों पर निकल आई, जिसे वह बहुत ज्यादा प्यार करता थी।'' शव-यात्रा के जुलुस को अरब सागर के किनारे चौपाटी तक पहुंचने में पांच घण्टे लग गए, जहां उनका दाह-संस्कार करने के लिए विशेष अनुमति ली गई थी और यह एक ऐसा सम्मान था, जो इससे पहले किसी भी अन्य व्यक्ति को नहीं मिला था। आज भी उस स्थान पर तिलक की प्रतिमा खड़ी है, जो आनेवाली पीढ़ियों को सदैव अपनी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य पालन करने की याद दिलाती रहेगी।
तिलक के देहावसान पर गांधीजी ने जो श्रद्धांजलि अर्पित की थी, उससे उनके जीवन पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है :
''यह विश्वास करना कठिन है कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अब हमारे बीच नहीं रहे। वह जनता के अभिन्न अंग बन गए थे। हमारे युग के किसी भी व्यक्ति का जनता पर उतना प्रभाव नहीं था, जितना उनका था। हजारों-लाखों देशवासियों की अगाध श्रद्धा उन्हें प्राप्त थी। वह निर्विवाद रूप से जनता के हृदय-सम्राट थे। हजारों व्यक्तियों के लिए उनके शब्द ही कानून थे। आज एक महामानव चल बसा, एक सिंह की दहाड़ बंद हो गई। अपने देशवासियों पर उनका इतना अधिक प्रभाव क्यों था? उसका क्या कारण था? मैं समझता हूं कि इसका जवाब बड़ा सीधासादा है। वह जनता के हृदय पर इसीलिए शासन करते थे कि वह एक महान देशभक्त थे- ऐसा महान देशभक्त, जिसका अपने देश को प्यार करना ही धर्म था, जो इसके अलावा और किसी धर्म को जानता ही नहीं। वस्तुतः वह जन्मजात लोकतन्त्रवादी थे।
''वह बहुमत की राय को मान्य समझते थे। यह भावना उनके अन्दर इतनी प्रबल थी कि कभी-कभी मैं डरने लगता था। किन्तु वही उनका सम्बल था। वह फौलादी इच्छा-शक्ति से सम्पन्न थे और उसका प्रयोग उन्होंने अपने देश के लाभ के लिए किया भी। वह सादगी पसंद इन्सान थे। उनका व्यक्तिगत जीवन बिल्कुल निष्कलंक था। उन्होंने अपनी अपूर्व प्रतिभा का उपयोग अपने देश के लिए किया। लोकमान्य ने अपनी तर्क-पटुता और दृढ़ता से स्वराज के सिद्धान्त का प्रतिपादन जिस तरह किया, वैसा किसी ने नहीं किया।
''इसीलिए सारे देशवासियों को उन पर अदूट विश्वास था। आनेवाली पीढ़ियां सदा उन्हें आधुनिक भारत के निर्माता-रूप में याद करेंगी। और जनता के लिए जीने-मरनेवाले इस महापुरुष के प्रति अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करेंगी।''
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट