प्राचीन कविताएँ >> दैत्य वंश महाकाव्य दैत्य वंश महाकाव्यडॉ. गजेन्द्र सिंह परमार
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दैत्य वंश महाकाव्य
समर्पण
उस संस्कारमयी माँ
को समर्पित
जिनकी सद् प्रेरणावशात् अध्ययन के प्रति मेरी
रुचि जाग्रत हुई और
आद्यन्त अध्यवसायी बना रहा।
जिसके न होने पे दुनियाँ न होती ।
बिना उस शै के कुदरत भी रोती।
उसी माँ को अर्पण करूँ शब्द तर्पण,
जिसके बिना जिन्दगी ये न होती।
- गजेन्द्र
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- अनुक्रम
अनुक्रम
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