वास्तु एवं ज्योतिष >> मन्त्र साधना और सिद्धान्त मन्त्र साधना और सिद्धान्तशुकदेव चतुर्वेदी
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दो शब्द
समय एवं परिस्थितियों की प्रतिकूलता से त्रस्त मानव को पुनः सन्तुलित कर सफलता की ओर ले जाने में मन्त्र साधना की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसीलिए समस्या एवं संकटों से घिरे मनुष्यों को विश्व के सभी धर्मों ने मन्त्र एवं प्रार्थना का आश्रय लेने की सलाह दी है।
भारतीय चिन्तनधारा में मन्त्र की महनीयता एवं कमनीयता इसलिए मानी गयी हैं, क्योंकि यह व्यक्ति की सुप्त या लुप्त आत्मीय शक्ति को जगाकर दैवी शक्ति के साथ सामंजस्य स्थापित करने वाला गूढ़ ज्ञान है। और इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अपने एक हाथ से साधक को भोग और दूसरे हाथ से मोक्ष प्रदान करता है। व्यक्ति के जीवन की कैसी भी समस्या क्यों न हो – चाहे वह शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, व्यवसायिक, पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक या आध्यात्मिक हो – मन्त्र साधना अभीष्ट सिद्धि का सबसे विश्वसनीय साधन माना जाता है।
तक्षशिला एवं नालन्दा के विध्वंस में विदेशी आकान्न्ताओं ने इस शास्त्र के हजारों ग्रन्थों की होली जला दी थी। फिर भी आस्थावान् साधको के संग्रह में इस शास्त्र के सैकड़ों ग्रन्थ आज भी सुरक्षित एवं उपलब्ध है। इस शोध कार्य के लिए कराये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत, नेपाल, भूटान, सिक्किम, तिब्बत , बर्मा एवं श्रीलंका के पुस्तकालयों एवं पोथीखानों में इस शास्त्र के हस्तलिखित एवं प्रकाशित अपूर्ण एवं सम्पूर्ण लगभग 200 ग्रन्थ मिलते है, जिनकी सूची इस ग्रन्थ के अन्त में दी गयी है।
ये सभी ग्रन्थ संस्कृत में लिखित हैं। लौकिक संस्कृत भाषॉ की तुलना में वैदिक एवं तान्त्रिक संस्कृत बहुत ही दुरुह एवं क्लिष्ट हैं। मन्त्र साधना के इस जीवनोपयोगी एवं परम्परागत ज्ञान को जन-गण-मन तक पहुंचाने के लिए मैं इस शोधकार्य में प्रवृत्त हुआ और इसके परिणाम स्वरूप यह ग्रन्थ अपने विज्ञ पाठकों के हाथों में सौंपते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है।
इस शोध कार्य के लिए प्रेरित करने और समय-समय पर एतदर्थ सुविधा जुटाने के लिए मैं श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली के कुलपति प्रो. वाचस्पति उपाध्याय का आभारी हूँ। जिनकी समयोचित सहायता के बिना यह कार्य पूरा नहीं हो सकता था।
मेरा विश्वास है, कि इसके अध्ययन से मन्त्रशास्त्र की मूल संकल्पना और आधारभूत सिद्धान्तों को हृदयंगम करने के साथ-साथ मन्त्र साधना के प्रयोग की पद्धति की जानकारी मिलेगी।
विषय- प्रवेश
सिद्धान्त खण्ड
- मानव जीवन
- दुःख और उसके कारण
प्रारब्ध, प्रकृति (स्वभाव), परिस्थिति, काल
- कारण एवं उनकी भूमिका
- दुःखों के कारणों के निर्धारण एवं निवारण में ज्योतिष की भूमिका
- मन्त्र एवं उसकी विश्वसनीयता
- मन्त्र की परिभाषा
- मन्त्रों के भेद
- मन्त्र साधना
मन्त्र मेलापक, कुलाकुलचक्र, राशिचक्र, नक्षत्रचक्र, अकड़मचक्र, अकथहचक्र. ऋणी धनी चक्र, मन्त्र मेलापक का अपवाद, मन्त्रार्थ, मन्त्र-चैतन्य, मन्त्रों की कुल्लुका, मन्त्र सेतु, महासेतु, निर्वाण, मुख शोधन, प्राणयोग, दीपिनी, मन्त्र के सूतक, मन्त्र के दोष, दोष निवृत्ति के उपाय, जनन, दीपन, बोधन, ताडन अभिषेक, विमलीकरण, जीवन, तर्पण, गोपन एवं आप्यायन।
- परम्परागत शिक्षा-पद्धति एवं उसका रहस्य
शास्त्र/मन्त्र शास्त्र, विश्वास एवं निष्ठा, आत्मविश्वास, इष्टदेव में निष्ठा, सतत अभ्यास, दीक्षा, मन्त्र साधना की विधि।
- साधना विधि के सोलह अंग
भक्ति, शुद्धि, कायशुद्धि, चित्तशुद्धि, दिक्शुद्धि, स्थानशुद्धि, आसन, पचांग सेवन, आचार, धारणा, दिव्यदेशसेवन, प्राणक्रिया, मुद्रा, षडङ्न्यास की मुद्राओं के चित्र, आठ मुद्राएं, विष्णु की प्रिय मुद्राएं, शिव की प्रिय मुद्राएं, गणेश की प्रिय मुद्राएं, दुर्गा की प्रिय मुद्राएं, श्यामा एवं शक्ति की प्रिय मुद्राएं, तारा की प्रिय मुद्राएँ, त्रिपुरा की प्रिय मुद्राएं, अन्य देवताओं की प्रिय मुद्राएं, अन्य उपयोगी मुद्राएं, तर्पण, हवन, अग्नि, समिधा, दिशा एवं कुण्ड, हवनविधि, बलि, याग, जप, ध्यान एवं समाधि।
प्रयोग खण्ड
- पुरश्चरण
मन्त्र-पुस्श्चरण, पुस्श्चरण का स्थान, दीपस्थान एवं कूर्मचक्र, पुरश्चरण में आहार के नियम, ग्रहण-पुस्श्वरण।
- श्री गणेश
विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, अंगन्यास, श्रीगणेश मन्त्र का ध्यान, शक्ति विनायक मन्त्र, विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, षडङ्न्यास ध्यान लक्ष्मी विनायक मन्त्र, विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, षडङ्न्यास, ध्यान, सिद्धिविनायक मन्त्र, विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, षड॒ङ्न्यास, ध्यान, सिद्धिविनायक के अन्य मन्त्र, संर्वसिद्धिदायक गणेश मन्त्र, विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, षडङ्न्यास, ध्यान, गणेश पूजन-यन्त्र।
- कृष्ण
गोपाल मन्त्र, विनियोग, ऋष्यादिन्यास, पञचांगन्यास, वर्णन्यास, ध्यान, द्वादशाक्षर मन्त्र, विनियोग, ऋष्यादिन्यास, पञचांगन्यास, ध्यान।
- नृसिंह
उपसर्गनाशक नृसिंह मन्त्र, विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, षडङ्न्यास, ध्यान, नृसिंह पूजन-यन्त्र।
- हनुमद्
उपसर्ग एवं भयनाशक हनुमद् मन्त्र, विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, षडङ्न्यास, ध्यान श्री हनुमत्पूजन – यन्त्र रोग, रिपु एवं संकटनाशक हनुमन्मन्त्र, विनियोग, ,ऋष्यादिन्यास, षडङ्न्यास, ध्यान, उपसर्ग एवं भयनाशक अन्य मन्त्र।
- शिव
दशाक्षर शिवमन्त्र, विनियोग, पञचांगन्यास, ध्यान, महामृत्युञ्जय पूजन-यन्त्र, विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, षड़ङन्यास, ध्यान, महामृत्युञ्जय मन्त्र, ऋष्यादिन्यास, षडन्यास, वर्णन्यास, पदनन्यास।
- कार्तवीर्य
विनियोग, पञ्चांगन्यास, ध्यान कार्तवीर्यार्जुनका पूजन-यन्त्र।
- सम्पन्नता के लिए कुबेर
सम्पन्नता के लिए कुबेर मन्त्र, विनियोग , करन्यास, षडङ्न्यास, ध्यान, कुबेर यन्त्र, कुबेर का अन्य मन्त्र, ऋष्यादिन्न्यास करन्यास, षडङ्न्यास।
- दुर्गा
नवार्णमन्त्र (दुर्गा), दुर्गा पूजन-यन्त्र, विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, षडङ्न्यास, वर्णन्यास, ध्यान।
- लक्ष्मी
विनियोग, पञचागन्यास, ध्यान, महालक्ष्मी मन्त्र, लक्ष्मी यन्त्र, महालक्ष्मी मन्त्र, विनियोग, ऋष्यादिन्नयास, करन्यास, अंगन्यास, ध्यान।
- सरस्वती
वागीश्वरी (सरस्वती) मन्त्र, विनियोग, करन्यास, अंगन्यास, वर्णन्यास, ध्यान, वागीश्वरी यन्त्र, महासरस्वती मन्त्र, मन्त्रन्यास, ध्यान।
- महागौरि
महागौरिमन्त्र, विनियोग, ,ऋष्यादिन्यास, करन्यास, अंगन्यास, ध्यान महागौरी यन्त्र, मंगलागौरिमन्त्र, विनियोग, करन्यास, षडङ्न्यास।
- दरिद्रतानाशक रवि
दरिद्रतानाशक, विनियोग, ऋष्यादिन्यास, षडङ्न्यास, अंगन्यास, पंचमूर्तिन्यास, वर्णन्यास, ग्रहन्यास, ध्यान, सूर्य पूजन-यन्त्र।
- मन्त्र के मूल स्रोत्र
मन्त्र का व्यापक क्षेत्र
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