ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य हेमचन्द्र विक्रमादित्यशत्रुघ्न प्रसाद
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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!
उनचास
दूसरे दिन प्रभात में हेमचन्द्र योगी शिवनाथ की कुटिया में आया। योगी शिवनाथ प्रतीक्षा कर रहे थे, हेम चन्द्र को देखते ही आगे बढ़कर हृदय से लगा लिया। हेमचन्द्र का हृदय उछल रहा था। दोनों साथ-साथ बैठकर बातचीत करने लगे। धर्मपाल आता दिखाई पड़ा, दोनों बातचीत में मग्न थे। धर्मपाल आकर खड़ा हो गया। योगी ने देख लिया, साथ बैठने का आग्रह किया। हेमचन्द्र ने साथ में बैठाकर पूछा-'किधर चक्कर लगा आए ?'
'मैं गुप्तचर हूं, सब कुछ गुपचुप...आप पूछ नहीं सकते।' धर्मपाल ने बनावटी गम्भीरता में उत्तर दिया।
'अभी तो आप प्रकट हैं।' हेमचन्द्र ने मुस्कराते हुए कहा।
'जी, हां ! धर्म प्रकट हुआ है, कुशल मनाइए। सरवर साहब ऐसी नर्तकी का प्रबन्ध कर रहे हैं जो बादशाह और वजीर-दोनों पर अपना जादू चला सके, और इब्राहिम खां की पकड़ मजबूत हो सके।'
'मतलब यह है कि विषकन्या का प्रयोग किया जायेगा।'
'अनुमान तो यही है।' धर्मपाल ने उत्तर दिया।
'हेमचन्द्र तो सावधान रहेगा, कठोर होना पड़ेगा। पर बादशाह तो विलासी हैं, उन्हें कैसे सावधान किया जाए।'-योगी ने शंका की।
'प्रयत्न तो किया ही जाएगा।' हेमचन्द्र ने आश्वासन दिया।
'विषकन्या को अवसर ही नहीं मिले, उसे डरा दिया जाय।' धर्मपाल ने सुझाव दिया।
'यह हो सकता है।' हेमचन्द्र ने इस सुझाव को मान लिया।
'धर्मपाल ! एक दूर की बात है। मुगल पेशावर में जमे हुए हैं, उनके कदम बढ़ रहे हैं, और इधर सीकरी और आगरा में षड्यन्त्र चल रहा है तो मेवाड़, जयपुर, जोधपुर, बंदी आदि के अपने राजाओं से सहायता के लिए अनुरोध हो सकता है ?' योगी ने जिज्ञासा की।
'इसके लिए उधर जाना पड़ेगा। सभी तो अलग-अलग हैं, सभी को जोड़ना कठिन साधना है। सभी जुटकर अफगान बादशाह और हेमचन्द्र को सहायता करें- यह और भी कठिन है।' धर्मपाल ने अपना विचार रखा।
'प्रयत्न हो सकता है। परन्तु तुम्हें आगरा में रहना आवश्यक है। उधर के लिए थोड़ा सोचना पड़ेगा।' योगी ने निर्णय दिया। हेमचन्द्र ने इस निर्णय का समर्थन किया और कुछ देर के बाद वह दरबार के लिए लौट आया।
अपराह्न में दरबार सजा हुआ दिखायी पड़ा। किला क्षेत्र दहल, करनाई और नौबत बजने से गूंज रहा था। लग रहा था कि दरबार संगीत की लय पर झूम रहा है। नफीरी की मधुर धुन पर बादशाह आदिल शाह सूर तख्त पर बैठे। सारे दरबारी सर झुकाकर बैठ गए। बादशाह ने ग्वालियर की शानदार जीत के लिए अपने सिपहसालार इब्राहिम खां का नाम लिया। शाबासी दी, इब्राहिम खुश हो गया। उसने सर उठाकर दरबार को देखा। हेमचन्द्र पर मुस्कराती नजर डाली। उसी वक्त बादशाह ने कहा-'इस जंग में हेमचन्द्र ने बड़ी अक्लमंदी और बहादुरी से काम किया है। वह सिपहसालार का मददगार साबित हुआ है। चुनांचे वह सिपहसालार को पाथ देता रहेगा। सालारे आजम शादी खां साहब देखरेख करते रहेंगे।'
इब्राहिम को लगा कि उसका हक छीना जा रहा है। लमहे भर के लिए उसका चेहरा पीला पड़ गया। उसने अपने को संभाल तो लिया, पर उसका सर तना नहीं रह गया।
बादशाह का ऐलान सूनायी पड़ा.--'हेमचन्द्र को रेवाड़ी की जागीर अता की जाती है।'
यह सुनकर इब्राहिम की इच्छा हुई कि वह उठकर चला जाय और सरवर से सलाह करे।
बादशाह ने अपनी फौज को शाबासी देते हुए कहा-'अफगानों, हिन्दी मुसलमानों और हिन्दुओं की फौज इस हुकूमत की रीढ़ साबित होगी। इसकी हिम्मत और जवांमर्दी से मुगलों के छक्के छूट जायेंगे। सारे सालारों को इनाम दिया जाए। अपनी रिआया की दुआएं हमें मिली हैं, मैं शुक्रगुजार हूं। आगे भी वे हमारी हिम्मत बढ़ाती रहेंगी। हिन्दुस्तान की तवारीख में नयी बात हुई है। कलमकार इसे याद रखेंगे।'
‘अब हम रात की महफिल के लिए तैयार हों। यह जश्न की रात है, यह रात सबको मुबारक हो।'
सारे दरबार ने अपना उत्साह प्रकट किया। नफीरी बजने लगी, बादशाह तख्त से उठ गए। सारे दरबारी अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो गए। बादशाह के कदम बढ़े, साथ में शादी खां और इब्राहिम खां चले। बादशाह के इशारे पर हेमचन्द्र भी साय हुआ, वजीरों के साथ बादशाह दीवानखाने में आ गए। इब्राहिम सोच रहा था कि सरवर ने रक्कासा का इन्तजाम कर लिया है। जन्नत की हूर भी शरमा जाएगी, वह नाचेगी या बादशाह लट्टू-सा नाचेंगे-यह देखना है।
हेमचन्द्र बोल उठा--'हुजूरे आलम ! हम जश्न की रात मुगल को खत्म करके ही मनायें। उधर ताज खां भाग गया है। वह साजिश करने से बाज नहीं आएगा।'
'उसे छोड़कर गलती हो गयी है। उसकी बगावत नहीं रुकेगी।' शादी खां ने कहा।
'हुमायूं की फौज पेशावर से आगे बढ़ रही है। पूरी खबर तो नहीं मिली है, लेकिन लाहौर में अहमद खां सूर को ताकीद करना जरूरी है। उधर का पाया कमजोर न हो। हेमचन्द्र ने सुझाव दिया।
इब्राहिम को गुस्सा आ रहा था। शादी खां हेमचन्द्र की समझदारी पर खुश हो रहे थे, बादशाह तो कुछ क्षण तक देखते रह गये, और फिर बोल उठे – 'तुम्हारा कहना ठीक है। लेकिन रात में नाच की महफिल होगी। कुछ देर के लिए मारकाट-खूनखराबी और सियासत को भूल जाना है, जिन्दगी महज खून-खराबी तो नहीं है। वह रंगोबू है, हुस्नोजमाल है, ऐशोइशरत है।'
'जी, हां ! कुछ देर के लिए मन को बहला लेना है, पर उसमें खो नहीं जाना है। सियासत इसकी इजाजत नहीं देती, हुकूमत में हर जगह साजिश है।'
'तुम्हारी सब जगह सियासत और सियासत पर ही नजर रहती है।'
'मजबूरी है। हमेशा ख्याल रखना है।'
'ख्याल रखना...चुस्त चौकस रहना वजीरों और सिपहसालारों का फर्ज है।'
हेमचन्द्र ने इसे हुक्म मान कर कबूल किया। इब्राहिम कुढ़ रहा था।
रात की महफिल शुरू हुई। चांदी की कुर्सी पर बादशाह आदिल शाह रौनक महफिल थे। सारे वजीर, सालार और सरदार मौजूद थे। हेमचन्द्र को धर्मपाल से पता चल गया था कि सरवर ने एक खूबसूरत रक्कासा को बुलाया है। लेकिन यह समझ नहीं सका कि रक्कासा विषकन्या के समान जहर घुली होगी। शायद वह शौकीन मिजाज बादशाह को ऐयाशगाह में बन्द करने की कोशिश करेगी। इसी तरह इब्राहिम अपने साले बादशाह को काबू में रखने का प्रयत्न करेगा।
कितनी ओछी बात है ! साजिश ही है ! अभी बादशाह से जरूरी बातों पर सलाह करनी है। वक्त मिलेगा?
झाड़-फानूस की झलमलाती रोशनी में धुंघरुओं की आवाज झनक उठी। झिलमिल-लिबास में नर्तकी नादिरा अपने लबों से मुस्कानों के गुलाब बिखेरती हुई आ गयी। बादशाह की आंखें टंगी रह गयीं। नादिरा ने पास आकर कोनिश की, जुल्फों की नागिन लहरा उठी, और पीछे हटती गयी। बिजली के समान वह नृत्य की मुद्रा में आ गयी। वादकों की उगलियों ने सरगम की तरंगें पैदा कर दीं। सरस संगीत और मोहक पदगति के बीच नादिरा का उत्तेजक रूप बादशाह को मदहोश करने लगा।
हेमचन्द्र की दृष्टि सिपहसालार इब्राहिम खां पर गयी। बादशाह और इब्राहिम की नजरें मिल रही थीं। बादशाह इब्राहिम पर खुश हो गए थे। इब्राहिम की मुस्कराती नजरें उस पर आ गयीं, वह उन नजरों को समझने के लिए दिमाग पर जोर देने लगा। नादिरा बादशाह के पास आकर झुक गयी, फारसी गजल का नशीला समां बंध रहा था।
हेमचन्द्र आंखें गड़ाकर देख रहा था कि रक्कासा के होंठों और कपोलों पर विषैला आलेप तो नहीं हैं। यह पता लगना कठिन था, अचानक उसने देखा कि इब्राहिम के इशारे पर रक्कासा उसकी ओर मुखातिब हो गयी। उसने बलात् मुस्कराने की कोशिश की, नादिरा ने जंग में कामयाब हेमचन्द्र को मुबारकबाद दी। और फिर आसमानी कौंध के समान वह बादशाह से बोल उठी-'मैं फारस से हिन्दुस्तान के हुजूर बादशाह की खिदमत में आयी हूं। रास्ते में मुगल सरदार हुमायूं ने रोकना चाहा। मेरे धुंघरुओं ने इनकार कर दिया, वे अपने कद्रदां बादशाह सलामत के दिल की धड़कनों के पास आकर झनक उठी हैं। इन धुंघरुओं की जिन्दगी में बहार आ गयी है। बहार को आप अपनायेंगे, बस इतनी-सी गुजारिश है।'
बादशाह इब्राहिम की ओर देखा। इब्राहिम ने सर हिलाया, बादशाह ने खुश होकर सोने का जड़ाऊ हार रक्कासा के गले में पहना दिया। बिजली-सी सनसनी उंगलियों से होकर बादशाह के सारे शरीर में फैल गयी।
एक जासूस आहिस्ता-आहिस्ता आया। जासूसों के वजीर के पास आया, उसने कुछ बताया। हेमचन्द्र ने झुककर पूछ लिया, वह सहम उठा। उसने सोचा कि इस बेवक्त की शहनाई को कौन सुनेगा ! पर बादशाह को आगाह करना जरूरी है। वे नाराज हो गए तो देखा जाएगा।
हेमचन्द्र बादशाह के पास आया। हिम्मत कर कानों में बताया'हुजूर ! हुमायूं पेशावर को जीतकर आगे बढ़ गया है। इधर ताज खां पूरब की ओर बंगाल के सूबेदार मोहम्मद खां के पास पहुंच रहा है। पूरब और पश्चिम दोनों तरफ कयामत की बिजलियां चमकने लगी हैं। एक लमहे की भी गफलत न हो।'
बादशाह ने झुंझलाकर हेमचन्द्र की ओर देखा। और होंठ काटकर शादी खां की ओर मुखातिब हुए। शादी खां आ गए, उन्होंने सलाहमशविरा के लिए दीवानखाने में चलने का इसरार किया। इब्राहिम के सर पर गुस्सा चढ़ने लगा। उसने समझा कि उसके खिलाफ यह मोर्चेबन्दी है। लेकिन बादशाह हेमचन्द्र और शादी खां की बातों की संजीदगी को समझ गए। उनका नशा धीरे-धीरे उतरने लगा। नादिरा इब्राहिम की ओर देख रही थी। इशारा समझना चाह रही थी। इब्राहिम खां हालात को बदलते देख कुछ तय नहीं कर पा रहा था। उसी समय बादशाह ने महफिल मुल्तवी करने का इशारा कर दिया। इब्राहिम बादशाह के पास आया। बादशाह ने उसे भी सल्तनत के हालात के बारे में बताया। वह चुप रह गया। उसे भी दीवानखाने में जाना था, सलाहमशविरे में शामिल होना था। नादिरा को छोड़कर जाना पड़ रहा था, लगा कि धुंघरू टूट गए। बादशाह के हुक्म पर धुंघरुओं को बिखेर कर दूर जा रहा है।
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