ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य हेमचन्द्र विक्रमादित्यशत्रुघ्न प्रसाद
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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!
अड़तालीस
फतह का नगाड़ा बज रहा था। सारा आगरा शाही फौज का स्वागत करना चाह रहा था। पहली बार प्रजा भी जीत पर बधाई देने के लिए किले के पास आ गई थी। बादशाह आदिलशाह, सिपहसालार इब्राहिम खां और हेमचन्द्र का जयघोष होता जाता था। बादशाह के साथ साथ दोनों अपने-अपने घोड़ों पर सवार थे, फौज बढ़ी चली आ रही थी।
नदी पार कर सरवर अली आगे बढ़ा। हरखलाल भी उसी नाव से पार हुआ था, दोनों आगे-पीछे चल रहे थे। अभी तक दोनों में जान-पहचान नहीं हुई थी, अचानक दोनों के पैर रुक गए, दोनों के कान खड़े हो गए। 'हेमचन्द्र जिन्दाबाद' के नारे ने उनके दिलों पर चोट कर दी। ऐसा लगा कि अनदेखे बिच्छु ने राह चलते डंस लिया है। दोनों एक साथ खड़े हो गए, दोनों के मुंह से निकला-'यह क्या हेमचन्द्र जिन्दाबाद ! यह कैसे हो गया !'
दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा। हरखलाल ने समझा कि वह इसी तुरक को ढूंढ़ रहा था। तांत्रिक ने इसी से मिलने का संकेत दिया था, वह मिल गया। मन में हर्ष हुआ, बोल उठा - 'लगता है कि आप हेमचन्द्र से नाराज हैं। मैं भी नाराज हूं, इससे बहुत परेशान रहा हूं।'
'अगर आप साथ दें तो इस हेमू को सबक सिखाया जा सकता है। आपकी सारी परेशानियां दूर हो सकती हैं।' सरवर ने चारा डाला। वह समझ गया कि यह काफिर हेमू के खिलाफ है, इससे फायदा उठाया जा सकता है।
दोनों साथ-साथ किले की तरफ बढ़े। सरवर सोचने लगा कि हेमू को फतह का सेहरा कैसे पहना दिया गया ! क्या सोचा था, क्या हो गया ! इससे तो हेमू और मजबूत होगा। सिपहसालार खां साहब ने कैसे मौका दे दिया ?
धर्मपाल दोनों को देख रहा था, वह बदले हुए वेश में उनके पास ही था। दोनों की बातचीत का अंश भी कानों में आ गया। उसने देखा कि दोनों एक साथ जा रहे हैं। इब्राहिम खां सूर से ही मिल सकते हैं। हेमचन्द्र के विरोध में स्वार्थ के दोनों पुतले एक गुट में आ गये। दोनों का षड्यन्त्र इब्राहिम को भड़काएगा। अपनी गति रुक जाएगी। यह सोचकर धर्मपाल सिहर उठा, पर वह विजयी और यशस्वी हेमचन्द्र को देखकर सब भूल गया। उसने देखा कि गजराज सिंह, बहादुर खां, विजयवाहन और खेमराज की आंखों में विजय की आभा झिलमिला रही है। मुखड़े पर चमक है, जयघोष सुनकर वह भी झूम उठा।
फतहयाब बादशाह आदिलशाह ने किले के दरवाजे पर सरदारों, हाकिमों और रिआया से स्वागत-सम्मान पाया। बादशाह के ताज की कलगी धूप में चमक उठी। उन्होंने हेमचन्द्र की ओर देखा। मुस्कानों का आदान-प्रदान हुआ। जयघोष और फूलों की वर्षा से सारा किला गूंज उठा। सालारे आजम शादी खां ने मुबारकबाद दी। ताजे फूलों का गुलदस्ता पेश किया। इब्राहिम खां और हेमचन्द्र को भी गुलदस्ते दिये, पर इब्राहिम हेमचन्द्र की प्रतिष्ठा को देखकर जल उठा।
बादशाह आदिलशाह ने ऐलान किया कि कल शाही दरबार होगा, और रात में महफिल सजेगी। सबने सिर झुकाकर कबूल किया।
धर्मपाल ने इब्राहिम के चेहरे को पढ़ लिया। कुछ-कुछ समझा, यह चिन्ता की बात है। हेमचन्द्र के प्रभाव से कुछ लोग जलेंगे, सावधान रहना है। अब किशनपुरा को संवाद मिलना चाहिए। लक्ष्मी भवन को इस गौरव से सुख मिले, पूजा-पाठ में बेसुध मां-बेटी को समाचार नहीं मिला होगा। उन्हें प्रसन्न होने का अवसर मिले। हेमचन्द्र तो विलम्ब से लौटेगा। यह विचार कर वह लौट चला।
बादशाह आदिलशाह शादी खां, इब्राहिम खां और हेमचन्द्र के साथ शाही हरम के दरवाजे तक पहुंचे। सबने बादशाह को सर झुकाकर रुखसत पा ली। सभी साथ ही लौटे। शादी खां दोनों की तारीफ कर रहे थे, पर इब्राहिम को अच्छा नहीं लग रहा था। वह कुछ दूर साथ चला, और अपनी हवेली की ओर मुड़ गया। शादी खां को अजीब-सा लगा, वे हेमचन्द्र के साथ आगे बढ़ गये। गजराज सिंह, विजयवाहन, खेमराज और बहादुर खां साथ हो गए।
_इब्राहिम खां ने देखा कि हवेली के पास सरवर अली खड़ा है, साथ में और कोई भी है। कोई काफिर है, दोनों ने सिपहसालार इब्राहिम को बधाई दी। उसने सरवर के इशारे पर हरखलाल को भी साथ ले लिया, सरवर ने हरखलाल की तारीफ की। इब्राहिम अपने बनते हुए गुट को देखकर भीतर-ही-भीतर मुस्कराने लगा। दो क्षणों के बाद सभी दीवानखाने में बैठे, मिठाइयों की तश्तरियां आ गयीं।'
इब्राहिम ने शाह हरखलाल को नगर सेठ के ओहदे पर ला देने का वादा किया। हरखलाल का चेहरा दमक उठा। सरवर ने हरखलाल को बधाई भी दे दी, और दो लमहे ठहर कर धीरे से कहा- 'शाही महफिल के लिए एक खूबसूरत रक्कासा को मैं पेश कर सकता हूं, अगर आप...।'
इब्राहिम ने सरवर की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा-- 'जरूर इन्तजाम करो। बादशाह सलामत को अपने काबू में रखना है। मेरा रिश्तेदार मुझसे दूर कहां जाएगा ?'
'ऐसा ही इन्तजाम होगा, लेकिन आप शादी खां साहब को खुश रखें।'
'वे तो हेमचन्द्र को अपना शागिर्द मानते हैं।'
'इसीलिए तो आप उन्हें खुश रखने की कोशिश करें। महफिल जमे, रक्कासा बादशाह को रिझा ले। हेमचन्द्र शामिल हो जाय तो मजा आ जाय।
'वह तो शराब और साकी- दोनों से परहेज रखता है, अजीबो-गरीब है।'
उधर धर्मपाल हेमचन्द्र से पहले लक्ष्मी भवन पहुंच गया। संवाद फैला हुआ था, किशनपुरा में हेमचन्द्र के जयघोष से अभूतपूर्व उत्साह दिखाई पड़ रहा था। वह मां दुर्गा कुंवर के पास पहुंचा, विजयी हेमचन्द्र के सकुशल लौट आने का संवाद सुनाया। पूजा में लीन पार्वती ने देवमूर्ति के सामने शीश झुकाया। दूर बैठी नूरी कबीरदास का पद गुनगुना रही थी। जमाल मोहन मुंशी हरसुखलाल के साथ स्वागत की तैयारी करने लगा। लक्ष्मी भवन में वसंत का वातावरण छा गया। दुर्गा कुवर ने सबसे पहले धर्मपाल का मुंह मीठा कराया। धर्मपाल तृप्त हो उठा, वह विजयी हेमचन्द्र के मुख का स्मरण करने लगा। उसे ऐसा मालूम हुआ कि अब आया...अब आया। साथ ही सरवर और हरखलाल के चेहरे भी झलक उठे। वह सावधान हो गया। उसने सोचा कि इस गुट के पीछे रहना बहुत आवश्यक है। राजधानी में यह गुट बनना ठीक नहीं हुआ, पर यह अपने वश की बात नहीं है, पर इनके षड्यन्त्र को विफल करना अपने वश की बात है।
जयघोष के मध्य हेमचन्द्र आ गया। साथ में गजराज सिंह, विजयवाहन, खेमराज और बहादुर खां थे। सारा किशनपुरा स्वागत कर रहा था। हेमचन्द्र हाथ जोड़कर सबका स्वागत स्वीकार करने लगा। द्वार पर मां दुर्गा और पत्नी पार्वती मंगल आरती के लिए आ गयीं।
साथ में नूरी भी थी, सोना नूरी को आरती का मतलब समझा रही थी। नूरी को बड़ा अच्छा लग रहा था। उसके हाथों में गुलदस्ता था। हेमचन्द्र घोड़े से उतरा, मां के चरणों में झुका। दुर्गा कुंवर ने आशीष देते हुए आरती उतारी, तिलक किया, मुंह में मीठा रख दिया। पत्नी पार्वती ने आरती की और चरणों में झुक गई। नूरी ने बड़े स्नेह से गुलदस्ता पेश किया।
सबका स्वागत हुआ, सभी अन्दर आये। जमाल सबके भोजन के प्रबन्ध के लिए मंशी चाचा को परामर्श दे रहा था।
दुर्गा कुंवर और पार्वती दोनों हेमचन को देखे जा रही थीं। शरीर पर कहां-कहां घाव हैं ! कैसे इन्होंने युद्ध को जीत लिया ! रक्त की बूंदें, घाव, धूल और थकान- ये सब विजय से दमकते मुखड़े में छिप गई थीं। परन्तु पार्वती तो एक क्षण प्रसन्न होती और दूसरे क्षण विकल हो जाती, नूरी साथ दे रही थी।
हेमचन्द्र अपने मित्र सेनानियों के साथ बैठा हुआ था। उसी समय शायर मंझन आये, सबने स्वागत किया। मंझन ने बधाई दी, हेमचन्द्र ने शीश झुकाकर स्वीकार किया, और फिर मिठाइयों का दौर चला। वैद्य जी आकर बैठ गए, पर अभी मलहमपट्टी की बात कोई सुनने वाला नहीं था। हेमचन्द्र ने कहा- 'बादशाह मेरे साथियों की वीरता पर चकित हैं। इन्हीं के कारण यह विजय मिली है। बादशाह यह समझ गए हैं।'
'यह शुभ लक्षण है, लेकिन सिपहसालार इब्राहिम खां जल उठा है।' धर्मपाल ने बताया।
'उसका वश चलता तो मुझे शत्रुओं के बीच डाल आता और खुद हारकर लौट आता। यह बादशाह भी महसूस कर चुके हैं। हेमचन्द्र ने उत्तर दिया।
'बादशाह का बहनोई इब्राहिम खां आपको देखना नहीं चाहता। क्योंकि सरवर अली सलाहकार बन गया है। सरवर और हरखलाल का गुट सक्रिय है।' धर्मपाल ने स्पष्ट किया।
'इन दोनों का गुट बना है ?' जमाल ने पूछा।
'जी, हां ! मैं देख कर आ रहा हूं। अब तो आगरा में काम करना सहज हो गया। इन्हीं दोनों से मालूम होता जाएगा।'-धर्मपाल ने जमाल की तरफ मुड़कर जवाब दिया। ‘और उधर सीकरी में सूफी फकीर मुगलों के प्रति अपना भाव छिपा नहीं पा रहा है। वह मुगलों के पक्ष में प्रचार कर रहा है, शायर मंझन साहब ही थे।' जमाल ने अपना विवरण रख दिया।
मंझन ने इस कथन का समर्थन किया। हेमचन्द्र ने चिन्तित स्वर में कहा-'उधर विशेष ध्यान रखना पड़ेगा। कल दरबार में इस पर बातचीत होनी चाहिए।'
'सूफी फकीर पर शाही दरबार कुछ नहीं कर सकेगा, आप बादशाह से मिलकर समझायें।' मंझन ने राय दी।
जमाल ने कहा – 'मंझन साहब का विचार सही है, मुगलों के खिलाफ भी प्रचार होना चाहिए।'
बहादुर खां और गजराज सिंह ने समर्थन किया।
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