उपन्यास >> रामराज्य रामराज्यशरणकुमार लिंबाले
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आज भी वनवास में जी रहे लोगों की यह रामायण है। यह पग-पग पर सामने आता हुआ दाहक समाज-वास्तव है। आज़ादी मिली परन्तु किसे मिली ? अभी भी यहाँ का भय ख़त्म नहीं हुआ है। है यह लोकतन्त्र धर्म, जाति, भ्रष्टाचार और अपराध से जकड़ा हुआ है। फिर दलित समाज तो पूर्णतया हाशिये पर है। प्रभु रामचन्द्र ने बारह वर्ष का वनवास सहा। दलित हज़ारों वर्षों से यह वनवास भोग रहे हैं। उनका वनवास कब ख़त्म होगा ? जिसके दुखों को हर समय उपेक्षा झेलनी पड़ी उस हाशिये पर धकेले गये इन्सान की यह कहानी है। आज़ादी मिली परन्तु किसे मिली ?
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