भाषा एवं साहित्य >> देहरी पर दीपक देहरी पर दीपकमाधव हाड़ा
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देहरी पर दीपक का यथार्थ वह ग्रामीण भारतीय जनमानस जानता है, जो आज के उत्तर आधुनिक, उग्र उपभोक्तावादी दौर से पहले का है। देहरी के दीपक में आश्वस्ति होती है, घुप्प अन्धकार के बीच हमारी भवता के सहकार की ! उसमें ऊष्मा होती है, भरोसा होता है अन्धकार के भीतर सुरक्षित रहने का। उसी तरह माधव हाड़ा का दीपक बौद्धिक विवेक का आश्वासन है। इसमें किसी किस्म की आक्रामकता नहीं है, न ही किसी किस्म की परमुखापेक्षिता। है तो अपने विवेक के साथ समय और समाज से एक सार्थक संवाद का आग्रह। इस संवाद में न परम्परा का निषेध है, न परम्परागत विषयों और न ही आधुनिक सन्दर्भों का। इसीलिए इसमें मीरा और सूरदास हैं तो तुगलक और ब्रह्मराक्षस भी। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की भारतीय परम्परा है तो छायावाद का विश्लेषण भी।
विषयों, सन्दर्भों और प्रसंगों की विविधता के बीच परम्परा, संस्कृति, जनचेतना का दृश्य रूप आदि वे संगतियाँ हैं, जिससे इस विविधता की आन्तरिकता निर्मित होती है। यह एकान्विति ही हमारी आश्वस्ति का मूल आधार है।
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