आलोचना >> डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की साहित्य-विमर्श डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की साहित्य-विमर्शपीयूष कुमार द्विवेदी
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इक्कीसरवीं सदी का युग प्रौद्योगिकी का है। इस मशीनरी युग में रिश्तें कमजोर होते जा रहे हैं और लोग तकनीकी के माध्यम से, वास्तविकता के धरातल से कोसों दूर कल्पना लोक में विचरण करने लगते हैं। जहाँ क्षणिक सुख के अलावा हताशा, निराशा, अशांति और मानसिक तनाव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। ऐसे में किंकर्तव्यविमूढ़ व्यक्ति के लिए सांसारिक जीवन कष्टदायक हो जाता है। ऐसे समय में डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ जैसे कवियों की प्रेरणादायक कहानियाँ और कविताएँ व्यक्ति को उद्दाम जीवन जीने को प्रेरित करती हैं, जहाँ दुःख का आँसू, खुशी का पल और प्रकृति का प्रेम सांसारिक जीवन दृष्टिगत होता है। कवि डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के उक्त भावों को देखकर उनके व्यक्तित्व के संबंध में कवि ‘दिनकर’ की ‘रश्मिरथी’ की यह पंक्ति पूर्ण रूप से चरितार्थ होती है –
‘‘दया-धर्म जिसमें हो सबसे वही पूज्य प्राणी है।’’
डॉ. ‘निशंक’ ने जिन विषयों को अपने काव्य हेतु चुना है वह जग में प्रशस्ति के योग्य है। जिस प्रकार अखिल ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व सूर्य करता है, उसी प्रकार उत्तराखंड के यशस्वी कविवर डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ भी वर्तमान कवियों के प्रतिनिधित्व का दामन थामे हुए हैं।
डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की रचना सर्वविध प्रकार से लेखक और पाठक के लिए लोकोपकारक साबित होगा। यह काव्य प्रेरणा होगी, पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले युवकों और प्रकृति प्रेमी पाठकों के लिए। इन्हीं शब्दों के साथ इस पुस्तक की सफलता हेतु समीक्षक डॉ. पीयूष कुमार द्विवेदी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
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