स्वास्थ्य-चिकित्सा >> निदान चिकित्सा हस्तामलक-4 निदान चिकित्सा हस्तामलक-4वैद्य रणजितराय देसाई
|
0 |
प्रकाशकीय वक्तव्य
आयुर्वेद के मूर्धन्य लेखकों में एक वैद्य रणजितराय जी देसाई द्वारा लिखित निदान-चिकित्सा हस्तामलक (छात्रोपयोगी निदान चिकित्सा) का चतुर्थ खण्ड वाचकों की सेवा में प्रस्तुत करते हुए हमें हर्ष हो रहा है।
हमारे हर्ष का प्रधान कारण इस ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय है। आयुर्वेद को समाज में प्रिय बनाने के लिए उसे समाज के लिए उपयोगी बनाना आवश्यक है। केवल आयुर्वेद के अतीत का गुण गाने से समाज को उसके प्रति आकर्षित करना संभव न होगा। वह समाज को उपयोगी हो वह प्रत्यक्ष द्वारा स्थापित किया जाय तभी समाज इसके प्रति आकृष्ट होगा – इसे अपनाएगा। इस ग्रन्थ का विषय रोगों की परीक्षा तथा उनका उपचार होने से यह सामाजिकों को आयुर्वेद को अपनाने के लिए प्रेरक सिद्ध होगा।
श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन के संस्थापक तथा प्रधान प्रबन्ध संचालक गोलोकवासी आदरणीय वैद्य श्री रामनारायणजी शर्मा इस सत्य की तह तक पहुँचे थे। इसी कारण भवन की समस्त शाखाओं और एजेन्सियों में अनुभवी चिकित्सकों की नियुक्ति करने का उनका संकल्प भवन के स्थापना-काल से ही रहा था।
जीवन के अन्तिम भाग में इस तथ्य को अधिक क्रियात्मक रूप उन्होंने दिया था। गोकुल वृन्दावन में भवन की ओर से आयुर्वेदाश्रम की स्थापना कर बाह्य तथा आभ्यन्तर रुग्ण विभाग आप चला रहे थे। इस में औषध भी निःशुल्क दी जाती थी। बैद्य जी वृन्दावन होते तो स्वयं चिकित्सक के रूप में सक्रिय भाग लेते थे। इस प्रकार रुगणचिकित्सात्मक अनुसंधान को व्यवहार में लाते हुए कितने ही नूतन कल्पों के पाठ निर्धारित कर उनके निर्माण और विक्रय की व्यवस्था आपने की थी। संसद के सभ्यों को आयुर्वेदाभिमुख करने के लिए कुछ समय सांसदों को आयुर्वेदीय उपचार सुलभ करने के लिए औषधालय भी चलाया था।
इस पुस्तक का विषय भी निदान-चिकित्सा होने से उसका महत्व वाचक इस विवेचन के आधार पर समझ सकेंगे। इसे सर्वान्तःकरण से अपनाकर वाचकवर्ग लेखक तथा प्रकाशक का परिश्रम सफल करेंगे, यही नम्न विनंती है।
|