धर्म एवं दर्शन >> श्रीमद् भागवत कथा तर्ज राधेश्याम कथावाचक बरेली श्रीमद् भागवत कथा तर्ज राधेश्याम कथावाचक बरेलीपण्डित गोविन्ददास व्यास
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प्राक्कथन
श्रीमद् भागवत भगवान का साक्षात् वाङ्मय स्वरूप है। महर्षि वेद व्यास जी ने संस्कृत में इसकी रचना की, इससे उन्हें परम शान्ति मिली थी। इसमें सकाम कर्म, निष्काम कर्म, साधन एवं भक्ति का परम रहस्य भरा पड़ा है। यह ग्रन्थ भगवान के मधुर प्रेम रस का छलकता हुआ सागर है। इसके समतुल्य अन्य कोई ग्रन्थ नहीं है। इसके पठन-पाठन, श्रवण एवं चिन्तन मनन करने से मनुष्य की समस्त भ्रान्तियाँ दूर हो जाती हैं और शीघ्र ही शाश्वत शान्ति की प्राप्ति होती है। राजा परीक्षित ने श्री शुकदेव जी से इसकी कथा का श्रवण करके मोक्ष प्राप्त किया था।
इसकी कथा को प्रवचन के रूप में अनेक कथावाचकों एवं महात्माओं ने जनता को सुनाकर उनका कल्याण किया। श्री शुकदेव जी ने जो कथा राजा परीक्षित को सुनायी, वह हिन्दी में ‘‘सुखसागर’’ के रूप में मुद्रित हुई है । इसकी कथायें संस्कृत से अनेकों भाषाओं में अनुवाद कर प्रकाशित हो चुकी हैं।
जो संस्कृत का ज्ञान नहीं रखते, उनके लिये अनेकों भक्तों ने हिन्दी गद्यानुवाद करके बड़ा भारी कार्य किया है। ‘संत रामचन्द केशव डोंगरे जी’ जब भागवत पर प्रवचन दिया करते थे, तब लाखों की संख्या में लोग एकत्र होकर उसका श्रवण करते थे।
उसी प्रकार पं० गोविन्द दास व्यास ‘विनीत’ ने इसे राधेश्याम तर्ज पर पद्यानुवाद करके बड़ा सराहनीय कार्य किया है। इनकी पद्ममयी भागवत कथामृत का पान करने के लिये लाखों की संख्या में श्रोतागण एकत्र होते थे। ऐसा सुन्दर पद्यानुवाद करके जो कार्य ‘विनीत’ जी ने किया है वह अत्यन्त सरल, सरस एवं अमृत-वर्षा सी है। इसकी कविता लोगों के जुबान पर भक्तिपूर्वक स्वयं आती हैं।
आशा है कि इसके पठन-पाठन द्वारा लोग भगवत-कृपा तथा जीवन में सुख शान्ति, समृद्धि तथा अन्त में मोक्ष की प्राप्ति करेंगे।
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