नई पुस्तकें >> बोलती तनहाइयाँ बोलती तनहाइयाँनम्रता राठौर यूहन्ना
|
0 |
नम्रता जी की सीधी सच्ची कविताएँ
ज़िन्दगी जब खाली पन्नों की तरह बेरंग और बेमतलब लगने लगी, तो कलम को साथी बनाकर लिखना शुरू किया मैंने। हर एहसास को, हर जज़्बे को, हर आँसू को, हर मुस्कराहट को लफ़्ज़ों में पिरो दिया मैंने। लिखने का सिलसिला करीब सात बरस पहले शुरू हुआ।
अमेरिका में एक प्रवासी की ज़िन्दगी जीते हुए, एक माँ और बीवी की भूमिका निभाते हुए कहीं अपने अस्तित्व को किसी कोने में रख दिया था मैंने। सब कुछ अच्छा था मगर शायद मैं खुद से जुदा थी। मानो अपने अतीत को याद करने से डर रही थी। एक अनजाने शहर में, अजनबी से देश में, बस वहीं की होकर रहने लगी थी। बोलचाल और पहनावा सब अंग्रेजी था पर जब लिखने को कलम उठाई तो सिर्फ हिंदी/उर्दू के शब्द उमड़कर बाहर आये। तुम पहनावा बदल सकते हो पर अपनी संस्कृति में लिपटे हुए जज़्बात नहीं। यह किताब उन लोगों के लिए है, जो सोचते तो हिंदी में हैं मगर बोलते ज़्यादा अंग्रेजी में हैं। तीस साल से अमरीका में रहकर मेरी कैफियत भी कुछ ऐसी हो गयी है।
अपनी ज़ुबान को टुकड़ों में सहेज के रखा है। मेरे शब्द बहुत ही सीधे और सरल हैं। मेरा लेखन आपको शायद कच्चा लगे पर आशा करती हूँ कि इनमें छुपे अहसासात आपको पक्के लगेंगे। मेरे शब्द आपको महका दें, या थोड़ा झुँझला दें, पर उम्मीद करती हूँ के आप इनको अपने दिल में कहीं छोटी सी जगह देंगे।
आप इस किताब में तनहाई, मोहब्बत, जुदाई, प्रवासी होने का दर्द, नारी शक्ति, अस्तित्व की खोज, प्रकृति, रूढ़िवादी सोच और अन्य विषयों पर कवितायें पढ़ पाएंगे।
|