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समय 25 से 52 का

दीपक मालवीय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15415
आईएसबीएन :978-1-61301-664-0

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युवकों हेतु मार्गदर्शिका

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देर ना करिए


दोस्तों इसके पिछले अध्याय में हमने देखा कि कैसे सपनों को सच करने के लिये सपना देखना भी जरूरी है। उसके बाद फिर बिल्कुल देर नहीं करना है। इस अध्याय में आपको गम्भीरता से समझने का प्रयास करना चाहिये क्योंकि इसके अन्तर्गत लेखक ने कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डाला है जिसे पढ़कर आप अपने आज से बीते हुये कल की तुलना करने पर पायेंगे कि कल मैंने उस चीज में देर न की होती तो आज मेरी जगह कुछ और होती, परिणाम और बेहतर होता।

अब समय हो चला है उम्र के 25वें-26वें पड़ाव का जब आदमी कुछ करने की चाह को थाम लेता है और उसके मन में नित नये-नये विचार आते हैं। कई बार मंजिलों के रास्ते आते हैं। बस सही निश्चय कर के उसे एक रास्ता पकड़ना पड़ता है। इन दोनों के बीच में जो घड़ी होती है कुछ समय की जिसमें हमें सोचना-समझना होता है और एक तीव्र एक्शन लेना पड़ता है। ‘देर’ इस शब्द से दुनिया के अच्छे-अच्छे महान विचारकों ने, बड़ी हस्तियों ने, वैज्ञानिकों ने सदा परहेज किया है तथा कई साधु-संत तपस्वियों ने भी हमेशा ही इससे दूरी बनाई रखी है। अगर इसके सम्पर्क में आ गये तो ये वो रुकावट है जो अपने लक्ष्य और मंजिल के बीच में लम्बाई का काम करती है जिसमें अपना परिणाम निहित होता है। अतः देर से करोगे तो अच्छा परिणाम भी देर से ही मिलेगा।

जीवन की इस उम्र में जो लोग संघर्षशील हैं या जिनके पास पर्याप्त संसाधन हैं वो तो कुछ करने में बिल्कुल भी देर न करें क्योंकि ये प्रकृति, तुम्हारी जिन्दगी और ईश्वर तुम्हें बार-बार कोई मौका नहीं देगा। जो युवा-युवती अभी इस समय किसी विशेष नौकरी या डिग्री की पढ़ाई कर रहे हैं उन्हें तो मैं सलाह देना चाहूँगा कि वो देर और आलस्य का दामन कभी न थामें क्योंकि कभी-कभी पूरी लगन के साथ पढ़ाई करने पर भी इच्छित परिणाम प्राप्त नहीं होता तो फिर यदि लेट-लतीफ़ी हो गई और पढ़ने में आपने देर कर दी तो फिर बहुत भारी मात्रा में निराशा का सामना करना पड़ सकता है।

 

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