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हिन्दू धर्म की रूपरेखा

स्वामी विदेहात्मानन्द

प्रकाशक : अद्वैत आश्रम प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :186
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15400
आईएसबीएन :9788175053274

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हिन्दू धर्म की रूपरेखा - मूल लेखक स्वामी निर्वेदानन्द

(१) भूमिका

हिन्दू धर्म संसार के प्रमुख धर्मों में एक है। इसके लगभग चालीस करोड़ अनुयायी 1 भारत में निवास करते हैं और 'हिन्दू' नाम से सुपरिचित हैं। (१. स्वाधीनता-पूर्व की जनगणना के अनुसार। तब से पाकिस्तान तथा बंगलादेश भारत से अलग हो चुके हैं। अब भारत में हिन्दुओं की संख्या लगभग ८५ करोड़ है। - अनुवादक)
अति प्राचीन काल से ही भारत हिन्दू धर्म की मातृभूमि रहा है। कितने समय से - यह कोई निश्चित रूप से नहीं कह सकता। कुछ विद्वानों का मत है कि यह काल बीस हजार वर्षों का है, जबकि कुछ लोग इसे तीन हजार वर्षों से अधिक का नहीं मानते। अस्तु, यह तो असन्दिग्ध रूप से कहा जा सकता है कि हिन्दू धर्म हजारों वर्ष प्राचान है और साथ ही संसार के प्रमुख धर्मों में सर्वाधिक प्राचीन है।
प्राचीन काल में यह धर्म 'आर्य-धर्म' के नाम से पानी असा कहलाते थे। भारतवर्ष में इनका आदि निवास स्थान वर्तमान पंजाब था। अब तक कोई निश्चित रूप से यह बताने में सक्षम नहीं है कि पंजाब में वे कहाँ से आए थे। उनका आदि देश निर्धारित का विद्वानों ने विविध अनुमान लगाये हैं, तदनुसार उत्तरी ध्रुव, मध्य एशिया का विस्तृत पठार, भूमध्य-सागर का तट आदि प्रदेशों को उनकी आदि-भूमि बताने का प्रयास किया गया है। स्वामी विवेकानन्द का निश्चित मत था कि आर्य लोग भारत के बाहर के किसी स्थान से नहीं आए। (.देखिए - विवेकानन्द साहित्य, संस्करण १९६३, खण्ड ५. पृ.१८६; खण्ड ९. पृ. २८१, खण्ड १०, पृ. ११०)
अस्तु, आर्य लोग पंजाब से चलकर क्रमश: पूरे उत्तरी भारत में फैल गए और इस कारण उस भूभाग को 'आर्यावर्त' कहा जाने लगा। कालान्तर में उन्होंने विंध्याचल की पहाड़ियों को भी लाँघकर दक्षिण भारत में अपने धर्म व संस्कृति का विस्तार किया। इस अभियान का श्रीगणेश महर्षि अगस्त्य नामक आर्य-ऋषि ने किया था।
हमारे मन में जिज्ञासा हो सकती है कि आर्यों को 'हिन्दू' कैसे कहा जाने लगा। 'हिन्दू' नाम की उत्पत्ति का इतिहास बड़ा मनोरंजक है। पंजाब में स्थित आर्यों की निवास-भूमि की पश्चिमी सीमा का निर्धारण सिन्धु नदी से होता था। इस नदी के उस पार ईरानी (पारसी) लोगों का देश था। वे लोग सिन्धु नदी के नाम पर ही उसके पूर्व दिशा में रहनेवाले भारतवासियों को भी सिन्धु कहते थे; पर ईरानियों द्वारा सिन्धु शब्द का शुद्ध उच्चारण न हो सकने के कारण 'सिन्धु' के लिए 'हिन्दू' शब्द का प्रयोग होने लगा, जिसे आगे चलकर आर्यों ने भी स्वयं अपने लिए अपना लिया। 'हिन्दू' शब्द अति प्राचीन है। जब हिन्दू लोग पूरे भारत में फैल गए, तो यह पूरा देश 'हिन्दुस्तान' कहलाने लगा।
हिन्दुस्तान अनेक साधु-सन्तों, ऋषि-मुनियों तथा अवतारों की जन्मभूमि रहा है। हजारों वर्षों से यह मुख्यत: धर्मभूमि के रूप में ही विद्यमान है। धर्म का पावन स्पर्श पाकर इसके नदी, नद, पर्वत, झीलें, समुद्र तथा नगर तीर्थों में परिणत हो गए हैं। चारों ओर बिखरे इन पावन तीर्थों ने इस हिन्दू-भूमि को यथार्थत: पुण्यभूमि बना दिया है। युग-युगान्तर से अगणित यात्री दूर-दूर से इन पावन तीर्थों के दर्शनार्थ उमड़े चले आते रहे हैं। और इस प्रकार चिर काल से ही धर्म यहाँ के निवासियों के जीवन की मूल प्रेरणा-शक्ति बना रहा है।
हिन्दुओं के धर्म ने ही उनकी गौरवशाली संस्कृति को जन्म दिया है। अति प्राचीन काल से ही हिन्दुओं ने उच्च कोटि के चित्रों, मूर्तियों, भवनों, संगीत तथा काव्य का निर्माण किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने व्याकरण, निरुक्त, तर्क, दर्शन, राजनीति, ज्योतिष, औषधि तथा शल्य चिकित्सा आदि विभिन्न विषयों पर अनेक विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ लिखे। उन्होंने रसायन-शास्त्र में महत्त्वपूर्ण शोध किए और अभियांत्रिकी, सिंचाई, जलपोत-निर्माण तथा कला एवं शिल्प के अन्य अनेक क्षेत्रों में वे अपनी अद्भुत निपुणता के प्रमाण छोड़ गए। और इन सबके मूल में धर्म था; इन सबके पीछे निहित विचार तथा आदर्श मुख्यत: हिन्दू ऋषियों द्वारा अनुप्रेरित थे।
कालान्तर में हिन्दुओं के इस महान् धर्म से जैन और बौद्ध नाम की दो सशक्त शाखाएँ निकलीं। हिन्दू धर्म अपनी बौद्ध शाखा के साथ भारतीय सीमा के बाहर भी प्रचारित होने लगा। श्रीलंका, ब्रह्मदेश, स्याम, कम्बोडिया, मलाया, जावा, बाली, सुमात्रा, चीन, कोरिया, जापान, अफगानिस्तान तथा तुर्किस्तान - ये सभी देश इनमें से किसी एक या दोनों धर्मों के प्रभाव-क्षेत्र में आए। विद्वानों ने यहाँ तक कि सुदूरवर्ती उत्तरी अमेरिका के मैक्सिको अंचल में भी हिन्दू सभ्यता के अवशेष ढूँढ़ निकाले हैं। इन विदेशियों ने उत्कृष्ट हिन्दू संस्कृति को साग्रह स्वीकार किया था। हिन्दुओं ने कभी छल या बल से अन्य देशों पर अपना धर्म नहीं थोपा। शान्ति, प्रेम, सहानुभूति तथा सेवा ही उनके मूलमंत्र थे। वे जहाँ कहीं भी गए, उन्होंने वहाँ के आदिम निवासियों की सभ्यता को उन्नत किया।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि हिन्दुस्तान ही सम्पूर्ण प्राच्य सभ्यता की मातृभूमि रहा है। इस बात के भी अनेक प्रमाण मिले हैं कि हिन्दुओं की विचारधारा पाश्चात्य सभ्यता की जन्मभूमि प्राचीन यूनान तक जा पहँची थी। (The Legacy of India, Edited by G.T. Garrat. pp. 1-24)
हजारों वर्षों की इस महायात्रा के दौरान हिन्दू धर्म आकार-प्रकार में विस्तृत होता रहा है। अब इसके अन्तर्गत वैष्णव, शाक्त, शैव, सौर, गाणपत्य आदि असंख्य सम्प्रदायों के लिए भी स्थान है। फिर इनमें से हर सम्प्रदाय में भी अनेक पृथक् मतों के लिए स्थान है। इसके अलावा जैन, बौद्ध, सिख, आर्यसमाज आदि भी हिन्दू धर्म से ही निकले हैं।
विगत कुछ काल से हिन्दुओं का प्राचीन धर्म सुदूर पाश्चात्य देशों में अपना सन्देश फैला रहा है। यूरोप और अमेरिका के बहुत-से लोग हिन्दू जीवन-दर्शन का सम्मान करना सीख रहे हैं। उनमें से कुछ लोगों ने तो हिन्दुओं के आदर्शों तथा विचारों को अपनाना तक शुरू कर दिया है।
सचमुच ही हिन्दुओं का महान् धर्म विश्व-कल्याण की एक प्रबल शक्ति है। इसी कारण इस धर्म की पूर्व-उपलब्धियों का इतिहास इतना गरिमामय है। और इसी कारण हिन्दू अपने धर्म के और भी उज्ज्वल भविष्य के विषय में दृढ़ विश्वासी हैं।
परवर्ती अध्यायों में इस धर्म के मूलभूत तत्त्वों पर संक्षेप में विचार किया जाएगा।

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