लोगों की राय

स्वतंत्रता संग्राम >> भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीदों की सच्ची कहानियाँ

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीदों की सच्ची कहानियाँ

मेवाराम गुप्त

प्रकाशक : शहीदाने वतन प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1981
पृष्ठ :352
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15382
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीदों की सच्ची कहानियाँ

वे औघट व्यापारी !

अनुत्तरदायी? जल्दबाज? अधीर? आदर्शवादी? लुटेरे डाकू? हत्यारे? अरे ओ दुनियादार ! तू इन्हें किस नाम से, किस गाली से विभूषित करना चाहता है?

वे मस्त हैं, वे दीवाने हैं ! वे इस दुनिया के नहीं, वे स्वप्नलोक की बीथियों में विचरण करते हैं। उनकी दुनिया में, शासन की कटता से, माँ धरित्री का दूध अपेय नहीं बनता। उनके कल्पना-लोक में ऊँच-नीच का, धनी-निर्धन का, हिन्दू-मुसलमान का, भेद-वेद नहीं है। इसी सम्भावना का प्रचार करने के लिए वे जीते हैं। इसी दुनिया में उसी आदर्श को स्थापित करने के लिए वे मरते हैं। दुनिया की पठित मूखों की मण्डली उनको गालियाँ देती हैं। लेकिन यदि सत्य के प्रचारक गालियों की परवाह करते, तो शायद दुनिया में आज सत्य, न्याय, स्वातन्त्र्य और आदर्श के उपासकों के वंश में कोई नाम लेवा, पानी देवा भी न रह पाता। लोकरुचि अथवा लोकोक्तियों के अनुसार जो अपना जीवन-यापन करते हैं, वे अपने पड़ोसियों की प्रशंसा के पात्र भले ही बन जाये, पर उनका जीवन औरों के लिए नहीं होता। संसार को जिन्होंने ठोकर मार कर आगे बढ़ाया, वे सभी अपने-अपने समय में लाञ्छित हो चुके हैं। दुनिया खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने तथा उपयोग करने की वस्तुओं का व्यापार करती है। पर कुछ दीवाने चिल्लाते फिरते हैं

‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजुए-कातिल में है?'

ऐसे कुशल एवं औघट व्यापारी भी कभी देखे हैं? अगर एक बार आप-हम उन्हें देखलें, तो कृतकृत्य होजायें।

- पं० बालकृष्ण शर्मा नवीन
(काकोरी षड्यन्त्र केस के सम्बन्ध में साप्ताहिक ‘प्रताप' में लिखित सम्पादकीय का एक अंश)

प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book