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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

मुकेश सोचने लगा क्या विकास इस सौंदर्य की देवी को अपना सच्चा प्यार दे पायेगा। नहीं कभी नहीं वह इसे सुखी नहीं रख सकेगा तभी उसने सुना मीना कह रही थी-“मुकेश बाबू आप इतने परेशान क्यों हैं?"

“सुनीता यह वही विकास है...जिसे मैं जानता हूं...मेरी बहन तुम इससे शादी के लिये इंकार कर देना...नही तो कभी सुख नहीं पा सकोगी।” मुकेश ने धीरे से कहा।

"मुकेश भैया मैं इस विषय पर पहले ही निर्णय ले चुकी हूं।" सुनीता ने कहा तो मुकेश उसका मुंह देखता रह गया।

तभी दीनू आया-"बिटिया सेठ जी बुला रहे हैं।"

"अच्छा काका।” सुनीता ने कहा फिर मुकेश से कहा-"भैया मेरे साथ चलो।"

मुकेश कुछ भी नहीं कह पाया। चुपचाप सुनीता के साथ चल पड़ा। धीरे-धीरे कदम उठाती सुनीता चल दी।

विकास अपने डैडी के साथ बैठा था। उसकी नजरें बार-बार दरवाजे की तरफ उठ रही थीं। सेठ जी विकास से कुछ पूछते जा रहे थे। विकास भी सोच-समझकर सब बातों का जवाब दे रहा था। तभी विकास ने दरवाजे से कुछ आहट सुनी। उसकी नजरें उठ गई और फिर उसकी नजरें उठी की उठी ही रह गयीं। वह सुनीता को देखता ही रह गया। फोटो से बहुत अधिक सुन्दर थी। विकास को सपने में भी विश्वास नहीं था कि यह लड़की इतनी सुन्दर होगी...सुनीता के गोरे मुखड़े पर एक आवारा लट आ रही थी। जैसे वह सुनीता का माथा चूमना चाहती हो...बड़ी-बड़ी आंखें जिनमें एक विशेष चमक थी...माथे पर एक छोटी सी लाल रंग की बिंदिया चमक रही थी...सुनीता ने सिर पर थोड़ा सा पल्ला रख रखा था जो उसके सौंदर्य में चार चांद लगा रहा था।

विकास उसके सौंदर्य में इतना खो गया कि सुनीता को बैठने के लिये भी नहीं कह सका। तभी सेठ दयानाथ ने कहा-“बैठो बेटी।”

सुनीता एक तरफ पड़े सोफे पर सिमटकर बैठ गई।

बेटा विकास यहीं है मेरी बेटी सुनीता...तुम देखकर हाँ-ना का जवाब दे देना..वैसे कोई जबरदस्ती नहीं है।” सेठ जी ने विकास से कहा।

तभी मुकेश कमरे में आया। मुकेश को देखते ही विकास चौंक उठा-"अरे मुकेश तुम।” विकास के मुंह से निकला।”

“कमाल हो गया...मुझे तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी...हम इस प्रकार मिलेंगे।"

मुकेश ने बनावटी हंसी मुंह पर लाकर कहा।

“क्या तुम दोनों एक दूसरे को जानते हो?” सेठ दयानाथ ने कहा।

"डैडी हम दोनों एक कालेज में पढ़े हैं।” विकास ने कही। .

विकास की बात सुनते ही सेठ दयानाथ सोच में डूब गये। उन्हें लगा अब यहाँ रिश्ता होना मुश्किल है...अगर ये लड़का विकास के साथ पढ़ा है तो यह विकास के अवगुणों के बारे में भी काफी

जानता होगा। अगर इसने सेठ शान्ती प्रसाद से सब्र बता दिया तो वह कभी भी मेरे बेटे से अपनी बेटी नहीं ब्याहेंगे। उन्होंने सुना सेठ शान्ती प्रसाद कह रहे थे-“सेठ जी मुकेश मेरी फर्म का मैनेजर व सुनीता का भाई हैं।"

"मैं समझा नहीं।” सेठ दयनाथ ने कहा।

“सेठ जी मैं तो सुनीता की शादी पहले मुकेश से ही करना चाहता था...पर मुकेश व सुनीता ने पहले ही भाई-बहन का रिश्ता कायम कर लिया था..सुनीता को बचपन से ही एक भाई की इच्छा रही थीं सो उसने मुकेश को अपना भाई मान लिया...मुकेश में वो सब गुण हैं जो एक भाई में होने चाहिये।”

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