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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"मैं तो यह भी जानती हूं कि तुम्हारा सिर दर्द कर रहा है।" कहते हुए सुनीता ने दूसरे हाथ की हथेली मुकेश के सामने कर दी। उसकी हथेली पर सिर दर्द की गोली रखी थी।

मुकेश ने चुपचाप गोली उठा ली।

सुनीता आगे बढ़ी और उसने फाइल बंद कर दी।

"अरे ये क्या करती हो...बस थोड़ा काम बाकी है।" मुकेश ने हड़बड़ा करे।

"क्यों अपनी जान देने पर तुले हो...डैडी के दस-बीस बच्चे खाने वाले नहीं है..सिर्फ एक बेटी है...और उसके लिये इतना काफी है। लता ने हंसते हुये कहा।

"लेकिन सुनीता।" मुकेश ने कुछ कहना चाहा पर सुनीता ने बीच में ही बात काट दी-"मुकेश लेकिन-वेकिन कुछ नहीं...उठो अपने बिस्तर में लेटो...मैं तुम्हारा सिर दवा देती हूँ।”

"नहीं ऐसी कोई जरूरत नहीं है...गोली से ठीक हो जायेगा।"

मुकेश नहीं चाहता था सुनीता उसका सिर दबाये।

मुकेश कुर्सी छोड़कर उठ खड़ा हुआ फिर सुनीता से धोला- ओ० के० सुनीता, गुड नाइट..काफी, रात बीत गई...अब तुम भी आरोप करो।"

सुनीता ने देखा मुकेश उससे अपनी सेवा नहीं करवाना चाहता तो वह अपने कमरे में चली गई।

मुकेश ने दरवाजा बन्द किया फिर अपने पलंग पर आकर लेट गया।

मुकेश सुनीता के ख्यालों में खो गया। सुनीता की हरकतें, उसे परेशान कर रही थीं। सुनीता को कैसे पता चला कि मेरे सिर। में दर्द है। जरूर सुनीता पहले भी कमरे में आई होगी पर क्यों वह .. मेरे नजदीक मंडराती रहती है। वह मुझसे क्या चाहती है...मैं उसकी। क्या लगता हैं जो वह मुझ पर अपना अधिकार जमाती है...कहीं कोई गलत विचार तो नहीं बना लिया है सुनीता ने जो मेरे लिये नुकसान देह हो...मैने तो सिर्फ लता से प्यार किया है मेरे मन-मन्दिर की देवी लता ही है। इस आसन पर सिर्फ लता का अधिकार है और कोई भी इसमें नहीं बैठ सकता...मैं सुनीता से साफ-साफ बात कर लूंगा...यही ठीक रहेगा।

मुकेश ने मन ही मन दृढ़ निश्चय किया। अब उसका मन काफी हल्का था कुछ देर बाद मुकेश गहरी नींद में सो गया।

सुनीता मुकेश को चाय व गोली देकर, अपने कमरे में चली।

गयी पर उसकी आंखों से नींद बहुत दूर थी। वह मुकेश के ख्यालों, में खोई थी। सुनीता ने आज तक किसी लड़के को लिफ्ट नहीं दी। कालेज में वह गम्भीर लड़कियों में गिनी जाती थी। उसने अपनी अधिक सहेलियां भी नहीं बनाई थीं। सीधे कालेज जाना, और पढ़ने के बाद, घर वापिस आना। हाँ गिनी-चुनी दो-चार सहेलियां थी जिनके साथ वह कभी पिक्चर आदि चली जाती पर

उनके ग्रुप में लड़कों को कोई काम नहीं था। वैसे जरूरत पड़ने पर वह घबराती भी नहीं थी पर जब से मुकेश आया था वह चाहती

थी मुकेश हर समय उसकी आंखों के सामने रहे। जब मुकेश घर में काम करती थी तो वह दो-चार बार उसके कमरे का चक्कर लगा लेती थी। यही कारण था कि आज मुकेश के सिर के दर्द के विषय में वह जान गई थी।

मुकेश के चेहरे पर पता नहीं कैसा आकर्षण था जिसने सुनीता को बैचेन करके रख दिया था। सुनीता सोच रही थी कि। अगर वह डैडी से अपने दिल की बात कह दे तो उसके डैडी तुरन्त ही उसकी बात मान लेंगे क्योंकि उसके डैडी भी मुकेश से काफी प्रभावित हैं...जब से मुकेश इस घर में आया है तब से डैडी के  काम में दिन पर दिन उन्नति हो रही है। उनका सारा काम मुकेश ने सम्भाल लिया था। भला ऐसे व्यक्ति को डैडी अपना दामाद क्यों नहीं बनायेंगे। पर पहले मुकेश की इच्छा का भी पता चलना चाहिये। उसने कालेज में पढ़ाई की है..हो सकता है कालेज की कोई लड़की ऐसी हो मुकेश जिससे प्यार करता हो..तभी तो वह किसी लड़की की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखता...हमेशा ही।। जब अकेला होता है किन्हीं ख्यालों में खोया रहता है।

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