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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"इसमें तुम्हारा दोष नहीं है लता...अपनी किस्मत ही ऐसी है।” विकास ने उदास स्वर में कहा।

“ओह विकास मुझे क्षमा कर दो...अब मैं रोज तुम्हारे साथ क्लब जाने को तैयार हूं।"

विकास के चेहरे पर खुशी फैल गई अब तक पार्क में अंधेरा फैल गया था। पार्क में अब कुछ ही लोग थे बाकी सब घर जा चुके थे। विकास ने चारों ओर नजर दौड़ाई फिर उठकर खड़ा हो गया।

"चलो चला जाये।” विकास ने लता का हाथ पकड़ कर उठाते हुये कहा। लता भी उठ खड़ी हुई। विकास का हाथ लता की कमर में पहुंच गया। लता ने कोई एतराज नहीं किया। दोनों कार की ओर चल दिये।

मुकेश ने कुछ ही समय में कम्पनी का सारा काम सम्भाल लिया। सेठ शान्ति प्रसाद मुकेश से काफी खुश थे। उन्हें लगे रहा था जैसे उन्हें भगवान ने घर बैठे ही एक लड़का भेज दिया है। जिस दिन से मुकेश आया कम्पनी में फायदा ही फायदा हो रहा था। मुकेश दिन-रात काम में ही लगा रहता था। उसे न सोने की चिन्ता थी, न खाने की जब सामने खाना आ जाता तो खा लेता नहीं तो उसे ये भी याद नहीं रहता कि उसे खाना भी खाना है।

सेठ जी अक्सर मुकेश की तारीफ करते रहते। अपने काम के साथ मुकेश कम्पनी के हर आदमी का ख्याल रखता। उसके मन में गरीबों के लिये दया कूट-कूट कर भरी थी। मुकेश कभी किसी को दुखी नहीं देख पाता। इतनी बड़ी कम्पनी का मैनेजर होते हुये भी वह अपना सब काम खुद ही करने की कोशिश करता। यही कारण था कम्पनी का छोटा-बड़ा हर व्यक्ति मुकेश के इशारे पर जान देने को तैयार रहता था।

आज मी आफिस में काफी काम था। मुकेश अपने काम में लगा था। आफिस टाइम खत्म हो चुका था। एक-एक करके आफिस का हर व्यक्ति चला गया था पर मुकेश हर तरफ से बेखबर अपनी मेज पर टिका काम में व्यस्त था। उसे अपने चारों ओर का कोई ख्याल नहीं था। आफिस में एक चपरासी और मुकेश के अलावा और कोई नहीं था।

सुनीता ने साढ़े पांच बजे तक घर पर मुकेश का इंतजार किया परन्तु मुकेश का कहीं पता.नहीं थी। सुनीता को बाजार से कुछ जरूरी सामान लाना था। कल उसने पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम बनाया था। उसी वजह से मार्किट जाना जरूरी था। सुनीता एकदम तैयार बैठी थी परन्तु मुकेश को कहीं पता नहीं था।

सुनीता जानती थी मुकेश आफिस में ही सिर खपा रहा होगा क्योंकि आज तक आफिस के अलावा मुकेश मार्किट भी नहीं गया। था। घर से आफिस और आफिस से घर यही उसकी दिनचर्या थी। हाँ सुबह पांच से सात बजे तक सुबह सैर के लिये अवश्य जाता था। इस काम में कभी मुकेश ने सुस्ती नहीं दिखाई थी।

खाना पीना भी.मुकेश का साधारण था। सुबह हल्का नाश्ता दोपहर को खाना। शाम को वह नाश्ता नहीं करता था सिर्फ एक कप कॉफी लेता था और फिर रात को खाना। यही था उसका दिन भर का भोजन। हाँ जब से मुकेश सेठ जी के मकान में आया थी रात में दूध अवश्य पीने लगा था वह भी सेठ जी के कहने पर।

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